
पिछले कुछ अर्से से मैं फेसबुक और ट्विटर पर ज्यादा समय दे रहा हूं। सवेरे की सैर के बाद मेरे पास कुछ चित्र और कुछ अवलोकन होते हैं, जिन्हे स्मार्टफोन पर 140 करेक्टर की सीमा रखते हुये बफर एप्प में स्टोर कर देता हूं। इसके अलावा दफ्तर आते जाते कुछ अवलोकन होते हैं और जो कुछ देखता हूं, चलती कार से उनका चित्र लेने का प्रयास करता हूं। अब हाथ सध गया है तो चित्र 60-70% मामलों में ठीक ठाक आ जाते हैं चलती कार से। चालीस मिनट की कम्यूटिंग के दौरान उन्हे भी बफर में डाल देता हूं।
बफर उन्हे समय समय पर पब्लिश करता रहता है फेसबुक और ट्विटर पर। समय मिलने पर मैं प्रतिक्रियायें देख लेता हूं फेसबुक/ट्विटर पर और उत्तर देने की आवश्यकता होने पर वह करता हूं। इसी में औरों की ट्वीट्स और फेसबुक स्टेटस पढ़ना – टिपेरना भी हो जाता है।
इस सब में ब्लॉगजगत की बजाय कम समय लगता है। इण्टरनेट पर पेज भी कम क्लिक करने होते हैं।
चूंकि मैं पेशेवर लेखक/फोटोग्राफर या मीडिया/सोशल मीडिया पण्डित नहीं हूं, यह सिस्टम ठीक ठीक ही काम कर रहा है।
यदाकदा ब्लॉग पोस्ट भी लिख देता हूं। पर उसमें प्रतिबद्धता कम हो गयी है। उसमें कई व्यक्तिगत कारण हैं; पर सबसे महत्वपूर्ण कारण शायद यह है कि ब्लॉगिंग एक तरह का अनुशासन मांगती है। पढ़ने-लिखने और देखने सोचने का अनुशासन। उतना अनुशासित मैं आजकल स्वयम को कर नहीं पा रहा। छोटे 140 करेक्टर्स का पैकेट कम अनुशासन मांगता है; वह हो जा रहा है।
पर यह भी महसूस हो रहा है कि लेखन या पत्रकारिता या वैसा ही कुछ मेरा व्यवसाय होता जिसमें कुर्सी पर बैठ लम्बे समय तक मुझे लिखना-पढ़ना होता तो फुटकरिया अभिव्यक्ति के लिये फेसबुक या ट्विटर सही माध्यम होता। पर जब मेरा काम मालगाड़ी परिचालन है और जो अभिव्यक्ति का संतोष तो नहीं ही देता; तब फेसबुक/ट्विटर पर लम्बे समय तक अरुझे रहने से अभिव्यक्ति भंगुर होने लगती है।
अभिव्यक्ति की भंगुरता महसूस हो रही है।
मैं सोचता हूं ब्लॉगिंग में कुछ प्रॉजेक्ट लिये जायें। मसलन इलाहाबाद के वृक्षों पर ब्लॉग-पोस्टें लिखी जा सकती हैं। पर उसके लिये एक प्रकार के अनुशासन की आवश्यकता है। उसके अलावा ब्लॉगजगत में सम्प्रेषण में ऊष्मा लाने के लिये भी यत्न चाहिये। …. ऐसे में मेरे व्यक्तित्व का एक अंश रुग्णता/अशक्तता को आगे करने लगता है! कुछ हद तक कामचोर मैं! 😆
शायद ऐसा ही चले। शायद बदलाव हो। शायद…
ट्वीटर का अनुभव तो शून्यप्राय: है किन्तु फेस बुक का अनुभव उत्साहजनक नहीं रहा। प्राय: ही गलता रहा कि भाई लोग न तो टिपियाने से पहले सोचते हैं और न ही बाद में। टुच्ची आक्रामकता मुझे वहॉं का दूसरी सबसे बडी खराबी लगी। वहॉं, अपनी लकीर बडी करने के बजाय दूसरे की लकीर छोटी करने की कोशिशों का चलन है। ब्लॉग में यह बस आपवादिक ही नजर आता है। फेसबुक ‘कोलवारी डी’ की तरह, सोडावाटरी उफान है जबकि ब्लॉग ‘मन तडपत हरि दर्शन को आज’ जैसा धीर-गम्भीर आनन्द।
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एक अंतर तो ये है कि… ट्विटर, फेसबुक पर नहीं देखा तो नहीं देखा … वो टाइमलाइन पर नीचे चला जाता है. ६-८ घंटे उधर नहीं गए तो वो पढना नहीं हो पाता . ब्लॉग की पोस्ट फीड में पड़ी रहती है और फुर्सत में पढ़ी ही जाती है.
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पता नहीं पर फेसबुक और ट्विटर बहुत रिझा नहीं पाये। मन बहता है तो सीमित रहता ही नहीं, बिना ब्लॉग के सिमटता ही नहीं।
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ठीक किया जो सीमित कर लिया. कम से कम सरकार की थोड़ी परेशानी तो कम होगी. आगे चलकर वैसे भी सोशल मीडिया के ऊपर निगरानी रखने जैसा कुछ लाने के लिये बेताब हैं कई नेता.
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Bhaiya
The present Blog gave me the same honesty
Of your Hearts . We all prey to the Almighty to
Have you in your Good Health with all vigours
& every thing.
Regards
Anand
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Bhaiya
It has been giving us an emmence pleasure & as Vikas , Vineet & our Babujee, Munna, all are involved to read your FB , specially, & your hearfull & honest presentations left me even to refer you amongst our colleagues.
Vineet , a day before yesterday , told that Taujee posts 3-4 FB status in a day even.
Bhaiya , we are very happy. Please keep it up. Vineet has completed his B Tech & has returned to Lucknow, 15 days ago & with us.
Regards
Anand
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हम पहले भी कह चुके हैं:
“आम आदमी की अभिव्यक्ति के लिये ब्लॉग जैसी सुविधायें और किसी माध्यम में नहीं है। आपकी बात अनगिनत लोगों तक पहुंचती है। जो मन आये और जित्ता मन आये लिखिये। अपने लिखे को दुबारा बांचिये। तिबारा ठीक करिये। लोग आपके पुराने लिखे को पढ़ेंगे। टिपियायेंगे। आपको एहसास दिलायेंगे कि आपके अच्छा सा लिखा है कभी। फ़ेसबुक और ट्विटर की प्रवृत्ति केवल आज की बात करने की है। बीती हुयी अभिव्यक्ति इन माध्यमों के लिये अमेरिकियों के लिये रेडइंडियन की तरह गैरजरूरी सी हो जाती है!”
यह बात मैंने अपने डेढ़ साल पहले की पोस्ट से खोजकर यहां पेस्ट की। इसमें डेढ़ मिनट से भी कम लगे। लेकिन आप अगर फ़ेसबुक से अपनी महीने भर पहले की पोस्ट खोजना चाहें तो शायद महीना लग जाये।
ब्लॉग ,ब्लॉग है। ट्विटर और फ़ेसबुक इसकी जगह नहीं ले सकते। 🙂
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ब्लोगिंग किसी भी विषय पर की जा सकती है , यह विश्वास आपने ही लोगों को दिलाया है , केवल रूचि और एकाग्र चित्तता चाहिए..
मगर यहाँ लोगों में गहराई कम नज़र आती है और काफी हद तक आत्मविश्वास की कमी भी …
अपनी लोकप्रियता बढाने में फायदा जान हम लोग खुश हो लेते हैं !
परिपक्वता में बहुत समय चाहिए !
आभार आपका !
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आपकी सोच सही है। ब्लोगिंग लंबी रेस का घोडा है। शृंखलाबद्ध काम, लंबे प्रोजेक्ट, उपयोगी जानकारी आदि के लिए ब्लॉग पोस्ट ही सस्ती और टिकाऊ ऑप्शन है। इलाहाबाद के वृक्षों पर लिखी ब्लॉग-पोस्ट शृंखला का इंतज़ार रहेगा। जानकारी जितनी अधिक सचित्र और औथेंटिक हो, उतना ही अच्छा।
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फेस बुक में तो आप माहिर हो ही गए और आपने इस सिद्धि को प्राप्त करने के लिए अपने तरीके भी ईजाद कर लिये. ब्लॉग और फेसबुक दोनों के लिए समय निकालना कुछ कठिन ही प्रतीत होता है. आपने पेड़ों पर श्रृंखला की बात की और मुझे तो बहुत भाई.
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