यात्रा एक किलोमीटर

rps20130817_065007(कल दफ्तर में) लंचटाइम। मेरी टेबल पर टाटा नैनो में भारत यात्रा के दो ट्रेवलॉग हैं। उन्हे पलटने पर मजा नहीं आता। लोगों को यात्रा कर किताब लिखने भर की पड़ी है शायद। यात्रा के दौरान यात्रा से कई गुना देखना न हो तो वह ट्रेवलॉग किस काम का।

और देखना कैमरे की आंख से कम, मन से अधिक होना चाहिये। मन देखता है। कैमरा किसी कोण विशेष से चित्र लेता है और उस बीच मन उसके लिये शब्द तलाशता है। मेरे साथ यह कई बार हुआ है। हर बार होता है। शायद उन सभी के साथ होता है जो लेखक नहीं शब्द-तलाशक हैं! उन सभी के साथ – लिखना जिनका मुख्य उद्यम नहीं है।

मैं किताब परे हटा अपने चेम्बर से निकल लेता हूं। अच्छा है कि छोटे लाल नहीं देख रहा मुझे बाहर जाते, अन्यथा कयास लगाता कि साहब कहां गये होंगे। अपने फोन में रनकीपर ऑन कर देता हूं, जिससे यह पता चले कि कितना चला।

दफ्तर परिसर में कई खण्ड हैं। मैने उन्ही के चक्कर लगाये। उन्हे जोड़ते रास्ते के कवर्ड शेड हैं। गर्मी और बरसात में उनके नीचे चलना सुरक्षित रहता है। आज धूप नहीं, बारिश थी। मेघाच्छादित आसमान। कभी तेज, कभी धीमे और कभी रुकी होती बारिश। लंचटाइम में सामान्यत जो लोग लॉन में बैठे दीखते, वे इन रास्तों में खड़े या चल रहे थे। आपस में बोलते बतियाते या अपने में रमे लोग। बारिश से किसी का कोई खास लेना देना नजर नहीं आ रहा था।

महाप्रबन्धक प्रकोष्ठ से उत्तरमधय रेलवे मुख्यालय का लॉन बहुत सुन्दर दीख पड़ता है मैने उसका एक चित्र लिया। कहीं वह खराब आये, इसलिये दूसरा बैक-अप चित्र भी लिया। ऐसा बैक-अप लेते ही रहते हैं। अंतत इतने चित्र और इतने बैक-अप हो जाते हैं कि न मूल काम आता है न बैक-अप!

महाप्रबन्धक प्रकोष्ठ से लॉन का कित्र और बैक अप
महाप्रबन्धक प्रकोष्ठ से लॉन का चित्र और बैक अप

एक जगह बारिश के कारण काम रोक कर लॉन संवारने वाली दो महिलायें रास्ते में बैठीं आराम कर रही थीं। आपस में बतिया रही थीं। दूर खड़े कर्मचारियों ने मुझे उनका चित्र लेते देखा तो कटाक्ष किया – “नजरे इनायत हो गयी हैं”! मैं अपनी रफ्तार से उनके पास से गुजरा, पर वे मौन हो चुके थे। मैं तो खैर नजरें इनायत नहीं कर रहा था, पर जिस तरह का उनका कहना था और जिस जगह वे खड़े थे, वे जरूर नजरें इनायत कर रहे थे!

लॉन में काम करने वालीं।
लॉन में काम करने वालीं महिलायें।

एक पौधा था बाड़ के अन्दर। उसके फैलाव को अब लोहे की जाली रोक रही थी। जाली के प्रोटेक्शन की अब जरूरत नहीं रही उसको। माली शायद जल्दी ही बाड़ हटा ले। शायद बारिश के मौसम के बाद।

प्रोटेक्शन और गली के खरपतवार का संग
प्रोटेक्शन और गली के खरपतवार का संग

एक कोने में, जहां कम ही लोग जाते हैं और जहां बारिश की नमी, और कम इस्तेमाल किये रास्ते के कारण काई जमा थी, एक सीमेण्ट का गमला था क्रोटन के साथ। उसके साथ स्पर्धा करता हुआ खरपतवार/घास भी था। दोनो बराबर ही प्रसन्न लग रहे थे। बहुत कुछ वैसे जैसे मेमसाहब का बेबी गली के बच्चों के साथ खेल कर प्रसन्न होता है!

कुछ फूल जो बारिश और बयार में झूम रहे थे, बहुत खुश नजर आ रहे थे। वो ट्रेवल नहीं कर रहे थे। कर नहीं सकते थे। जड़ से बन्धे थे। पर जड़ नहीं थे। उनकी प्रसन्नता अगर उनका स्टेण्डलॉग लिखती तो अत्यंत पठनीय होता वह। टाटा नैनो के ट्रेवलॉगों से ज्यादा पठनीय।

फूल लिखेंगे अपना स्टैण्डलॉग?
फूल लिखेंगे अपना स्टैण्डलॉग?

पर किसी फूल को आपने अपना लॉग – स्टेण्डलॉग लिखते देखा है? ऐसी निरर्थक कार्रवाई में नहीं पड़ते फूल। उन्हे खुशी बिखेरने के और भी तरीके आते हैं!

रनकीपर एप्प ने बताया कि एक किलोमीटर से कुछ ज्यादा चला होऊंगा मैं। नैनो यात्रा का नैनो ट्रेवलॉग! :lol:

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

12 thoughts on “यात्रा एक किलोमीटर

  1. “कुछ फूल जो बारिश और बयार में झूम रहे थे, बहुत खुश नजर आ रहे थे। वो ट्रेवल नहीं कर रहे थे। कर नहीं सकते थे। जड़ से बन्धे थे। पर जड़ नहीं थे।”
    पौधे जड़ से जुड़े होकर भी जड़ नही है. और इंसान अपनी बौद्धिक जड़ता से बाहर ही नही निकल पा रहा. शायद ये हमारे मस्तिस्क के सीखने के तरीके पर निर्भर है. उसका उदाहरण आपके लेख मे ही है.
    (दूर खड़े कर्मचारियों ने मुझे उनका चित्र लेते देखा तो कटाक्ष किया – “नजरे इनायत हो गयी हैं”.)

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  2. “कुछ फूल जो बारिश और बयार में झूम रहे थे, बहुत खुश नजर आ रहे थे। वो ट्रेवल नहीं कर रहे थे। कर नहीं सकते थे। जड़ से बन्धे थे। पर जड़ नहीं थे। उनकी प्रसन्नता अगर उनका स्टेण्डलॉग लिखती तो अत्यंत पठनीय होता वह। ”
    पौधे जड़ से जुड़े होकर भी जड़ नही है. और इंसान अपनी बौद्धिक जड़ता से बाहर ही नही निकल पा रहा. शायद ये हमारे मस्तिस्क के सीखने के तरीके पर निर्भर है. उसका उदाहरण आपके लेख मे ही है.
    (दूर खड़े कर्मचारियों ने मुझे उनका चित्र लेते देखा तो कटाक्ष किया – “नजरे इनायत हो गयी हैं”.)

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  3. नैनो यात्रा के विषय पर बहुत रोचक दिखे, न जाने कितना विश्व छिपा है, एक किलोमीटर में। कटाक्षिया मानवों का सारा व्यवहार जगत कुछ मीटर तक ही केन्द्रित, इतना केन्द्रित कि वे औरों के व्यवहार को भी अपनी मानसिकता में ठाल लेते हैं।

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  4. Dear Bhaiya

    Bahut hee Achchha laga & leally Dil kee baat nikaal ke rakh dee aapane.
    Office Blocks ke uppar. Main Chitrakoot
    Se Aate samay IIIT Jhalawa, IOC Terminal & Aap ke Duftar kee Buildings dekhee thee……….Office Mein aakar miloon tab maza aaye.

    2 Flavours kee ‘London Breakfast Tea’
    -First Flight Couriers se Aaj bheja hoon
    Residence Address Par-Monday certainly mil jaana chahiye.

    Regards
    Anand
    Sent from BlackBerry® on Airtel

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