बाभन (आधुनिक ऋषि) और मल्लाह का क्लासिक संवाद

आज सवेरे शिवकुटी घाट पर गंगा जी का रह चह लेने मैं सपत्नीक पंहुचा। नदी आज और बढ़ आयी थी। सन २००२ के स्तर के कहीं ज्यादा पार। कल सवेरे की अपेक्षा लगभग डेढ़ हाथ और ऊपर हो गया था गंगाजी का जल। शिवकुटी की कई गलियों में पानी भरने लगा था। मेरे अन्दाज से लगभग २५प्रतिशत शिवकुटी में पानी घुस गया था घरों में।

घाट पर तीस चालीस लोग थे। बाढ़ के बावजूद उसमें से अधिकांश नित्य के स्नान-दान-संकल्प-पूजा में रत थे। कुछ थे जो कौतूहल वश पंहुचे थे जल राशि देखने।

एक जवान शिखाधारी नहा कर पानी से निकला। घाट पर नीम के पेड़ के पीछे खड़ी नाव में बैठे लोगों को धाराप्रवाह गरियाना प्रारम्भ किया। भोसिड़ियावाले के क्लासिक मन्त्र पाठ से प्रारम्भ कर नाव वालों की मातायें-बहने-बेटियों को ऋग्वैदिक संहिता के आधुनिक 2.0 बीटा वर्जन की ऋचाओं से धराशायी किया। फिर उनसे नये सम्बन्धों की रचना की। सभी लोग उसकी विद्वता से आश्चर्य-चकित-प्रमुदित हो रहे थे।

बड़ी फ़ुर्ती से वह तीस चालीस ऋचाओं का तेज स्वर में पाठ कर उतनी ही तेजी से घाट से निकल गया। मैं इस घटना क्रम से इतना सन्न था कि उस जवान ऋषि का चित्र न ले पाया। सॉरी।

उसके जाने के कुछ क्षणों बाद नाव किनारे पर आ लगी। उसपर बैठा पतला सा नाविक अपनी पतवार समेट उतरा और काउण्टर लोक वाणी में अपनी हुंकार व्यक्त करने लगा।

कहां गवा भोसिड़ी का। मादर**, हम यहां रात भर से क्या अपनी मां चु* रहे हैं! भो**वा* अगर डूब जाता तो क्या उसकी मां बचाने आती।

घाट पर कुछ लोगों के यह बताया भी कि किस दिशा में गया है वह ऋषि। एक महिला कहने लगी – अब देखो, इन मल्लाहों के नहाने से रोकने पर  (वह नदी के गहरे में जा कर नहा रहा था, जिसे इन रक्षा में तैनात नाव वालों ने रोका टोका था। रोक-टोक में ही हुई थी टिर्र-पिर्र।) तब तो कुछ नहीं बोला वह। पर बाहर निकलते ही गरियाने लगा था!

मल्लाह लगभग तीन चार मिनट अपनी हुंकारमयी गालियों से हम सबका मनोरंजन करता रहा। वह उसके बाद भी नहीं रुका। पर जब मुझे यह लगने लगा कि उसकी मौलिक गालियों का कोटा चुक गया है और वह रिपीट परफ़ार्मेंस देने लगा है, तो मैं पत्नीजी के साथ वहां से चला आया।

काश वे दोनो पक्षों का संवाद शब्दश: रख पाता! ब्लॉगिंग की सीमायें हैं या मैने ही गढ़ ली हैं वे सीमायें!

शिवकुटी घाट पर नाव लगा कर जवाबी हुंकार भरता लोगों की रक्षा के लिये तैनात मल्लाह।
शिवकुटी घाट पर नाव लगा कर जवाबी हुंकार भरता लोगों की रक्षा के लिये तैनात मल्लाह।

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

18 thoughts on “बाभन (आधुनिक ऋषि) और मल्लाह का क्लासिक संवाद

  1. इस स्तर की ऋचाओं के विद्वानों से तो आपको अपने शहर में कहीं भी भेंट हो जाएगी. बस इतनै है कि तनी जनसामान्य वाले अन्दाज़ में कहीं एन्ने-ओन्ने घूमने निकलना होगा, ऐसहीं राजघाट, रामगढ़, नौसड़ टाइप जगहों पर और इसी तरह चुपचाप उनका संवाद सुनिए. यहां आपको इस पर हंसने की स्वतंत्रता भी होगी. बल्कि कुछ लोग मौज लेते हुए भी मिलेंगे. 🙂

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  2. अब मैं क्या कहूँ आपने तो वास्तविक स्थिति का उल्लेख कर दिया साधाराणतया हम ऐसे परिवेश से बचने के आदी हो गए हैं

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