पटेल, नेहरू, कांग्रेस और कुरियन की किताब

'I Too Had a Dream' by Verghese  Kurien
‘I Too Had a Dream’ by Verghese Kurien

सरदारपटेल और नेहरू जी (कांग्रेस) को ले कर एक बात आजकल चली है। पटेल को कांग्रेस ने किस प्रकार से याद किया, इस बारे में श्री वर्गीस कुरियन की किताब I Too Had a Dream में एक प्रसंग है। मैं उसे जस का तस प्रस्तुत करता हूं (बिना वैल्यू जजमेण्ट के)। अनुवाद के शब्द मेरे हैं। आप पढ़ें –


“एक अन्य व्यक्ति जो मेरी आणद की जिन्दगी में आयी और जिन्होने मुझे और मेरे परिवार को बहुत प्रभावित किया, वे मणिबेन पटेल थीं, सरदार वल्लभ भाई पटेल की पुत्री। मणिबेन आणद और को-आपरेटिव में नियमित रूप से आया करती थीं। वे कभी भी औपचारिक रूप से खेड़ा कोआपरेटिव का हिस्सा नहीं थीं और कभी भी उन्होने कोई पद नहीं संभाला। वे केवल सरदार पटेल की पुत्री के रूप में सम्पर्क में रहती थीं, और वे यह जानती थीं कि उनके पिता खेड़ा जिला के किसानों के भले और प्रगति के लिये कितना सरोकार रखते थे। आणद में उनका हमेशा स्वागत था – न केवल सरदार पटेल की पुत्री के रूप में वरन् उनके अपने मानवीय गुणों के कारण भी। यद्यपि वे काफ़ी अच्छी कद-काठी की महिला थीं और बाहर से रुक्ष लगती थीं, मैने पाया कि वे बहुत सौम्य स्वभाव की थीं और हम बहुत अच्छे मित्र बन गये।

मणिबेन नितान्त ईमानदार और समर्पित महिला थीं। उन्होने अपना पूरा जीवन अपने पिता को समर्पित कर दिया था। उन्होने बताया कि सरदार पटेल की मृत्यु के बाद वे उनका एक बैग और एक किताब ले कर दिल्ली गयीं जवाहरलाल नेहरू से मिलने। उन्होने वे नेहरू के हवाले किये; यह कहते हुये कि उनके पिता ने मरते समय कहा था कि ये सामान वे नेहरू को ही दें और किसी को नहीं।  बैग में 35 लाख रुपये थे जो कांग्रेस पार्टी के थे और किताब उसका खाता थी। नेहरू ने वह ले कर उनका धन्यवाद किया। मणिबेन ने इन्तजार किया कि नेहरू कुछ और बोलेंगे पर जब वे नहीं बोले तो वे उठीं और चली आयीं।

मणिबेन (बीच में) और कुरियन दम्पति
मणिबेन (बीच में) और कुरियन दम्पति

मैने मणिबेन से पूछा कि वे नेहरू द्वारा क्या अपेक्षा करती थीं कि वे कहते। “मैने सोचा कि वे पूछेंगे कि मैं आगे अपना काम कैसे चलाऊंगी? या कम से कम यह कि वे मेरी क्या सहायता कर सकते हैं? पर यह उन्होने कभी नहीं पूछा।” – मणिबेन ने बताया।

मणिबेन के पास अपना कोई पैसा नहीं था। सरदार पटेल की मृत्यु के बाद बिड़ला परिवार ने उन्हे कुछ समय बिड़ला हाउस में रहने का अनुरोध किया। पर यह उन्हे मन माफ़िक नहीं लगा तो वे अपने भतीजे के पास रहने के लिये अहमदाबाद चली आयीं। उनके पास कोई अपनी कार नहीं थी, सो वे बसों या थर्ड क्लास में ट्रेनों में यात्रा करती थीं। बाद में त्रिभुवन दास पटेल (खेडा कोआपरेटिव के संस्थापक) ने उनकी मदद की संसद का सदस्य चुने जाने में। उससे उन्हें प्रथम श्रेणी में चलने का पास मिल गया पर एक सच्चे गांधीवादी की तरह वे सदा तीसरे दर्जे में ही यात्रा करती रहीं। वे आजन्म खादी की साड़ी पहनती रहीं, जिसका सूत वे स्वयं कातती थीं और वे जहां भी जाती थीं, उनके साथ चरखा रहता था।

सरदार पटेल ने जो त्याग किये देश के लिये; उन्हे देखते हुये यह कहते दुख होता है कि देश ने उनकी बेटी के लिये कुछ नहीं किया। अपने बाद के वर्षों में, जब उनकी आंखें बहुत कमजोर हो गयी थीं; वे अहमदाबाद की सड़कों पर बिना किसी सहारे के चलती थीं। बहुधा वे लड़खड़ा कर गिर जाती थीं, और वहीं पड़ी रहती थीं, जब तक कोई गुजरता व्यक्ति उनकी सहायता कर उठाता नहीं था। जब वे मर रही थीं तो गुजरात के मुख्य मन्त्री चिमनभाई पटेल उनके पास आये एक फोटोग्राफर के साथ और फोटोग्राफ़र को निर्देश दिया कि उनके साथ एक फोटो खींची जाये। वह फ़ोटो अगले दिन अखबारों में छपी। थोड़े से प्रयास से वे मणिबेन के अन्तिम वर्ष बेहतर बना सकते थे।”


मैने वर्गीस कुरियन की यह किताब साल भर पहले पढ़ी थी। कल जब सरदार पटेल की लीगेसी पर क्लेम करने लगे उनके पुराने समय के साथियों के उत्तराधिकारी; तो मुझे याद हो आया यह प्रसंग। मैने वर्गीस कुरियन के शब्दों को रख दिया है। बाकी आप समझें।

(चित्र कुरियन की पुस्तक से लिये हैं)

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

15 thoughts on “पटेल, नेहरू, कांग्रेस और कुरियन की किताब

  1. >> वल्लभभाई की विरासत का दम्भ भरने वालों को यह पढ़ना बहुत आवश्यक है

    उनके पढ़े से भी कोई लाभ न होगा, चिकने घड़े पर कितना ही पानी डाल लो लेकिन वह ठहरता थोड़े है। वो तो साल में एक बार वल्लभभाई याद आ जाते हैं क्योंकि अवसर होता है वरना बाकी 365 दिन तो इंदिरा और राजीव गांधी ही होते हैं स्पॉटलाईट में। :)

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  2. ओह, फिर किसी दिन इस पोस्‍ट पर आउंगा तो लिखूंगा… :(

    कई बाते हैं… पर मणिबेन की इस अवस्‍था के लिए नेहरू को दोषी नहीं ठहराया जाना चाहिए।

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  3. यह तो हमारी परंपरा ही है.. आदमी और उसके घरवाले भूखे मर जाएँ.. बाद में मूर्ति बनाओ. जन्मदिन पुण्यतिथि मनाओ..

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  4. सरदार पटेल से लेकर लाल बहादुर शास्त्री तक कांग्रेस/देश का रवैया किसी से छुपा नहीं रहा हैI जब भी हमने या हमारी संस्था ने कोई जानकारी चाही या कोई सहायता तो हमेशा नकारात्मकता ही दिखी प्रदेश से लेकर राष्ट्रीय प्रशासन तक….

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  5. वल्लभभाई की विरासत का दम्भ भरने वालों को यह पढ़ना बहुत आवश्यक है, उनके पत्र तो महानुभावों के हाथ में सुशोभित हो रहे हैं, उनकी पुत्री को अहमदाबाद की सड़कों पर भटकने दिया।

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    1. >> वल्लभभाई की विरासत का दम्भ भरने वालों को यह पढ़ना बहुत आवश्यक है

      उनके पढ़े से भी कोई लाभ न होगा, चिकने घड़े पर कितना ही पानी डाल लो लेकिन वह ठहरता थोड़े है। वो तो साल में एक बार वल्लभभाई याद आ जाते हैं क्योंकि अवसर होता है वरना बाकी 365 दिन तो इंदिरा और राजीव गांधी ही होते हैं स्पॉटलाईट में। :)

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  6. जिन राष्ट्रनायकों ने सालों-साल साथ रहकर काम किया हो उनके जीवन, व्यक्तित्व को और उनके आपस के संबंधों को एकाध घटनाओं और वक्तव्यों के आधार पर व्याख्यायित करने की कोशिश को dx को कैलकुलस की भाषा में इंटीग्रेट करके परिणाम पाने सरीखा है। यह मानते हुये कि पूरा का पूरा फ़ंक्शन एक ही तरह है।

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  7. नेहरू और कांग्रेस से इस से अधिक की और क्या आशा की जा सकती थी? आज जो सरदार पटेल की दुनिया की सब से ऊंची मूर्ति बनाई जा रही है वह भी नेहरू की उसी परंपरा का निर्वाह मात्र ही तो है, भले ही उस का बीड़ा मोदी ने क्यों न उठाया हो।

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