फाफामऊ पुल से गुजरते हुये

फाफामऊ पुल की रेलिंग
फाफामऊ पुल की रेलिंग

मुझे आजकल फाफामऊ पुल से गुजरना पड़ रहा है। मेरी मां के कूल्हे की हड्डी टूट गयी है और उन्हे भर्ती कराया है फाफामऊ के एक अस्पताल में। उनका ऑपरेशन होना है, पर वे रक्त को पतला करने की दवाई लेती थीं, वह रोक कर उनके रक्त में थक्का बनने की पर्याप्त सम्भावनायें बनाई जा रही हैं। उसमें समय लग रहा है। इस लिये ऑपरेशन टलता जा रहा है और चक्कर लगते जा रहे हैं। अभी आगे भी पर्याप्त लगेंगे।

एक दो दिन में ऑपरेशन हो जाने पर भी पोस्ट ऑपरेटिव केयर में वहां उन्हे अस्पताल में रुकना ही होगा। अत: गंगा नदी का दर्शन आजकल सवेरे करने की बजाय पुल से गुजरते हुये कर रहा हूं।

वाहन से पुल पार करते हुये दो-तीन मिनट लगते हैं। दोनो ओर निहारने के अलावा अपने मोबाइल के कैमरे को वाहन की खिड़की से सटा कर पकड़ लेता हूं। वह कुछ सेकेण्ड के अन्तराल पर दृष्य लेता रहता है। नदी की धारा के चित्र तो वैसे ही हैं, जैसे मैं नित्य देखता हूं। फाफामऊ की ओर के दृष्य में विविधता नजर आती है।

फाफामऊ की ओर गन्ने के ढेर
फाफामऊ की ओर गन्ने के ढेर

फाफामऊ की ओर से गांव की आबादी प्रारम्भ होती है। गांव वाले अपनी सब्जियां ले कर सवेरे आते हैं वहां बेचने। कटरा या मुंण्डेरा मण्डी की बजाय वहां कुछ सस्ती और ताजा मिलती है। देवोत्थानी एकादशी – लगभग एक सप्ताह पहले गुजरी – से गन्ने की आमद हुयी है। फाफामऊ पुल की बन्द की दीवार से लगे दिखते हैं कटे गन्ने के समूचे वृक्ष। अभी लोग सीधे खरीद कर ले जा रहे हैं। गन्ना पेर कर रस बेचता कोई ठेला नहीं देखा मैने।

एक ओर गंगाजी का कछार पाटता विशाल लैण्डफिल है। शहर के बड़े हिस्से का कचरा वहां जमा होता है। हमेशा आग लगी रहती है। धुआं उठता रहता है। शाम के समय वह धुआं बहुत ऊंचा न उठ कर चौड़ाई में फ़ैल कर वातावरण को ग्रसित करता है और दम घुटने लगता है। सतत बनता यह धुआं गंगाजी का भी दम घोंटता होगा।

गंगाजी का कछार पाटता लैण्ड-फिल
गंगाजी का कछार पाटता लैण्ड-फिल

लैण्डफिल धीरे धीरे गंगाजी की जमीन हथिया लेगा। कोई फ्लैट बनाने वाला रियाल्टी-राजनेता का गिरोह सबर्बन आबादी के भले के लिये बहुमंजिला रेजिडेंशियल कॉम्प्लेक्स खड़ा कर देगा। भविष्य की आंखों से दिखाई पड़ता है यह।

पिछले सावन-भादों में रिकार्ड-तोड़ बढ़ी थीं गंगा। अब पुल से दोनो ओर निहारते दिखता है कि जलराशि बहुत सिकुड़ रहा है। किनारे ही नहीं सूख रहे, नदी के बीच भी द्वीप उग आये हैं। मुझे लगता था कि बाढ़ के बाद इस साल पर्याप्त पानी रहेगा नदी में। पर वह लगता नहीं।

पुल के किनारे फाफामऊ में गन्ना बेंचते-चूसते लोग।
पुल के किनारे फाफामऊ में गन्ना बेंचते-चूसते लोग।

इलाहाबाद में एक चुंगी है। वाहन रोके जाते हैं टोल टेक्स के लिये। बड़े वाहन तो वे रोकते ही हैं, छोटे वाहन भी, अगर नम्बर प्लेट बाहर की हो तो रोके जाते हैं। छोटे वाहनों को रोकने पर जो भाषायी आदानप्रदान होता है, वह रसीद काटने से ज्यादा रोचक होता है।

… अभी कई दिन गुजरना होगा मुझे इस पुल से।

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Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

4 thoughts on “फाफामऊ पुल से गुजरते हुये

  1. पक्क्‍ी उमर में हड्डी टूटना नि‍तांत दुखद होता है. शीघ्र स्‍वास्‍थ्‍यलाभ की श्‍ुाभकामना.

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  2. इस पुल से अक्सर गुजरना होता रहा 81-85 के दौरान। एक बार रेल की पटरी पर भी चले। गाड़ी आई तो भागे फ़िर। और बातचीत के किस्से लिखे जायें।

    माता जी के स्वास्थ्य लाभ के लिये मंगलकामनायें।

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  3. अगर कुछ नमूने इस भाषायी आदानप्रदान के भी बता सकें तो अति कृपा होगी

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