गोरखपुर रेलवे कॉलोनी में सवेरे की सैर

DSC_0338सवेरे की सैर का मजा गोरखपुर रेलवे कॉलोनी में उतना तो नहीं, जितना गंगाजी के कछार में है। पर वृक्ष और वनस्पति कछार की रेत, सब्जियों की खेती और चटक सूर्योदय की कुछ तो भरपाई करते है हैं। आजकल फागुन है तो वसन्त में वृक्षों में लदे फूलों की छटा कुछ और ही है।

वृक्ष के आकार और सुर्ख लाल फूलों से मैं सोचता था कि हर तरफ टेसू/पलाश ही गदराया है, पर सवेरे की सैर ने यह भ्रम तोड़ दिया।

वृक्षों के नाम तो नहीं मालुम। कल शाम अपने ड्राइवर साहब से पूछा तो वे भी हेंहें करने लगे। पूरी जिन्दगी यहीं ड्राइवरी में निकाल दी है, पर आस पास निहारे नहीं। अब बोला कि किसी कुशल माली से पूछ कर बतायेंगे। … आसपास निहारने के लिये ब्लॉगिंग करनी चाहिये ड्राइवर साहब को!

[अपडेट – आज (12 मार्च’14) शाम ड्राइवर साहब ने बताया कि कचनार है वह। पेड़ के नीचे खड़े रहे पता करने के लिये। बूढ़ा माली जब वहां से गुजरा तो रोक कर पता किया उससे। माली ने बताया कि फूल की सब्जी भी बनाते हैं लोग। बहुत कुछ संहजन जैसे।

अच्छा हुआ, ब्लॉगिंग के जोर से ड्राइवर साहब भी जिज्ञासु बन गये! अब तय हुआ है कि पौधशाला में कल माली से मिला जायेगा! :lol: ] 


लगभग  40 मिनट की सैर होती है। साफ़ और समतल सड़कें। सूर्योदय हो रहा होता है – यद्यपि वृक्षों के कारण कम ही दिखाई देते हैं सूर्य। घूमने वाले होते हैं – पर भीड़ नहीं। इक्का-दुक्का दौड़ भी लगाते हैं। सब तरफ बड़े बड़े बंगले हैं और बड़े बड़े अधिकारियों की नेम-प्लेटें। बंगलों में लीची और आम की बहुतायत है। आम में बौर लदे हैं। कुछ अफसरों के बंगलों में अरहर के बड़े बड़े – वृक्षानुरूप पौधे हैं। जिनपर अच्छे फूल हैं।

रहर बढ़िया निकलेगी यहां इस साल।  


खैर, जो रखा है; वह सौन्दर्य में रखा है। नाम में क्या रक्खा है! आप तो आज के कुछ चित्र देखिये प्रात: भ्रमण के।

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Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

13 thoughts on “गोरखपुर रेलवे कॉलोनी में सवेरे की सैर

  1. आप अपने मतलब की चीज खोज ही लेते हैं।

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  2. ज़रा देर हो गयी हमको उठने में.. आई मीन आने में… गदराये फूलों के बीच आपकी उपस्थिति उनके लिये भी एक नयेपन का एहसास है. कम से कम कोई निहारने वाला ही नहीं, नाम पता पूछने वाला भी मिला. लखनऊ होता तो कह देते कद्रदान मिला कोई. और अब तो आपने ब्लोग़ सम्वाददाता भी छोड़ दिये हैं गोरखपुर में. बेचारा ड्राइवर जी. के. की किताब लेकर बैठा होगा कि साहब पता नहीं कब कौन सी जानकारी माँग बैठें!
    हमें भी अच्छा लग रहा है!

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  3. लगता है कछार प्राइमरी स्कूल तो गोरखपुर जैसे महाविद्यालय हो गया है। आप सर इंग्लैंड की टेम्स नदी या एम्सटरडम चले जाएँ , कछार पीछा करेगा ।
    ….लेकिन एक बार फिर साबित हो गया कि भोर की बेला अप्रतिम होती है , अद्वितीय होती है।

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  4. आपका यह पोस्ट पढ़ा और ख़ास कर लास्ट लाइन मुझे एक पोस्ट, जो की मैं बहुत दिन पहले पढ़ा था, मेरे सबसे पसंदीदा ब्लॉग मैं, याद आ गया. उस पोस्ट मैं भी ब्लॉगर साहब जब सैर पे निकले हैं तोह पेड़ और फूलों को देख के जिनका उनको नाम नहीं मालूम, कुछ ऐसे ही फीलिंग्स के बारे मैं लिखते हैं.
    वो पोस्ट का लिंक तो मैं अभी ढून्ढ नहीं पा रहा हूँ ,इसलिए पुरे ब्लॉग का ही लिंक निचे दे रहा हूँ . पढियेगा, बहूत पसंद आएगा, मुझे पक्का यकीं है. रोज़ यह ब्लॉग पढना मेरा पहला काम होता है , इन्टरनेट खोलते ही.
    http://firstknownwhenlost.blogspot.in/

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    1. धन्यवाद लक्ष्मण जी। आपका दिया लिंक सन्जो लिया है। अच्छा और सक्रिय ब्लॉग प्रतीत होता है। पढ़ूंगा।

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  5. इतनी सुन्दर तस्वीरे आप किस केमरे से करते है,यह केमरे का कमाल है या फोटोग्राफर का ?
    चलो जो भी है बड़ी लुभावनी है.परन्तु बताइयेगा ..जरुर.

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    1. जी, मोबाइल का कैमरा है. पांच मेगापिक्सल का. जो सौन्दर्य है, वह फूलों, पत्तियों और फलों का है!

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  6. ऐसी जगहों पर नमस्‍ते के जवाब देते रहना पड़ता है, ऐसा टंटा जरा चुभता है…

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    1. ज्यादा नहीं! इससे कहीं ज्यादा दुआ सलाम कछार में हुआ करती थी – गंगा किनारे।

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