पण्डित बृजकिशोर मणि त्रिपाठी

कल शाम को मुझे बताया कि दो सज्जन आये हैं, मुझसे और मेरी पत्नीजी से मिलना चाहते हैं। मुझे लगा कि कोई व्यक्ति रविवार की शाम बरबाद करना चाहते हैं – किसी पोस्टिंग/ट्रांसफर छाप अनुरोध से। पर जो व्यक्ति मिले, मानो मेरा सप्ताहांत बन गया!

मिलने वाले में थे पण्डित बृजकिशोर मणि त्रिपाठी और उनके सुपुत्र द्वारकाधीश मणि। यहां बेतिया हाता में रहते हैं। पास के जिले महराजगंज में उनका गांव है जमुई पण्डित। नाम से लगता है ब्राह्मणों का गांव होगा। उनके गांव के पास का रेलवे स्टेशन है सिसवांबाजार।

पण्डित बृजकिशोर मणि त्रिपाठी
पण्डित बृजकिशोर मणि त्रिपाठी

मेरे पत्नीजी के नाना थे श्री देवनाथ धर दुबे। उनकी सबसे बड़ी बहिन का विवाह हुआ था जमुई पण्डित। उनके लड़के हैं पण्डित बृजकिशोर मणि। तीन पीढ़ी पहले का और वह भी परिवार के ब्रांच-ऑफ का रिश्ता। पण्डित बृजकिशोर मणि उस सुषुप्त रिश्ते को जीवंत कर रहे थे हमारे यहां पधार कर। पहले तो मैने उन्हे नमस्कार किया था, पर परिचय मिलने पर हाथ स्वत: उनके चरणों की ओर झुक गये चरण स्पर्श के लिये।

वे वास्तव में अतिथि थे – जिनके आने की निर्धारित तिथि ज्ञात नहीं होती पर जिनका आगमन वास्तव में हर्ष दायक होता है। मैं और मेरी पत्नी, दोनो आनन्दित थे उनके आगमन से।

बृजकिशोर मणि जी ने बताया कि नानाजी (श्री देवनाथधर दुबे) उनके गांव आया करते थे। सिसवांबाजार स्टेशन पंहुचा करते थे और उनके आने की चिठ्ठी पहले से मिली रहती थी। चिठ्ठी के अनुसार उनको लाने के लिये गांव से हाथी पहले से भेजा रहता था। जमींदारी थी बृजकिशोर जी के कुटुम्ब की। हाथी घर का ही था। उन्होने बताया कि लगभग पच्चीस साल पहले हाथी मरा। उसके बाद हाथी रखने की परम्परा समाप्त हो गयी। अब परिवार यहां गोरखपुर में बेतियाहाता में रहता है। किसानी के लिये बृजकिशोर जी गांव आते जाते हैं। गांव में धान और गेंहू की खेती होती है। कैश क्रॉप के रूप में पेपर्मिंट (एक प्रकार का पुदीना) की खेती करते हैं। मैने पूछा कि कैश क्रॉप की चोरी नहीं होती? द्वारकाधीश ने बताया कि नहीं। उसे तो गाय-गोरू-बकरी भी नहीं चरते! उसके खेत में ठण्डक रहती है इस लिये अन्य खेतों की तुलना में जहरीले सांप जरूर ज्यादा रहते हैं वहां! 

जमुई पण्डित में राधा-कृष्ण मन्दिर
जमुई पण्डित में राधा-कृष्ण मन्दिर

द्वारकाधीश मणि ने मुझे गांव आने का निमंत्रण दिया। यह भी बताया कि वहां तीन शताब्दी पुराना राधा-कृष्ण का मन्दिर भी है जो उनके परिवार का बनवाया हुआ है। उस मन्दिर का एक चित्र भी उन्होने अपने मोबाइल से दिखाया। 1780 के आसपास बने इस मन्दिर में गुम्बद मुझे नेपाली और मुगलिया स्थापत्य से प्रभावित लगा। कभी जा कर मन्दिर देखने का सुयोग बना तो आनन्द आयेगा!

मैने वाराणसी में अपने ससुराल पक्ष के लोगों से पण्डित बृजकिशोर मणि त्रिपाठी से मुलाकात के बारे में चर्चा की तो सभी को बहुत अच्छा लगा। मैने पाया है कि हम जमाने के साथ कितना भी निस्पृह बनने लगे हों; रक्त में कुछ ऐसा है जो अपनी और पारिवारिक जड़ों से जुड़ाव से आल्हादित होता है; सुकून पाता है।

मुझे लगता है, पण्डित बृजकिशोर मणि त्रिपाठी और उनके लड़के द्वारकाधीश में जड़ों से जुड़े रहने की भावना और भी पुख्ता होगी। तभी उन्होने पहल की।

मेरे पत्नी और मैं, जो उनके आने के समय असहज थे कि न जाने कौन मिलने वाले आये हैं; उनके जाने के समय इमोशंस से भरे थे। पण्डित बृजकिशोर मणि त्रिपाठी जी को चरण स्पर्श कर हम दोनो ने विदा किया। उनके जाने के बाद बहुत देर तक उनकी, और अपने परिवार के बुजुर्गों की चर्चा करते रहे।

भगवान प्रसन्नता के लिये कैसे कैसे योग बनाता है।  पण्डित बृजकिशोर मणि त्रिपाठी हमारी प्रसन्नता के निमित्त!

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

7 thoughts on “पण्डित बृजकिशोर मणि त्रिपाठी

  1. पोस्टिंग-अधिकतर मामलों में यदि घर के नजदीक पोस्टिंग हो तो लोग मन लगाकर काम करते हैं, बेशक अपवाद होते हैं जहाँ लोग स्थानीय व्यापारिक गतिविधियाँ चलाने लगते हैं. इसलिये मेरा अपना मानना है कि ट्रांसफर पोस्टिंग के मामले में उदार होना चाहिये.
    पोस्ट-चार पीढ़ी पहले के रिश्ते यदि जीवन्त हो रहे हैं तो इससे अच्छा कुछ हो ही नहीं सकता. अन्दाजा है कि चार पीढ़ी पहले वे सब लोग कितने जुड़े होंगे एक दूसरे से, कितने नजदीक होंगे.. वाह…

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  2. आप आप नहीं रह जाते और मैं मैं नहीं रह जाता। ये अंतर पात देने वाली आपकी लेखन शैली को साभार नमन करता हूँ। लगता है लिख नहीं रहे जैसे…बाबूजी ही सामने बैठ कर कोई द्रस्टांत सुना रहे हैं अतीत का।
    घर में जब बड़े बूढ़े रात में इकट्ठे हो कर यूं ही अतीत में डुबकियां लगाते थे तो रत्न जवाहरात जैसे मेरे हाथ आते थे। उनके द्वारा हर याद किये गए किरदार को मैं दिमाग के पटल पर अनुमान के आधार पर चित्रांकन कर लेता था। उस पर सुनना कल्पना करना किसी कॉमिक्स सा अनूठा आनंद देता था। उन वार्तालाप के रसमय बैठकों को बहुत पीछे छोड़ आया पर सर आप वापस उसी दिशा में धकिया देते हो मुझे। मेरे इस बेकफुट पर पहुंचा दिए जाने पर आपका आभार प्रकट करता हूँ। आपको तो मालूम भी नहीं हो पाता कि आप क्या कर जाते हैं।
    रक्त सम्बन्ध निश्चय ही अपना प्रभाव दिखाते हैं। भाव बदल जाते हैं। भावुकता वातावरण में छाने लगती है । कैसा बदलाव आ जाता है शरीर के रसायन में… अवर्णनीय है।
    धन्यवाद सर।

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  3. भाव विभोर हुआ… एक बात कहूँगा, आपके अनेक लेख देख कर लगता है जैसे मैंने ही लिखा है अथवा शायद मैं ऐसा ही लिखता..(माफ़ कीजियेगा बड़ी बात कह गया) परन्तु इस बात पर गौरवान्वित महसूस करता हूँ कि आपसे वेव लेंग्थ मिलती है. साधू |

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  4. द ग्रेट अफसर पंडित ज्ञानदत्त पांडेय चाहे जित्ता कड़क अफसर होने का दिखावा करें और कवियों को चाहे जितना गरियावें, पर भीतर से हैं पूरमपूर भावुक किसम के मनई । बशर्ते जनता उन्हें वैसा रहने दे । अपनी जड़ों की पहचान और जड़ों से जुड़ाव की चाहना सहज मानवीय स्वभाव है । जीवन की आपाधापी में पीछे छूटा हुआ या सूखा हुआ संबंध पुनः हरियर हो जाए और स्निग्धता लौट आए, इससे अच्छा और क्या हो सकता है । इस बहाने वे लगभग विस्मृत बुजुर्ग भी हमारी स्मृति के केंद्र में आ जाते हैं जो इन सम्बन्धों का बायस होते हैं । पारिवारिक इतिहास का पन्ना हमारी आँखों के आगे झिलमिलाने लगता है । जमुई पंडित के पण्डित बृजकिशोर मणि त्रिपाठी को हमारा भी अभिवादन ! मंदिर-भ्रमण की रपट की प्रतीक्षा रहेगी ।

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