जवाहिर लाल नहीं रहा!

मेरे मोबाइल में उपलब्ध जवाहिर की अन्तिम तस्वीर। पिछले साल नवम्बर महीने की है।
मेरे मोबाइल में उपलब्ध जवाहिर की अन्तिम तस्वीर। पिछले साल नवम्बर महीने की है।

पिछले सप्ताह इलाहाबाद गया था। शिवकुटी। गंगा किनारे तो नहीं गया, पर गड्डी गुरु (वीरेंद्र वर्मा) को मेरे आने का पता चला था तो मिलने चले आये थे घर पर। गड्डी गुरू से ही पता चला बाकी लोगों के बारे में – वे जो मेरे नित्य के कछार भ्रमण के साथी थे। रावत जी कहीं बाहर गये हैं, सिंह साहब ठीक ठाक हैं। पण्डा जी का काम सामान्य चल रहा है।

मैने जवाहिर का हाल पूछा।

गड्डी गुरू ने बताया – “लगता है, जवाहिर नहीं रहा। पिछली साल दिसम्बर तक था। उसे ठण्ड लग गयी थी। सरदी में उघार बदन रहता था। उसके बाद शायद अपने गांव गया। अब कोई बता रहा है कि खतम हो गया।” 

मुझे सदमा सा लगा यह सुन कर। जवाहिर मेरे ब्लॉग का सबसे जीवन्त पात्र था/है। वह नहीं रहा। अकेला रहता था वह। मछलीशहर का था। गांव में उसके पास आठ बिगहा जमीन थी। बकौल उसके खरीदने वाले उसका (सन 2010-11 में) पन्द्रह लाख दाम लगाते थे। यहां गंगा के कछार में घूमता था। मेहनत मजदूरी करता था। सीधा और स्वाभिमानी जीव। अब नहीं रहा।

जवाहिर पर सन 2006 से अब तक मेरे ब्लॉग पर करीब दो दर्जन पोस्टें हैं। अनेक पाठक जवाहिर से परिचित हैं। अनूप सुकुल मुझे बारबार कहते रहते हैं जवाहिर पर उपलब्ध ब्लॉग सामग्री को पुस्तकाकार देने के लिये। सतीश पंचम तो कई बार स्मरण करते रहते हैं जवाहिर का अपनी टिप्पणियों में।

उन सब पठकों को यह जानना दुखद होगा।

पण्डाजी से टिर्र-पिर्र हो गयी थी तो बहुत समय तक – साल भर से ज्यादा – वह अलग एकाकी बैठा करता था। पर पिछले साल अक्तूबर-नवम्बर में मैं जब शिवकुटी गया था तो उसे अपनी पुरानी जगह, पण्डा की चौकी की बगल में अलाव जलाते पाया था। मुझे लगा था कि अब सब पुराने तरह से चलेगा और शिवकुटी के घाट की जीवन्तता का एक तत्व, जवाहिर, जो अलग-थलग हो गया था; वहीं देखने को मिला करेगा। पर यह नहीं मालुम था कि वह मेरी जवाहिर से आखिरी मुलाकात थी… उसके बाद लम्बे अन्तराल तक मैं इलाहाबाद गया नहीं और अब यह सुना गड्डी गुरू के मुंह से।

यद्यपि यकीन करने को मन नहीं करता। पर जैसा गड्डी गुरू ने बताया कि दिसम्बर के बाद वह यहां कहीं दिखा नहीं तो लगता है कि यह सही हो। मैने जवाहिर को कभी इतने लम्बे अर्से गंगाजी के कछार से दूर नहीं पाया था।

अगली बार शिवकुटी जाऊंगा तो अन्य लोगों से जवाहिर के बारे में पूछने पछोरने का यत्न करूंगा। पर अभी तो यह खबर भर देनी है कि जवाहिर लाल नहीं रहा। :sad:

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

5 thoughts on “जवाहिर लाल नहीं रहा!

  1. सिर्फ जवाहिर नहीं, आपके ब्लाॅग का हीरो चला गया। अफसोस.!!!

    Like

Leave a reply to gatyattmakjyotish Cancel reply

Discover more from मानसिक हलचल

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading

Design a site like this with WordPress.com
Get started