
एक-डेढ़ दशक पहले वह मेरा चेम्बर हुआ करता था – रतलाम रेल मण्डल के वरिष्ठ मण्डल परिचालन प्रबन्धक का। आज मैं सामने की कुर्सी पर बैठा था। पहले से बेहतर था वह कमरा। सोफा, बदली हुई मेज और कम्प्यूटर आदि। सामने पदासीन थीं – सुहानी मिश्र। मेरे समय में एक दो महिला अधिकारी हुआ करती थीं। वे भी जूनियर पदों पर। आज रतलाम में मण्डल रेल प्रबन्धक (ललिता वेंकटरमण), वरिष्ठ मण्डल परिचालन प्रबन्धक (सुहानी मिश्र शिवरायन) और मण्डल परिचालन प्रबन्धक (जीनिया गुप्त) – तीन महिलायें थीं। समय बदल गया है – रेलवे में भी। शायद और भी महिलायें हों रतलाम में प्रबन्धन के वरिष्ठ पदों पर।
“कोई नॉनसेंस स्वीकार नहीं करतीं काम में, मैडम” – सुहानी मिश्र के बारे में रतलाम स्टेशन लॉबी में किसी ने मेरे साथ गये निरीक्षक मनीष कुमार को कहा था। और जितना देखा – उससे लगा कि सुहानी वास्तव में एक कुशल प्रबन्धक हैं।

दिन मेरे लिये बहुत खराब गुजरा। रतलाम कोर्ट में निर्णय मेरे खिलाफ गया। केवल बेहतर यह था कि अपील करने तक जज महोदय ने निर्णय स्थगित कर दिया। मुझे वहां प्रक्रिया पूरी होने तक बाहर एक बेंच पर इंतजार करना पड़ा। गनीमत है कि एक सहकर्मी मेरे लिये पानी की बोतल और ग्लास का इंतजाम कर गये। मैने देखा – अधिकतर मैले कपड़ों में ग्रामीण थे वहां। कुछ वकील और कुछ दलाल छाप लोग जो ग्रामीण और शहरी के बीच की कड़ी थे। उत्तरप्रदेश होता तो वे खैनी और बीड़ी का सेवन करते होते। वहां यह व्यसन नहीं दिखा। एक महिला अवश्य दिखी टूटे दांतों वाली – शायद पान खाने से जल्दी टूटे होंगे उसके दांत। पर मैं यह नहीं कहना चाह रहा कि पान खाने से दांतों का क्षरण होता है।

शाम को रतलाम कण्ट्रोल के कर्मियों ने एक समारोह का आयोजन किया था। चूंकि मैं वहां था, मुझे भी निमंत्रण मिल गया। बतौर मुख्य अतिथि। कण्ट्रोल कर्मियों और उनके परिवारों का समारोह सुहानी मिश्र का अनूठा आईडिया था। और मैं देर तक सोचता रहा कि इस तरह की बात कभी मेरे जेहन में क्यों न आयी – रतलाम में इतना समय गुजारने के दौरान।
समारोह में ज्यादा आनन्द उठाया कण्ट्रोल कर्मियों के बच्चों ने। छोटे बच्चों के लिये बहुत से खेल आयोजित थे। उनकी परिकल्पना बहुत सोच समझ कर की गयी थी। इसमें भी पहल सुहानी मिश्र की थी – ऐसा मुझे बताया गया।


इसके अतिरिक्त दो लड़कियों ने आधुनिक टाइप का नृत्य प्रस्तुत किया। नृत्य की मुझे बहुत समझ नहीं है, पर लड़कियों के शरीर में नैसर्गिक लोच और नर्तन की लय वस्तुत: प्रशंसनीय थी। मुझे अपेक्षा नहीं थी कि हमारे नियंत्रकों के परिवारों में ऐसी प्रतिभायें होंगी। यह सब दिखाने और स्टेज तक लाने के लिये सुहानी निश्चय ही धन्यवाद की पात्र हैं।
सुहानी मिश्र हमारे साथी ब्लॉगर श्री पीएन सुब्रमनियन जी की परिचित हैं। सुहानी की पढ़ाई रायपुर/बिलासपुर में हुई है। केन्द्रीय विद्यालय में स्कूली शिक्षा और भूगोल में परास्नातक की पढ़ाई। रेल में गाड़ी हांकने की नौकरी करते हुये शोध कार्य करने की भी इच्छा मन में रखती हैं सुहानी। बहुत कुछ वैसे ही जैसे मेरे पास करने की कई कार्यों की विश-लिस्ट है। … भगवान हम सभी को अपनी विश-लिस्टें साकार करने की क्षमता दें!
मिश्र लोग क्या छत्तीसगढ़ के भी हैं, मूलत:? मेरे यह पूछने पर सुहानी मिश्र ने ब्राह्मणों के माइग्रेशन की एक और कथा बताई। उनके पूर्वज मूलत कान्यकुब्ज ब्राह्मण हैं – कानपुर के पास के किसी गांव के। उनके दादाजी बाहर निकले और नागपुर में व्यापार करने लगे। व्यापार में घाटा होने के बाद उन्हे गुणो के आधार पर (यद्यपि वे मात्र मैट्रिक तक पढ़े थे) सरगूजा के राजा के दीवान का पद मिल गया। कालांतर में उनकी मृत्यु हो गयी पर सुहानी की दादीजी ने कानपुर के पैत्रिक गांव लौटने की बजाय सरगूजा में ही बसने का निर्णय किया।
… ब्राह्मणों ने जीविका के लिये बहुत विस्थापन किये हैं। कुछ ऐसा ही वर्णन पुरानी पोस्ट पहाड़ के पंत में भी है।
सुहानी मिश्र ने चिन्ना (मेरी पोती) के लिये ढेर सारी चाकलेट दी हैं। चिन्ना तो छोटी है। पता नहीं भविष्य में याद रखेगी या नहीं; पर मेरा परिवार सुहानी मिश्र को सदा याद रखेगा।
सुहानी मिश्र के बारे में जान कर बहुत अच्छा लगा। उनके समारोह के चलते आपका एक बुरा दिन अच्छे में बदल गया महिलाओं की सक्षमता सामने आ रही है, बहुत अच्छा।
LikeLike
एक बुरा दिन भी शाम होते होते अच्छा हो जाये तो फिर उतना बुरा नहीं रह जाता, आप बेहतर समझ सकते हैं। ब्राह्मणों की ख़ानाबदोश फकीरी को सच्चे ब्राह्मणों से बेहतर कौन समझ सकता है 🙂 महिलाएं बहुत दिन नेपथ्य में रहकर चुपचाप समाज बनाती-बचाती रही हैं। अब उनका सामने आना समाज को और भी बेहतर बनाए, यही कामना है। और आपके लिए तो सदा ही शुभकामनायें!
LikeLike
दशकों पूर्व के अपने कर्म भूमि में जाकर विशेष अनुभूति होती है. आपके इस मीडिया कवरेज के लिए आभार
LikeLike