महराजगंज कस्बे के रेस्तराँ में चिन्ना (पद्मजा) पांड़े

विजय तिवारी जी के श्री विजया रेस्तराँ के बारे में मैं दो ब्लॉग पोस्टें लिख चुका हूं। पोस्ट 1 और पोस्ट 2 पर क्लिक कर वे देख सकते हैं। आजकल मैं अपनी साइकिल भ्रमण में बहुधा वहां जा कर कॉफी के लिये बैठने लगा हूं। गांव में रहते हुये मेरी कॉफी हाउस की चाह को यह रेस्तराँ लगभग 90 प्रतिशत पूरा कर दे रहा है।

दो-तीन बार मेरी पत्नीजी भी मेरे साथ गयी हैं – वह तब जब हम अपने वाहन से बाजार गये थे किसी सौदा-सामान के लिये। पत्नीजी को भी वह रेस्तराँ बहुत पसन्द आया है। चूंकि यह उनका अपने मायके का इलाका है – वे तिवारी जी और उनके कुटुम्ब से परिचित भी हैं। आसपास के बाभन रिश्तेदार भी होते हैं; उस तरह से भी विजय तिवारी जी रिश्ते में आते हैं – फलाने की बिटिया उनके गांव में या उस गांव की इस गांव/घर में आयी है ब्याह कर। मुझे उन सम्बन्धों में ज्यादा रुचि नहीं है। मैं तो यह देखता हूं कि विजय जी कितनी मेहनत-लगन से अपने रेस्तराँ को आकार दे रहे हैं। बतौर ब्लॉगर मेरा ध्येय यह ऑब्जर्व करना है कि यह उपक्रम कैसे विकसित होता है।


श्री विजया रेस्तराँ में चिन्ना (पद्मजा)

आज हम (पत्नीजी के साथ चिन्ना और मैं) वहां से गुजर रहे थे तो पत्नीजी ने कहा रेस्तराँ चलने के लिये। चिन्ना पांड़े को लगा कि शायद किसी डाक्टर का क्लीनिक है। वह अड़ गयी – “आप जाओ,मैं थोड़ी देर से आऊंगी।”उसके लिये डाक्टर-क्लीनिक का मतलब होता है इंजेक्शन लगाने वाले लोग। सुई लगने का भय बहुत है उसे! :-)

उसको बहला कर ले गये अन्दर। जब उसने काउण्टर पर कांटे (फोर्क) रखे देखे; तब समझ में आया कि यहां चाऊमीन मिल सकता है। उसके बाद तो उसका चहकना देखने योग्य था। बहुत उत्फुल्ल और संक्रामक।

तिवारी जी ने बड़ी जल्दी बनवा कर मंगाया चाऊमीन। कुछ चिन्ना ने अपने आप खाया और कुछ उसकी आजी ने खिलाया। ज्यादा हिस्सा (प्लेट में जितना था, वह बच्चे, या बड़े के हिसाब से भी, प्रचुर मात्रा में था) पैक करा कर घर लेते आये हम।


चिना (पद्मजा) और चाऊमीन।

चिन्ना खा कर तृप्त हुई। बोली – “हम लोग यहां फिर आयेंगे। बार बार आयेंगे। बाद में आइसक्रीम भी खायेंगे।”

गांव के वातावरण में पलती चिन्ना को रेस्तराँ में जाने का अनुभव (यद्यपि वाराणसी-प्रयाग में बाजार में जा चुकी है) अनूठा था। वापस चलते हुये उसने तिवारी जी को थैन्क्यू बोला और कहा कि बहुत अच्छा बना था चाऊमीन। गांव में इस तरह बैठने-खाने का अनुभव उसके लिये तीन साल में पहला था।

हम यहां साधारण और मितव्ययी जीवन व्यतीत करना चाहते हैं; और कर भी रहे हैं; पर चिन्ना पांड़े को इस प्रकार के यदा कदा के अनुभवों से वंचित भी नहीं रखना चाहते। उसे बाजरे की खिचड़ी, खेत की मूली, पंहसुल से कटा चने का साग, ढूंण्ढ़ा, तिलवा और गुड़ के साथ साथ चाऊमीन का स्वाद भी मिलना चाहिये। उसकी आजी अगले अक्तूबर में उसका जन्मदिन इसी स्थान पर मनाने की सोच रही हैं!

आप कहेंगे कि चाऊमीन पर इतना ज्यादा क्या कोई लिखने की बात है? पर आप पांच साल का गांव में रहने वाला बच्चा बनिये और तब सोच कर देखिये! … आपको यह सब पढ़ते समय अपने को शहरी-महानगरी कम्फर्ट जोन से बाहर निकाल कर देखना होगा।

यह सब पढ़ने वाले बहुत से वैसा देखते सोचते हैं। कभी कभी कोई सज्जन यह कहने वाले भी मिल जाते हैं – यह टिल्ल सी बात भी क्या कोई लिखने की चीज है! :-)


चिन्ना पांडे ने रेस्तरां अनुभव पर अपने विचार, अपने शब्दों में तिवारी जी को व्यक्त किये।

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

2 thoughts on “महराजगंज कस्बे के रेस्तराँ में चिन्ना (पद्मजा) पांड़े

    1. बढ़िया वाजपेईजी! यह भी मूलत: चीनी है जो बुलाते बुलाते चिन्ना हो गयी।

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