एक जंग सी छिड़ी है व्यवस्था और अराजकता के बीच

टोंटी चोरी मात्र फलाने नेताजी का ही (दुर्)गुण नहीं है। यहां पूर्वांचल में देखता हूं कि सार्वजनिक सम्पत्ति से बलात्कार स्वीकृत मानवीय व्यवहार है। बड़ा खराब लगता है यह। जिसे कहते हैं, वह सिद्धान्तत: हामी भरता है कि ऐसा करना गलत है; पर वही मौका पाते ही कहीं भी पान की पीक पिच्च से थूंकते कोई रिमोर्स फील नहीं करता।

शिट!

हाईवे (एनएच19 – ग्राण्ड ट्रन्क रोड या शेरशाह सूरी मार्ग) को छ लेन बनाने का काम चल रहा है। काम करने वाले संरक्षा के सभी नियमों का पालन करते हों – ऐसा नहीं है। पर जितना करते हैं, उसमें पलीता लगाने का काम नागरिक/ग्रामीण करते हैं।

हाईवे के किनारे पानी से बचाव के लिये कलवर्ट बनाई जा रही है। बरसात का पानी उससे हो कर निकल जायेगा और सड़क को बरबाद नहीं करेगा। उसका और कोई भी ध्येय हो सकता है – मुझे नहीं ज्ञात। मैं सड़क निर्माण का जानकार नहीं हूं। पर बनने के दौराना आते जाते तेज गति के यातायात को कैसे प्रोटेक्ट किया जाये; इसके लिये एन.एच.ए.आई. वाले किनारे पर मिट्टी से भरी बोरियां रखते हैं। रात में वे स्पष्ट दिखें, इसके लिये उनपर फॉस्फोरीसेण्ट पदार्थ के स्टिकर लगाते हैं। लाल और एम्बर (पीले) रंग के।

मिट्टी की बोरियों को पोंछता कर्मी

एक कर्मी पहले से लगी बोरियों को साफ कर रहा था। एक कपड़े से उनपर लगी धूल झाड़ रहा था और उसके बाद उनपर स्टिकर लगा रहा था।

उससे मैने रुक कर पूछा – लोग नोच नहीं ले जाते ये स्टिकर?

“वो बार बार उचार ले जाते हैं और बार बार हम लगाते हैं। कई बार तो बोरियौ (बोरी भी) उठा ले जाते हैं।”

फिर कुछ सोच कर बोला – “एक जंग अस चलत बा।”

सही शब्द लगा मुझे – जंग। व्यवस्था और अराजकता के बीच जंग। छोटे बच्चे भर यह व्यवस्था उजाड़ कर स्टिकर उखाड़ते हों – ऐसा नहीं है। उस आदमी ने बताया कि बड़मनई (भद्रजन) भी उखाड़ ले जाते हैं।

बोरी साफ कर नया स्टिकर लगाया उस कर्मी ने।

एक स्टिकर; जो किसी के कोई काम का नहीं है। रात में जुगुनूं की तरह चमकता भर है। और उखाड़ने वाले जानते हैं कि उसके न रहने पर कोई भी वाहन रात में खाई में जा कर दुघटनाग्रस्त हो सकता है। होता भी है।

पर यही उखाड़ने वाले या उखाड़ने को सामाजिक स्वीकृति देने वाले किसी भी दुर्घटना पर सरकार और व्यवस्था की लत्तेरेकी-धत्तेरेकी करने में आगे रहते हैं।

किस तरह के लोग हैं इस प्रान्त/देश में?!

शिट!

वह कर्मी सही कह रहा है – एक जंग सी छिड़ी है व्यवस्था और अराजकता के बीच।

उसके पास जितने स्टिकर थे, खत्म हो गये पर स्टिकर निकाली गयी बोरियां बची रह गयीं।

बाद में मैने देखा कि लोग न केवल स्टिकर निकाल ले रहे हैं, उन बोरियों को उठा कर सड़क के डिवाइडर पर वाहन कुदाने के लिये रैम्प जैसा बनाने में भी प्रयोग कर रहे हैं। अर्थात संरक्षा के उपाय का असंरक्षित यातायात के लिये उपयोग कर रहे हैं। भयंकर अराजक-जुगाड़ देश है यह!

हाईवे के डिवाइडर पर मोटर साइकिल कुदाने के लिये मिट्टी की बोरियों का रैम्प के रूप में प्रयोग।

[गांव में देखता हूं – शौचालय बनाने को बहुत पैसा खर्च किया है सरकार ने। और पैसा सही तरीके से खर्च भी हुआ है। शौचालय बने हैं। बहुत बड़ी संख्या में बने हैं। पर शौचालय न होने का बहाना बनाने वाले उनपर ताला लगा कर खेत में, सड़क या रेल पटरी किनारे हग रहे हैं। इन लोगों का कोई आसान इलाज नहीं है।]


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

2 thoughts on “एक जंग सी छिड़ी है व्यवस्था और अराजकता के बीच

  1. हमारा जवाब यही होगा कि लोगो को अपनी मानसिकता बदलनी पड़ेगी। लेकिन मै यह कहना चाहूँगा कि लोगो कि मानसिकता कब बदलेगी या बदलेगी कि भी नहीं ऐसा प्रतित होता दिखायी दे रहा है।
    अब क्या किया जाए कि लोगो अपने व्यव्हार मे परिवर्तन लाऐं

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