अमृतस्य गंगा


गंगा जीवन दायिनी हैं. गंगा का पानी अमृत है. लेकिन (और यह बहुत बड़ा लेकिन है) गंगा का पानी अब पीते हुए सकुचाते हैं लोग. मैंने खुद भी इस जगह (शिव कुटी में) मुंह भर कर गंगाजल से कुल्ला नहीं किया दशकों से. पीने की बात दूर रही.

गंगा एक दशक पहले आईसीयू में थीं. अब भी शायद हैं वहीं पर. बावजूद इसके कि नमामि गंगे अभियान बहुत सुनने में आता है.

डेढ दशक पहले जब मैं इलाहाबाद, शिव कुटी में नियमित बाशिंदा था तो जोर शोर से काम हो रहा था सीवेज लाइन बिछाने का. बाद में शिवकुटी में पतली पतली गालियां भी खुद गईं थीं. मेरे घर के सामने भी बजबजाती नालियों का स्थान सड़क के बीचों बीच सीवेज के ढक्कनों ने ले लिया. सब हुआ पर last mile connectivity नहीं आई अब तक सीवेज डिस्पोजल की.

रोज गंगा किनारे जा रहा हूँ पिताजी के दस दिवसीय श्राद्ध के घण्ट में जल देने और दीपक जलाने के लिए. तट के समीप गंगा में जाता बज बजाता नाला वैसा ही है जैसा पहले था. उसके आसपास वही सूअर, वही आवारा पशु, वही कचरे का ढेर और लैंड फिल. पच्चीस कदम दूर यह गंगा में मिल जाता है…. प्रभुजी मेरे अवगुन चित न धरो… इक नादिया इक नार कहावत मैलो नीर भरो…

नाला. पच्चीस कदम दूर गंगाजी दिख रही हैं. आप सूअर और आवारा पशु देख सकते हैं. और कचरा भी.

आस्था और वास्तविकता के जबरदस्त विरोधाभासों की नदी हैं गंगा. आस्था ही है कि इस रास्ते दस दिनों से पीपल के पेड़ पर घण्ट में जल भर रहा हूँ मैं!


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Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

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