पुच्चू

पुच्चू मेरे साले साहब का भृत्य है। वह किशोरावस्था में था, तभी उनके संस्थान आभा ट्रेवल्स में बतौर लोडर आया था। अब उसकी उम्र चालीस पार हो चुकी है और उनके ऑफिस या घर पर काम करने वाला विश्वस्त व्यक्ति है। निहायत ईमानदार है। कभी बाजार से सामान लाने के लिये दिये हुये पैसे कम पड़ जायें तो अपनी जेब से खर्च कर सामान लाने और अपने मुंह से उसकी कीमत न मांगने वाला आदमी है पुच्चू। 

पुच्चू

पुच्चू बहुत सफाई पसंद है। घर में काम करता है तो हर चीज साफ करने में समय गुजारता है। सफाई पसंदी उसमें जुनून के स्तर पर है। मेरी सास जी, जब जिंदा थीं, का खाना किचन में रखा हुआ था। उन्होने इस लिये रखा था कि कुछ समय बाद मन होने पर भोजन करेंगीं। इस बीच पुच्चू जी किचन की सफाई करते करते उनका खाना भी डस्टबिन में डाल आये। सफाई रगड़ रगड़ कर करता है पुच्चू – भले ही ब्रश या पोछा बहुत जल्दी तारतार हो जाये।  

एक बार मेरे साले साहब के कुछ महत्वपूर्ण कागज भी पुच्चू सफाई करते हुये कूड़े के साथ घर के बाहर नगरपालिका के कचरापात्र में डाल आये थे। उसके बाद पुच्चू को खुद भी याद नहीं रहा। घर में दस्तावेज की तलाश हुई। परेशान हो कर (पुच्चू जी की आदत से पूर्व परिचय होने के कारण) बाहर कचरापात्र भी खंगाला गया। भला हो कि उसमें गाय या किसी अन्य बहेतू पशु ने मुंह नहीं मारा था, या नगर पालिका ने कचरा उठाया नहीं था। वे कागज कचरापात्र में पड़े मिल गये।

भुलक्कड़, और भोला – दोनो है पुच्चू। उसके भोलेपन का फायदा बहुत से लोगों ने, उसके सगे लोगों ने भी, उठाया। उसकी विपन्नता के लिये वे लोग जिम्मेदार हैं। बावजूद इसके पुच्चू में लालच का अंश भी नहीं है। दिन भर की मेहनत के बाद अगर उसे कोई व्यक्ति मिल जाये जिसको सहायता की जरूरत हो, तो उसके लिये अपनी पूरी जेब, अपने भूखा सो जाने की सीमा तक जाकर, खाली कर देने वाला है वह। दुनियां में करोड़ों कमाने वाले हैं, पर किसी की सहायता के लिये दस रुपया नहीं निकालते। यहां, गरीब पुच्चू अपना सब कुछ देने में एक क्षण भी पुनर्विचार नहीं करता।

भाग्य की मार के बावजूद भी पुच्चू काम में जुटा रहता है और अपना संतुलन बनाये रखता है। कभी खिन्न या नाराज होते नहीं देखा गया पुच्चू को। 

चलता बहुत है पुच्चू। बनारस में नाटी इमली में अपने चाचा के यहां रहता है और वहां से अपने रामनगर स्थित पैत्रिक घर भी पैदल ही जाता आता है। बहुत काम करने और पैदल चलने के कारण ही वह छरहरे शरीर का है। 

जीवन में थपेड़े खाया पुच्चू, अपने भोलेपन से हर जगह चोट खाता और ठगा जाता पुच्चू, और काम करते झिड़कियां सुनता पुच्चू सम-भाव से कैसे जीता है? शायद इस कारण से कि अगर बहुत दिमाग वाला होता तो जीवन की व्यथा के मारे पगला गया होता। उसका भोलापन या उसका कम आईक्यू वाला होना शायद वरदान है। भगवान ने उसके एवज में उसे कर्मठ, दयालू और ईमानदार बनाया है। उसी से उसका जीवन चल रहा है।


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

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