चिड़िया का घोंसला बनाम आदमी का घर

सुबह की चाय पौने छ बजे बरामदे में रख दी गयी। एक ट्रे में चाय का थर्मस और चार कप। साथ में बिस्कुट का एक डिब्बा। यह चाय हमारा सवेरे का रुटीन होता है। बरामदे से उगता सूरज और उसके साथ प्रकृति कि गतिविधियां देखी जाती हैं।

चिड़िया घर से झांकती रॉबिन

पर उस रोज लगा कि कुछ खालीपन है। रॉबिन पक्षी के जोड़े ने हमारे लटकाये चिड़िया-घर में घोंसला बनाया था। उसमें उसके नवजात बच्चे आवाज किया करते थे। रॉबिन दम्पति घोंसले में तेजी से आते जाते थे और बच्चों के लिये खाना लाते थे। उस दिन लगा कि घोंसले में सन्नाटा है।

एक दिन पहले तक रॉबिन की आवाजाही इतनी ज्यादा थी कि उनपर बरबस ध्यान चला जाता था। चिड़िया घर में झांक कर देखने पर उसके बच्चे बड़े दिख रहे थे। पिछली साल भी ऐसा ही था; पर एक दिन बच्चे झांकते हुये नीचे फर्श पर टपक कर मर गये थे। उनके मर जाने से कई दिन हम सब का मन बड़ा उदास रहा था। ऐसा लग रहा था कि आगे शायद कोई चिड़िया इसमें घरोंदा बनायेगी ही नहीं। पर इस साल दोबारा उसके आने से हमारी प्रसन्नता का ठिकाना न रहा!

घोंसला खाली हो गया।

इस साल हमने चिड़िया घर के बेस में गत्ते का एक बड़ा डब्बा लगा दिया था; जिससे अगर बच्चे बाहर टपकें भी तो डिब्बे में रहें और उनकी जान बच जाये।

एक बार बुलबुल का जोड़ा भी इसी चिड़िया घर पर दावा बोलने आ पंंहुचा था। पर रॉबिन के जोड़े ने लड़ झगड़ कर उन्हे भगा दिया।

रोज की घरोंदे की गतिविधियां नहीं दिखीं, तो अहसास हो गया कि रॉबिन दम्पत्ति अपने बच्चों को ले कर “मकान खाली” कर गया है। एक खालीपन तो लगा, पर साथ में एक संतुष्टि का भाव भी था। आखिर हमारे इस घर में एक चिड़िया दम्पति ने सफलता से बच्चे जने और पाल लिये!

पक्षियों के लिये घरोंदे का महत्व केवल अण्डे देने, उन्हें सेने और बच्चों को पाल कर उड़ने लायक बनाने तक ही सीमित है। उसके बाद बच्चे अलग और माता पिता अलग। घरोंदा ऐसे छोड़ जाते हैं मानो वह कभी था ही नहीं। कई दिन हो गये हैं; पर रॉबिन उस चिड़ियाघर को झांकने भी नहीं आयी। अब शायद अगले साल ही लौटने की सोचे।

घर के ही किसी पेड़ पर घोंसला बना बुलबुल ने भी अण्डे-बच्चे दिये होंगे। ये बच्चे घर में घूमते बुलबुल के हैं।

आदमी की फितरत है कि वह परिवार के लिये घर बनाता है; बच्चे पालता है और उनके बड़ा होने पर भी घर में बने रहता है। बच्चों के बड़े होने पर उनकी जरूरतों के लिये और बड़े घर की जुगत करता है (आपको फिल्म “खोसला का घोंसला” याद है?)। समाज इसी तरह चलता है। सामाजिकता के साथ आदमी का विकास भी होता चला जा रहा है। … कई बार मनुष्य घर, परिवार और बच्चों में इस कदर उलझ कर रह जाता है कि चाह कर भी अपने को अलग नहीं कर पाता। कोल्हू के बैल की तरह एक दायरे में घूमता रहता है।

रॉबिन घर के परिसर में ही दिखती है।

आदमी की जिंदगी का यह पहलू कितना सही है और कितना बदलने लायक – यह तो आप बुद्धिमान पाठक ही बता सकते हैं। फिलहाल तो मुझे उस ग्रेट इण्डियन रॉबिन परिवार की याद आ रही है। चिड़िया यहीं घर के परिसर में दिखती है। पता नहीं यह वही घरौंदे वाली है या दूसरी। मन होता है यह स्थायी रूप से इस चिड़िया घर में रहे। पर मेरे मन से वह चलने से रही!


Published by Rita Pandey

I am a housewife, residing in a village in North India.

4 thoughts on “चिड़िया का घोंसला बनाम आदमी का घर

  1. Mujse meri bird ka accident ho gya hai…and she died ..manine use gallary m chhod dia sham ko or gate lga liye or wo stairs se gir gyi krib 1ghnte use bht taklif huyi…..and finally she does in my hand i couldn’t do anything…mai kya kru kuchh smjh nhi aa rha aansu nhi ruk rhe…i love her so much lgbhag 1month ki thi bht chanchal mere bina rehti nhi thi mujhe bht pyar krti thi…and i became the reason of her death…..ye baat din raat mujhe jine nhi de rhi bs usi ka chehra yad aata hain jb wo pyar se mujhe dekhti thi or jb wo giri pdi thi niche or shayad mujhe hi yaad kr rhi hogi
    …or jb hospital se ate waqt usne mere hatho me dam toda…mai kya kru

    Liked by 1 person

    1. आपका सहज सेंसिटिव भाव – जीवों के प्रति प्रेम और करुणा दिल को छूती है, मेधा जी।
      टिप्पणी के लिये धन्यवाद।

      Like

  2. इसे ही जीवन कहते है / ये जीवन के तरह तरह के रंग है और हर रंग का आनन्द लेना चाहिए / पक्षी चले गए तो इसका मतलब यह न समझिए की वे हमे कुछ दे नहीं गए ?? इस धरती पर कम से कम वे अपनी विरासत और अपनी आगे आने वाली पीढ़ी को आपके घर मे पाल पोस कर इस दुनिया को हरा भरा रखने के लिए चले गए और आने वाले साल मे फिर यही चक्र दोहरायेंगे / तब तक इंतजार करे क्योंकि इंतजार करने का भी अपना एक अलौकिक आनंद है /

    Liked by 1 person

आपकी टिप्पणी के लिये खांचा:

Discover more from मानसिक हलचल

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading