मेरे घर गांव की खबर लाये हैं सूरज

बात सूर्योदय की कैसे उठी, मुझे याद नहीं। बात करते हुये नोट्स लेने की तभी सोचता हूं, जब कागज कलम साथ होता है। उस समय नहीं था। शायद मैंने अपने सवेरे के भ्रमण के दौरान सूरज उगने की बात की हो। उस पर उन्होने (सूर्यमणि तिवारी जी ने) बहुत पते की बात कही। उसे मैं जैसा याद पड़ रहा है, वैसे प्रस्तुत कर रहा हूं :-


“मैं अपने काम के सिलसिले में जर्मनी या अमेरिका में होता था। सर्दियों (जनवरी-फरवरी) में वहां सूरज कम ही दिखते थे। जब दिखते थे तो हृदय की गहराई में अनुभूति होती थी कि जैसे कोई मेरे घर-गांव से खबर ले कर आया हो! सूरज वही होते थे, जो मुझे अपने घर के पास मिलते थे। परदेस में अपने घर गांव का कोई दिख जाये तो जो प्रसन्नता होती है, वही सूरज को देख कर होती थी।”

सूर्योदय
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“किसी को भी किसी काम से संदेश ले कर भेजना हो; मानो अपने गांव से दिल्ली भेजना हो तो बहुत सहेजना पड़ता है। टिकट का इंतजाम करना होता है। दिल्ली में उनके रुकने, खाने और लोकल वाहन का प्रबंध करना होता है। उसके अलावा, जिस व्यक्ति को भेजा, उसका अहसान भी रहता है। सूरज के साथ वह कुछ भी नहीं करना होता। वे बिना किसी आशा के, बिना टिकट/खर्चे की दरकार के आपके गांव से जर्मनी, अमेरिका पंहुच कर आपका हालचाल लेते हैं। उनसे बात करिये तो आपके घर गांव का कुशल क्षेम भी बताते हैं। ऐसा निस्वार्थ सहायक कहां पायेंगे आप!”

सवेरे का सूरज। गंगा किनारे।

“हर सुबह, आपका हाल लेने, आपका कर्तव्यबोध कराने के लिये बिना किसी अपेक्षा के, निष्काम सहायक या तो सूरज हैं, या हनुमान जी!”

“आप कोई उद्यम शुरू करते हैं तो आप सम्पर्क बनाना चाहते हैं – थानेदार से, तहसीलदार से। व्यवसाय और बढ़ता है तो सीओ, एसपी, डीएम, कमिश्नर, डीआईजी, … चीफ सेकरेटरी तक पंहुच बनाते हैं। सब के लिये अलग अलग स्तर पर मेहनत करनी पड़ती है। हर एक के अपने साध्य और साधन हैं। पर यहां सूरज या चंद्रमा या हनुमान जी से सम्पर्क साधने में कोई बिचौलिया नहीं। सीधा सम्पर्क है और त्वरित निवेदन और सुनवाई! हर सामान्य से सामान्य व्यक्ति को यह सहज सुलभ है। इस नियामत की कद्र कितने करते हैं?”

“सूरज से यह तादात्म्य हो तो कहीं भी, किसी भी हाल में अकेला होने का प्रश्न ही नहीं है। आप जहाँ कहीं हों, वे आपको ढूंढ निकालते हैं। आपका सुख दुख शेयर करते हैं। आपकी समस्याओं के समाधान बताते हैं। यह सब नायाब है। बहुत अप्रतिम।”

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सूर्यमणि तिवारी

सूर्यमणि तिवारी जी मुझसे सात साल बड़े हैं। मैं जिस परिवार में पला, उसमें मैं अपनी पीढ़ी का सबसे बड़ा था। सात साल बड़े लोग मेरे चाचा हुआ करते थे/हैँ। उस लिहाज से वे वैसे ही हुये। उनसे दो-चार बार ही मिला हूं, यद्यपि ज्यादा सम्पर्क फोन के माध्यम से होता है। एक समय उन्होने और मैंने रुचि जनाई थी उनकी बायोग्राफी लिखने में। पर शायद उन्हें मेरी उन्मुक्त लेखन शैली (जिसमें शब्दों का टोटा होने पर अंग्रेजी के शब्द ठेलने या शब्द गढ़ लेने तक का अपराध होता है) नहीं पसंद आयी या वे उस प्रॉजेक्ट के लिये तैयार नहीं थे। बात आयी गयी और टल गयी। मेरा विचार था कि उनके जीवन पर लिखने के माध्यम से इस इलाके की सात दशक की बदलती तस्वीर का चित्रण प्रस्तुत हो सकेगा। मैं ताराशंकर बंद्योपाध्याय की “गणदेवता” का उत्तर प्रदेश के स्वातंत्रेत्यत्तर गांवदेहात परिवर्तन का सीक्वेल प्रस्तुत करना चाहता था (I don’t have any illusions that I can write somewhere near his masterpiece. So don’t expect people to evaluate my idea on that scale.)। उसके लिये उनसे बेहतर नायक कौन होता, जिसका केनवास गांव की मास्टरी से ले कर अमेरिका तक में सफल/सशक्त कारोबार का हो और जो नायक जमीन पर पुख्ता खड़ा हो!

खैर; उनकी बायोग्राफी न सही, एक काल्पनिक तानेबाने के साथ एक गल्प लेखन तो सम्भव है ही। इस इलाके की जानकारी और आत्मा की समझ के लिये मुझे यत्न करने होंगे। खण्ड खण्ड वह कर भी रहा हूं। पर उसे सही पुश शायद मन की अदम्य इच्छा दे सकती है या सूर्यमणि जी जैसे जानकार व्यक्ति के इनपुट्स। देखें आगे क्या बनता है। अभी, फिलहाल तो ध्येय अपने को सुरक्षित रखते हुये इस कोविड 19 संक्रमण काल लो लांघना है। बस।     


पोस्ट पर टिप्पणी, ट्विटर पर –

फेसबुक पर सुरेश शुक्ल जी की टिप्पणी –

उम्मीद पर ही दुनिया जिंदा है,
उम्मीद और हौंसला रखिए,
कोविड – 19 भी परास्त होगा, और आपके लक्षित लेखन की कल्पित अवधारणा भी सफल होगी।
कोई भी लेखक अपनी लेखनी से संतुष्ट तो होता है, परंतु लेख की भाषा, तथ्य व कथ्य की गुणवत्ता का आकलन तो पाठक ही करते हैं, इसलिए आप निसंकोच अपनी लेखनी को गतिशील बनाये रखिए, पाठकों को निश्चित ही श्रेष्ठ पाठन योग्य सामग्री मिलेगी।


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

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