बहाव है, उसकी आवाज सुन सकते हैं। जलकुम्भी बह कर आ रही है। लोग कयास लगा रहे हैं कि गंगा का जल-पाट कितना चौड़ा हो गया है। कोई एक किलोमीटर कह रहा है, कोई दो की बात कर रहा है। बहरहाल, द्वारिकापुर का गंगा चबूतरा, जहां से गंगाजी करीब 100 कदम दूर हुआ करती थीं, अब पानी को छू रहा है। यह तो करार की ओर का हाल है। दूसरी ओर, जहां कछारी इलाका है, वहां तो गंगाजी ने अपनी रेतीली जमीन पर कब्जा कर लिया है। तट के एक दो गांवों में पानी भरने लगा हो तो कोई आश्चर्य नहीं।

गंगा नदी का बहाव देखना और विस्तृत जलराशि निहारना एक अभूतपूर्व अनुभव है। उसे द्वारिकापुर घाट पर मौजूद सभी लोग महसूस कर रहे थे। दो तीन गोल में बैठे करीब दो दर्जन लोग जमा थे। पता नहीं यूं ही जल बहाव देखने आये थे या किसी के दाह संस्कार के लिये; पर सामान्य से कहीं अधिक लोग थे। कई कई बार तो दोपहर बारह बजे यह तट वीरान रहता है।
बालू ढोने वाली नावें किनारे लंगर लगा कर बांध दी गयी थीं। अगले दो महीने उनके उपयोग की कोई सम्भावना नहीं है। कोई मल्लाह अपनी डोंगी के साथ नहीं दिखा। गंगा की इस बाढ़ में कोई निकलने का जोखिम काहे उठायेगा।

पीपल-पाकड़ पर कौव्वे कांव कांव कर रहे थे। भैंसें चर रही थीं। दूर अगियाबीर के टीले पर एक दो नीलगाय के दर्शन भी किये जा सकते थे। उनके अलावा नदी थी और उसकी जलराशि का फैलाव-विस्तार था।
गंगा के बहाव का वेग दर्शा रहा था कि अभी बाढ़ थमेगी नहीं। पानी बढ़ेगा। कभी कभी तो बहाव आता है। बहाव से बहुत गंदगी साफ हो जाती है। बहाव का, जलराशि का स्वागत!

करार और कछार का मतलब क्या है? नदी के कटाव से सम्बंधित कुछ?
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कछार नदी का रेतीली और सपाट किनारा होता है। नदी जब बढ़ती हैं तो कछार में पानी तेजी से फैलता है।
करार नदी का वह किनारा होता है जो ऊंचा होता है। उसकी मिट्टी भी कंकर वाली होती है। नदी में बाढ़ आने पर वह किनारा टूटता नहीं, सुरक्षित रहता है।
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अनन्त के भाव भी आते हैं पर प्रवाह भयावह भी लगता है।
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और वही भाव, वही भय आकर्षित भी करते हैं वहां जाने निहारने को!
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