7 अक्तूबर 21, शाम –
“विदा लेते समय भईया लड़की की विदाई का सा माहौल हो गया था। लोगों की आंखों में आंसू थे।” – प्रेमसागर ने कहा। प्रेमसागर को उपमा देते नहीं पाया मैंने पहले। दृश्य भावभरा रहा ही होगा! एक अजनबी कांवर ले कर चल रहा व्यक्ति ऐसे आत्मीय हो जाता है!
आज नरसिंंहपुर तक की यात्रा 38किमी की थी। कल 62 की होने के कारण आज प्रेमसागर आगे की यात्रा पर निकले देरी से। वैसे सवेरे जल्दी निकलने पर चलना तेज होता है, पर थकान रही होगी कल की। देर से निकलने का मतलब दिन की तेज धूप का सामना करना था और जो तेजी सवेरे होती, वह शायद धूप बढ़ने के पहले ही 20-25 किमी का रास्ता तय करा देती।
उन्हें लोग छोड़ने एक लिये आये थे। एसडीओ खत्री जी ने गोटेगांव में रुकवाया उन्हें अपने एक मित्र के होटल में था। सवेरे अपने घर पर उन्होने आमंत्रित किया। नाश्ते के लिये तो प्रेमसागर ने मना किया – “खा लेने पर चलने में आलस आता है और चलना नहीं हो पाता।” पर उनके यहां मिले प्रेम भाव की बात मुझसे फोन पर वे बार बार करते रहे। उनकी बिटिया जो सॉफ्टवेयर इंजीनियर है, को कांवर के प्रति कौतूहल था। उसने कांवर उठाने के लिये मांगा – “बाबा जी, एक बार उठाने दीजिये।”


“मैं कांवर दूंगा उठाने को अगर तुम मुझे चाचा जी या अंकल जी कहोगी। बाबा या महराज नहीं हूं मैं।” – प्रेमसागर ने कहा। उन्हें विदा करने के लिये बहुत से लोग सड़क पर आये। प्रेमसागर जी ने नाम बताया कि टोनी सिंह जी का परिवार था। वे एसडीओ साहब के मित्र हैं और व्यवसायी भी। वे लोग करीब तीन किमी साथ चले। औरतें भी थीं। “विदा लेते समय भईया लड़की की विदाई का सा माहौल हो गया था। लोगों की आंखों में आंसू थे।” – प्रेमसागर ने कहा। प्रेमसागर को उपमा देते नहीं पाया मैंने पहले। दृश्य भावभरा रहा ही होगा! एक अजनबी कांवर ले कर चल रहा व्यक्ति ऐसे आत्मीय हो जाता है!
मैने लोगों में उपजने वाली श्रद्धा की कल्पना की थी; ऐसी आत्मीयता की नहीं। लोगों के भाव समझने के लिये बाहर निकलना होता है, की-बोर्ड पर वे भाव नहीं उभरते। डिजिटल-ट्रेवलॉग की सीमायें हैं। बहुत संकुचित सीमायें। पर यह भी है कि उत्तरोत्तर प्रेमसागर अपने को बेहतर अभिव्यक्त करने लगे हैं। शायद मुझसे भी उनकी आत्मीयता बढ़ रही है।
आत्मीयता इस तरह है कि बात बात में प्रेमसागर मुझसे “उपदेश” भी पा रहे हैं और कभी कभी डांट भी। पर उसका बुरा माना हो, ऐसा फिलहाल नहीं लगा।
गोटेगांव से रवाना होने के पांच किलोमीटर आगे एक चाय की दुकान पर एक मुस्लिम बुजुर्ग बैठे थे। उन्होने बड़ी आत्मीयता से प्रेमसागर को पास बुलाया। उन्हें चाय पिलाई। गर्मी बहुत थी। इसलिये प्रेमसागर की उनसे बातचीत ज्यादा नहीं हुई। पर उनके बारे में उन्होने मुझे संदेश दिया –

एक चाय की दुकान में चाचा’ जिनका नाम मुन्ना खान है ने बड़े प्यार से बुला कर चाय पिलाये। इनका बहुत-बहुत धन्यवाद। मुन्ना खान जी बोले – “हमको इंसान से मतलब है धर्म से नहीं हम जानते हैं कि हम लोग इंसान हैं। मेरा मक्का मदीना या आपका शिव एक ही है। मेरा नाम मुन्ना खान है आइए आप चाय पी लीजिए” हम उनका बात को काट नहीं पाये। हमने बैठकर चाय पी ली। मुन्ना खान जी का बात व्यवहार हमको बहुत ही अच्छा लगा। हर हर महादेव |
और भी लोग मिले रास्ते में। ये सज्जन मिले जिन्होने प्रेमसागर का काफी आदर सत्कार किया। दही-चीनी खिलाया। उनका नाम तो नहीं बता सके प्रेमसागार, पर चित्र जरूर ले लिया। राह चलते कांवर उठाये यात्री से आदर, श्रद्धा, प्रेम से बात करना, पानी, गुड़, चाय या दूध आदि पिलाना – यह बड़ी बात है।

आगे रास्ते में घाटी थी, लगभग एक किलोमीटर लम्बी घाटी। हरियाली और नदी भी दिखी। इलाके में गन्ना की खेती बहुत होती है। चित्र अच्छे हैं, पर प्रेमसागर शायद धूप और गर्मी से बेहाल थे। वे शाम सात बजे के आसपास नरसिंहपुर पंहुचे। उनके चित्र भी मुझे रात दस बजे के बाद मिले।
एक मंदिर के चित्र भी भेजे हैं। कोई दादा महराज। “ये बहुत चमत्कारी बाबा हैं। इनको मैंने पानी पीते देखा।” – प्रेमसागर ने बताया।
ऐसा पानी या दूध पिलाने का अनुष्ठान कई मंदिरों-मूर्तियों में भारत में (और बाहर भी) होता है। सर्फेस टेंशन का प्रयोग कर ऐसा प्रतीत होता है कि मूर्ति तरल पी रही है। इसी फिनॉमिना के तहद भारत भर में गणेश जी दूध पिये थे एक बार! मैं वे सभी चित्र एक स्लाइडशो में लगा दे रहा हूं। यात्रा में सौंदर्य, भाव, श्रद्धा, चमत्कार, भौतिकी – सब गड्ड-मड्ड है!
*** द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची *** प्रेमसागर की पदयात्रा के प्रथम चरण में प्रयाग से अमरकण्टक; द्वितीय चरण में अमरकण्टक से उज्जैन और तृतीय चरण में उज्जैन से सोमनाथ/नागेश्वर की यात्रा है। नागेश्वर तीर्थ की यात्रा के बाद यात्रा विवरण को विराम मिल गया था। पर वह पूर्ण विराम नहीं हुआ। हिमालय/उत्तराखण्ड में गंगोत्री में पुन: जुड़ना हुआ। और, अंत में प्रेमसागर की सुल्तानगंज से बैजनाथ धाम की कांवर यात्रा है। पोस्टों की क्रम बद्ध सूची इस पेज पर दी गयी है। |
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कमोबेश बाकी धर्मावलम्बी भी ऐसा ही करते हैं। जब समूह बनते हैं तो वे संकीर्ण होने लगते हैं। हिंदू भी।
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Sir MP ke log bade dharmbhiru h aur aise nek kam par nikale vyakti ke liye bhari samman hota h
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नर्मदा परिकम्मा के मार्ग पर सत्कार की संस्कृति विकसित है. लोगों में श्रद्धा भाव बचपन से ही आ जाता है!
नर्मदा माई का प्रसाद है…
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अब यात्रा अपने रंग में आ रही है। भक्ति, भावना, आत्मीयता। जय हो ।
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सो मुझे भी लगता है पर समय काफी देना पड़ रहा है इस डिजिटल यात्रा को! 😁
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