दौलतपुर के जंगल का भ्रमण

21 अक्तूबर 21, रात्रि –

प्रेमसागर दौलतपुर में रुके तो दिन भर कमर सीधी करने में नहीं लगाये। मैं होता तो दिन भर सोने में व्यतीत करता। इसके अलावा कोई ‘भगत’ अगर पैर मींजने की श्रद्धा रखता तो उसे सेवा का पूरा अवसर देता। पर प्रेमसागर दिन में यात्रा नहीं किये तो जंगल देखने में लगाये। कहा जाता है कि फलाने आदमी के पैर में चक्र है। अर्थात वह चलता ही रहता है। हो सकता है प्रेम की पैर की उंगलियों और अंगूठे में चक्र (स्पाइरल) बना हो। वे आराम से बैठ ही न सकते हों! पैर में चक्र है, तभी वे मेरी तरह ओवर-वेट नहीं हैं। मेरा बी.एम.आई. 27 है। उनका तो 22-23 से ज्यादा नहीं होगा। (वास्तव में वह 22.4 है। वजन 63 किलो और ऊंचाई पांच फीट छ इंच।)

प्रेमसागर का शरीर अनुपात में है – बी.एम.आई. 22.4 है। चित्र दौलतपुर के जंगल का है।

वनकर्मी – अनिल लूनिया और अनारसिंह जी ने बातचीत में मुझे बताया कि दौलतपुर का वन 25 वर्ग किलोमीटर में है। वे विविधता के बारे में पूरी तरह स्पष्ट नहीं थे। प्रेमसागर ने बताया कि किसिम किसिम के वृक्ष हैं पर मूलत: तो सागौन ही है। वह विभाग ने लगाये भी सागौन ही हैं। कंटीली बाड़ लगा कर। पर सागौन की मोनोकल्चर जीव-जंतुओं के लिये उतनी सहायक नहीं। वनकर्मियों के अनुसार वहां हिरन, बनैले सुअर, नीलगाय और तेंदुआ हैं। तेंदुआ तो आये दिन रेस्ट हाउस के आसपास आ जाता है रात में। एक रात तो सड़क पर चल रहे वाहन वाले ने शोर मचाया तो पास के एक रेस्तरां के सीसीटीवी कैमरे को ध्यान से देखने पर तेंदुआ दिखा। अन्यथा वह पैर के निशान या पालतू जीवों के शिकार से पहचान में आता है।

दौलतपुर का वन

वन कर्मियों से बात कर यह तो लगा कि वन की बजाय आबादी की ओर रात में तेंदुआ के आने का कारण जंगल में भोजन पर्याप्त न मिल पाना होना चाहिये। कई बार उनके शावक शिकार के लिये बस्ती की बकरी आदि का शिकार करने आ जाते हैं। उन्होने बताया कि दौलतपुर के जंगल में 4-6 तेंदुये होने का अनुमान है।

वन कर्मी – अनिल लूनिया, अनार सिन्ह, हेमराज आदि दौलतपुर में रहते नहीं। उनके गांव आसपास हैं और वे मोटर साइकिल से यहां आते जाते हैं। अनिल देवास में रहते हैं। बाकी दोनो के गांव 5-10 किमी दूर हैं। अनारसिन्ह के पास 10 बीघा जमीन है और भाई मिस्त्री का काम करते हैं। वे गेंहू, चना, सोयाबीन, लाल तुअर, उडद आदि की खेती करते हैं। मटर की खेती नहीं करते। खेत खुला होने से मटर नीलगाय और बहेतू जानवर खा जाते हैं।

आष्टा और दौलतपुर के वन कर्मी

इन वन कर्मियों ने प्रेमसागर की बहुत सेवा की है। उनके रुकने के दोनो दिन वे अपने घर रात में नहीं गये। प्रेमसागर ने बताया कि दौलतपुर आते समय वे चार किलोमीटर पहले ही उनकी अगवानी में सड़क पर खड़े थे। लगता है प्रेमसागर की ख्याति प्रेमसागर के आगमन से पहले ही लोगों तक पंहुचने लगी है।

वन की प्रकृति के बारे में जो इनपुट्स मुझे लूनिया जी और अनारसिन्ह ने दिये, उससे मेरी जिज्ञासा और बढ़ गयी। भारत में यह बड़ी दिक्कत है – पुस्तकें, ट्रेवलॉग और जानकारियां उतनी नहीं जितनी होनी चाहियें। लोगों ने लिखा ही नहीं है। एक दूर दराज के गांव में बैठे मेरे पास या तो इण्टरनेट पर देखने की सुविधा है या अमेजन पर पुस्तकें देखने खरीदने की। दोनो में बहुत जानकारी नहीं मिलती और समय भी (उसे खोजने में) खूब लगता है। संयोग से प्रवीण चंद्र दुबे जी का फोन आ गया। वे मध्यप्रदेश वन विभाग के शीर्षस्थ पद से सेवा निवृत्त अधिकारी हैं। उनसे बातचीत में बहुत उपयोगी जानकारी मिली।

प्रवीण चंद्र दुबे जी से बातचीत – संवेदनशील (रिटायर्ड) वन अधिकारी के दु:ख –

मसलन वन अधिकारी भी जंगल के वृक्षों में 5-10 को पहचानते हैं। शेष को सतकटा (Miscellaneous) बता कर छुट्टी पा जाते हैं। यह तो वैसा ही हुआ कि घरनी को घर की चिंता ही नहीं है। महिला अपने एक दो बच्चों को नाम ले कर बुलाये और बाकी को “वगैरह – मिसलेनियस या सतकटा” कह कर निपटा दे तो उस परिवार का भगवान ही मालिक।

प्रवीण जी से प्रेमसागर की यात्रा की बातचीत तो हुई ही (वे भी दिन में एक दो बार प्रेम सागर से उनकी यात्रा के बारे में उनसे बातचीत करते हैं।), उनसे आसपास के वनों पर भी मैंने पूछा। प्रवीण जी ने बताया कि होशंगाबाद के पास टाइगर रिजर्व से रातापानी (रातापानी टाइगर रिजर्व, ओबेदुल्लागंज, रायसेन जिला) के रास्ते खेवनी (खेवनी वाइल्ड लाइफ सेंक्च्युरी, सिहोर-देवास) और इंदौर तक का एक पुराना बाघ के मूवमेण्ट का कॉरीडोर रहा है। पर खेती का दबाव बढ़ने और जंगल के कम होते जाने से यह कॉरीडोर टूटता गया है। एनटीसीए (नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी) का फोकस भी इस बात पर है कि बाघों की जीनेटिक डाइवर्सिटी के लिये इस कॉरीडोर को मजबूत किया जाये। अन्यथा बाघों का छोटे छोटे “द्वीपों” में सिमट जाने से उनकी संख्या एक स्थान पर बढेगी और वे आबादी पर हमला करने के लिये मजबूर हो जायेंगे।

प्रवीण चंद्र दुबे, निरीक्षण पर। पुराना चित्र सम्भवत: भोपाल के एसडीओ तरुण कौरव ने प्रेमसागर को दिया।

प्रवीण जी ने बताया कि इंदैर के चोरल के जंगलों में उन्होने बाघों के विचरण को पाया था। उनके अनुसार इंदौर खण्ड में पांच बाघ चिन्हित किये गये थे। नर्मदा के क्षेत्र में – हरदा-बैतूल-खण्डवा में बाघों की अच्छी खासी उपस्थिति है। पर कॉरीडोर/जंगल के नाम पर छोटे छोटे क्षेत्र बचे हैं – पहाड़ियों पर जो खेत में नहीं बदल पाये। जंगल की प्रकृति को ले कर भी मध्यप्रदेश में चिंता है। फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इण्डिया के अनुसार मध्यप्रदेश के 50 प्रतिशत वन डीग्रेड हो चुके हैं। वनों की बायोडाइवर्सिटी का तो यह हाल है कि 30 प्रतिशत वृक्ष-प्रजातियां समाप्त होने के खतरे में हैं। सिवारुक तो अब (पचास साल पहले की तुलना में) एक प्रतिशत ही बचे होंगे। दहिमन करीब दस प्रतिशत ही शेष हैं।

प्रवीण जी के अनुसार वन प्रबंधन की सोच ब्रिटिश काल से लकड़ी केंद्रित रही है। स्थानीय गिरिजनों और उनके जंगल के साथ परस्पर आदान प्रदान पर कोई फोकस ही नहीं होता। मसलन वन अधिकारी भी जंगल के वृक्षों में 5-10 को पहचानते हैं। शेष को सतकटा (Miscellaneous) बता कर छुट्टी पा जाते हैं। यह तो वैसा ही हुआ कि घरनी को घर की चिंता ही नहीं है। महिला अपने एक दो बच्चों को नाम ले कर बुलाये और बाकी को “वगैरह – मिसलेनियस या सतकटा” कह कर निपटा दे तो उस परिवार का भगवान ही मालिक।

प्रवीण जी अनेक वृक्षों के नाम बताते हैं – बीजा, चिरौंजी, शीशम, अंजन … ये सब खतम होने के कगार पर हैं। देशज भाषा में कहें तो जंगल खोखला हो रहा है। उसका बुढ़ापा है। नये पौधे जो लगाये जाते हैं उन्हें चरागाह की किल्लत की दशा में पशु चर जाते हैं। एक वन चौकीदार हटा तो वे पौधे भी तेजी से नष्ट हो जाते हैं। वन में नया कुछ बन ही नहीं रहा।

प्रवीण जी संवेदना रखते हैं वन के प्रति। उनका पोस्ट डॉक्टरल शोध का विषय भी है – Tribals and Forest Conservation. प्रेमसागर की द्वादश ज्योतिर्लिंग यात्रा का 50-60 भाग वनों से हो कर गुजरेगा। अगर ब्लॉग पर यात्रा विवरण की गुणवत्ता का ध्यान मुझे रखना है तो प्रवीण जी से निरंतर सम्पर्क रखना होगा।

कभी कभी लगता है कि मेरी “यात्रा-विवरण लेखन” की यात्रा भी कम दुरुह नहीं! वह अवश्य है कि मुझे “धूप-घाम-पानी-पत्थर” नहीं सहने हैं। पर यात्रा मुझे भी निखार ही देगी!

वर्षों तक वन में घूम-घूम,

बाधा-विघ्नों को चूम-चूम,

सह धूप-घाम, पानी-पत्थर,

पांडव आये कुछ और निखर।

– दिनकर

कल (22 अक्तूबर को) प्रेमसागर दौलतपुर से देवास के लिये चलेंगे। दौलतपुर से सीधे पश्चिम में है देवास। कल देवास यात्रा की चर्चा होगी। उसमें क्या होगा, मुझे भी नहीं अंदाज! यह भी एक तरह की डिजिटल-घुमक्कडी ही है।

*** द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची ***
पोस्टों की क्रम बद्ध सूची इस पेज पर दी गयी है।
द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची
प्रेमसागर पाण्डेय द्वारा द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर यात्रा में तय की गयी दूरी
(गूगल मैप से निकली दूरी में अनुमानत: 7% जोडा गया है, जो उन्होने यात्रा मार्ग से इतर चला होगा) –
प्रयाग-वाराणसी-औराई-रीवा-शहडोल-अमरकण्टक-जबलपुर-गाडरवारा-उदयपुरा-बरेली-भोजपुर-भोपाल-आष्टा-देवास-उज्जैन-इंदौर-चोरल-ॐकारेश्वर-बड़वाह-माहेश्वर-अलीराजपुर-छोटा उदयपुर-वडोदरा-बोरसद-धंधुका-वागड़-राणपुर-जसदाण-गोण्डल-जूनागढ़-सोमनाथ-लोयेज-माधवपुर-पोरबंदर-नागेश्वर
2654 किलोमीटर
और यहीं यह ब्लॉग-काउण्टर विराम लेता है।
प्रेमसागर की कांवरयात्रा का यह भाग – प्रारम्भ से नागेश्वर तक इस ब्लॉग पर है। आगे की यात्रा वे अपने तरीके से कर रहे होंगे।
प्रेमसागर यात्रा किलोमीटर काउण्टर


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

16 thoughts on “दौलतपुर के जंगल का भ्रमण

  1. भारतीय यात्रा वृतांतों की चर्चा से कुछ दिन पूर्व ही हाथ लगा प्रबोधकुमार सान्याल बाबू का “उत्तर हिमालय चरित” याद आया। बांग्ला से हिन्दी में अनूदित है, और 1965 से पूर्व (काफी भाग विभाजन से भी पूर्व) किए गए भ्रमण पर आधारित है, लेकिन जितना पढ़ा है, बहुत ही रोचक है।

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  3. इस बार इरीटेम में ४००० वृक्ष रोप कर जो आनन्द मिला है, वह अवर्णनीय है। वैविध्य तो बचा कर रखना है नहीं तो सब विलुप्त हो जायेगा। यहाँ रह कर औसत वनकर्मी से अधिक वृक्ष पहचान कर पा रहा हूँ।

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    1. ग्रेट! कुछ endangered प्रजाति के वृक्ष भी लगाने चाहिएं. अगर सम्भव हो तो उनके पौधे लाने के लिए प्रवीण दुबे जी के पास किसी को इंदौर भेजें. मेरे ख्याल से 8-10 विलुप्त प्राय पौधे तो वे दे ही सकेंगे.

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      1. इस बार मार्च के समय पुनः १०००० वृक्षों का लक्ष्य है दूसरे परिसर में। एक ऐसे ही दुर्लभ और विलुप्तप्राय वृक्षों का क्षेत्र बनायेंगे। इंदौर यात्रा लिख ली।

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    1. बहुत मौज है! मैं सोचता हूं मैं भी एक गेरुआ कुर्ता सिला लूँ! खूब सेवा सत्कार मिले। 😂

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