12 दिसम्बर 21, सवेरे –
कल सवेरे सवेरे देवी अहिल्याबाई निर्मित सोमनाथ मंदिर में जल चढ़ा आये प्रेमसागर। उसके बारे में पिछली पोस्ट में लिखा जा चुका है। बाद में प्रेमसागर ने बताया कि नये मंदिर में जल चढ़ाने की प्रथा नहीं है। वे पुराने मंदिर में अकेले रेस्ट हाउस से निकल कर गये और थोड़ी ही देर में जल अर्पण कर लौट आये।
नया मंदिर मई 1951 को स्थापित हुआ था। पुराना मंदिर देवी अहिल्याबाई होल्कर ने इस्वी सन 1783 में बनवाया था – जैसा मंदिर के बाहर लिखे पट्ट में है। इसका स्थान और परिकल्पना देवी अहिल्याबाई के स्वप्न में आयी थी और बिना समय गंवाये उन्होने मंदिर का निर्माण प्रारम्भ कराया था। बहुत से श्रद्धालु यह मानते हैं कि मंदिर में स्थापित शिवलिंग ही मूल सोमनाथ शिवलिंग है। यहां आसानी से स्थानीय पुजारी की सहायता से लोग पूजा अर्चना कर सकते हैं। और हर किसी को गर्भगृह में जाने की निर्बाध अनुमति है; जो नये मंदिर में नहीं है।
शिव कहां रहते होंगे? वे तो सब जगह हैं। पर अगर मेरी व्यक्तिगत राय मांगी जाये तो मैं यह कहूंगा कि सोमनाथ का गौरव, शान तो नये मंदिर में है; पर सोमनाथ का हृदय देवी अहिल्याबाई के मंदिर में है।

कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी जी सन 1922 में सोमनाथ मंदिर की अपनी यात्रा के बाद लिखते हैं –

पता नहीं वे किस अंश की बात कर रहे हैं। सम्भवत: सोमनाथ मंदिर के टूटे प्रस्तर खण्डों की या देवी अहिल्याबाई के मंदिर की। अगर वे देवी अहिल्याबाई के मंदिर पर कह रहे हैं तो उससे निम्न बातें मुझे स्पष्ट होती हैं –
- देवी अहिल्याबाई तो दिव्य महिला थीं। उनके नाम से वाराणसी, उज्जैन और सोमनाथ के ज्योतिर्लिंगों के पुनरुद्धार का वर्णन मिलता है। उन्हें तो हिंदू जागरण का मुकुट मानना चाहिये।
- उनके पहले और बाद के हिंदू मानस, सेठ और राजे रजवाड़े घोर चिरकुट (सॉरी, इससे बेहतर शब्द मुझे नहीं मिला) थे जो 1783 के 140 साल बाद (जब मुंशी जी ने लिखा) तक इस मंदिर की सामान्य देखरेख भी नहीं कर सके। सोमनाथ हिंदू धर्म का गौरव प्रतीक है। उसका सामान्य रखरखाव भी नहीं हुआ होगा सन 1922 में। अन्यथा मुंशी जी उसपर संतोष तो व्यक्त करते।
- यही हाल काशी के मंदिरों का है जहां लोग मंदिर को घर में हड़प गये थे और अब भी काशी विश्वनाथ कॉरीडोर के इतर मंदिरों में उनके पट्ट के ऊपर साड़ी बेचने वालों के बोर्ड देखता हूं। मंदिर परिसरों में साड़ी बेचक नजर आते हैं विश्वनाथ गली में।

पर इस 1783 के मंदिर का भी कुछ कायाकल्प हुआ है – ऐसा पत्रिका के एक न्यूज आइटम में है। अठाईस मार्च 21 की अहमदाबाद डेटलाइन की इस खबर के अनुसार सोमनाथ ट्रस्ट इसका लोकार्पण प्रधानमंत्री मोदी जी द्वारा करवाना चाहता है। पता नहीं वह हुआ या नहीं; पर वहां देवी अहिल्याबाई की प्रतिमा लग गयी है – ऐसा प्रेमसागर के भेजे चित्र से स्पष्ट है। प्रेमसागर के चित्रों में यह जूना मंदिर छोटा है, पर इस समय अच्छी दशा में दिखता है। उसके आगे कुछ दुपहिया वाहन खड़े हैं। कोई तामझाम नहीं है। मेरे आसपास के कई शिवालय ऐसे ही हैं। शिवजी के पास उनमें निर्बाध जाया जा सकता है। वहां लालची पण्डा-पुजारीगण भी नहीं घेरते। महादेव सब जगह हैं। कंकर में शंकर हैं। पर मेरे लिये महादेव 1783 वाले इस मंदिर में ही होंगे – वहां उनसे आसानी से अप्वाइण्टमेण्ट जो मिल सकता है। 🙂

प्रेमसागर जी अकेले रेस्ट हाउस में रहे। भोजन बाहर किसी भोजनालय में किया। दिन में पोरबंदर से दिलीप थानकी जी पोरबंदर से उनसे मिलने आये। साथ में उनके जीजा जी थे। एक चित्र में उनका भांजा भी दिखाई पड़ता है।


दिलीप जी ने सोमनाथ से नागेश्वर ज्योतिर्लिंग तीर्थ, दारुकवन की यात्रा का रोड-मैप भी प्रेमसागर को दिया है। दिन में उन्हें साथ सोमनाथ के आसपास के दर्शनीय स्थल – परशुराम जी की तपस्थली, कृष्ण का देहत्याग स्थल, हिरन-कपिला-सरस्वती का त्रिवेणी संगम दिखाये भी। भोजन आदि भी दिलीप जी ने कराया। यह लगता है कि महादेव ने आगे की नागेश्वर तीर्थ यात्रा के लिये प्रेमसागर को दिलीप जी को सुपुर्द कर दिया है। आगे के ट्रेवल-ब्लॉग का बारह आना भर इनपुट लगता है दिलीप जी देंगें। प्रेमसागर के जिम्मे केवल चलना और चित्र खींचना रहेगा! 😆

प्रेमसागर से फोन नम्बर ले कर मैंने दिलीप जी से बात की। वे दफ्तर निकलने की जल्दी में थे। उन्होने बताया कि उन्हें प्रेमसागर के बारे में अपने मित्र अजित प्रताप सिंह जी से पता चला। अजित लखनऊ में हैं और बस्ती/बहराइच से हैं। पता नहीं अजित प्रेमसागर के सम्पर्क में कैसे आये और उस सम्पर्क में इस ब्लॉग का कोई रोल है या नहीं। पर जैसे भी है; दिलीप थानकी जी सोमनाथ-पोरबंदर-द्वारका-नागेश्वर के बीच प्रेमसागर का पूरा साथ देंगे; यह लगता है।

आज सवेरे प्रेमसागर से बात की तो वे गड़ू में थे। किसी टेम्पो से वे सोमनाथ से सवेरे गड़ू पंहुच कर आराम कर रहे थे। जूनागढ़ से सोमनाथ के रास्ते वे गड़ू से हो कर गुजरे थे, इसलिये वहां तक की यात्रा उन्होने वाहन से सम्पन्न की। आगे, कांवर पदयात्रा करेंगे नागेश्वर तीर्थ के लिये घण्टे भर बाद वे रवाना होने वाले थे। नागेश्वर तीर्थ उनका पांचवा ज्योतिर्लिंग होगा यात्रा का। इस यात्रा में वे लगभग सौराष्ट्र के अरब सागर के समुद्र तट के साथ साथ ही चलेंगे।
आज की पोस्ट में इतना ही।
हर हर महादेव!
*** द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची *** प्रेमसागर की पदयात्रा के प्रथम चरण में प्रयाग से अमरकण्टक; द्वितीय चरण में अमरकण्टक से उज्जैन और तृतीय चरण में उज्जैन से सोमनाथ/नागेश्वर की यात्रा है। नागेश्वर तीर्थ की यात्रा के बाद यात्रा विवरण को विराम मिल गया था। पर वह पूर्ण विराम नहीं हुआ। हिमालय/उत्तराखण्ड में गंगोत्री में पुन: जुड़ना हुआ। और, अंत में प्रेमसागर की सुल्तानगंज से बैजनाथ धाम की कांवर यात्रा है। पोस्टों की क्रम बद्ध सूची इस पेज पर दी गयी है। |
प्रेमसागर पाण्डेय द्वारा द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर यात्रा में तय की गयी दूरी (गूगल मैप से निकली दूरी में अनुमानत: 7% जोडा गया है, जो उन्होने यात्रा मार्ग से इतर चला होगा) – |
प्रयाग-वाराणसी-औराई-रीवा-शहडोल-अमरकण्टक-जबलपुर-गाडरवारा-उदयपुरा-बरेली-भोजपुर-भोपाल-आष्टा-देवास-उज्जैन-इंदौर-चोरल-ॐकारेश्वर-बड़वाह-माहेश्वर-अलीराजपुर-छोटा उदयपुर-वडोदरा-बोरसद-धंधुका-वागड़-राणपुर-जसदाण-गोण्डल-जूनागढ़-सोमनाथ-लोयेज-माधवपुर-पोरबंदर-नागेश्वर |
2654 किलोमीटर और यहीं यह ब्लॉग-काउण्टर विराम लेता है। |
प्रेमसागर की कांवरयात्रा का यह भाग – प्रारम्भ से नागेश्वर तक इस ब्लॉग पर है। आगे की यात्रा वे अपने तरीके से कर रहे होंगे। |
जय महादेव,
प्रेमसागरजी को यात्रा सहाय के लिए महादेव ने गण व्यवस्था कर रखी है , ये मेरी श्रद्धा दिनों दिन बढ़ती जा रही है। दिलीप जी का यात्रा व्यवस्था में जुड़ना यही श्रद्धा को मजबूत कर रहा है।
आप इन सभी को जोड़ कर एक अनुपम चेन बना रहे है।
मुंशी जी नये मंदिर के पीछे आज भी संजोए गए अवशेषों की बात करते है। जो कि सिर्फ सभामंडप का बेज़ ही बचा है। उनके अन्य लेखों में व पुराने चित्र जो कि नये मंदिर परिसर में लगे है में दिखता है कि करीब 1870 के दशक तक खम्भे और सभामंडप का डॉम ठीकठाक ही थे जो कि 12 वी सदी में सोलंकी वंशने बनवाया था।
उनके जय सोमनाथ नावेल में कितना इतिहास है वो तो नही बता सकता परन्तु 11 व 12 सदी के सोमनाथ/प्रभास क्षेत्र का परिवेश व समाज व्यवस्था का अच्छा दर्शन मिल सकता है।
अहल्या देवी जी सचमें धर्म उत्थान के शिरोमणी है। हर बड़े धर्मस्थल पर उनका कोई न कोई अनुदान दिख ही जाता है। पुनः निर्माण हो या धर्मशाला या मंदिर की मरम्मत आपको एक तख्ती तो मिल ही जाती है उनके नामसे।
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जय हो! आपको भी यह विवरण आदि लिखने बताने के लिए महादेव ने ही काम पर लगाया है! 🙏🏻😊
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