10 दिसम्बर, रात्रि –
शाम के समय प्रेमसागर वेरावल रेलवे स्टेशन के सामने थे। घण्टा भर लगा उन्हें सोमनाथ पंहुचने में। आठ बजे के बाद मैंने बात की तो बताया पंहुच गये हैं और अब रेस्ट हाउस की ओर जा रहे हैं जहां उन्हे रुकना है। मैंने त्वरित गणना की। वे दो हजार चार सौ अठारह किलोमीटर चल चुके हैं प्रयागराज से यात्रा प्रारम्भ करने के बाद। साधन हीन व्यक्ति अपनी कांवर लिये अपनी आस्था और संकल्प के साथ इतनी बड़ी यात्रा, अकेले कर चुका है और यह अभी उस लम्बी यात्रा का एक मुकाम भर है – यात्रा की सम्पन्नता नहीं।
मैं ब्लॉग लेखन में प्रेमसागर के साथ अनेकानेक भावों को व्यक्त करने की छूट लेता रहा हूं। कभी कभी वह प्रेमसागर के साथ, उनकी प्रवृत्ति के साथ “अप्रिय मजाक” भी लग सकता है। पर सभी विघ्नों-बाधाओं और साधान हीनता के बावजूद इतना कर गुजरना – यह बहुत ही दैवीय चमत्कार है। उस चमत्कार, उस बदलाव, उस मनोवृत्ति में सुधार को प्रेमसागर ने कितना महसूस किया, वह तो वही बता सकते हैं; मैंने अपने में जरूर किया है। उनकी सोमनाथ तक की यात्रा, जो आज शाम वेरावल से सोमनाथ तक कांवर लिये शाम के घने होते अंधकार में रास्ता इधर उधर तलाशते बार बार उन्हें फोन करने तक सहयात्री रहा हूं; मुझमें बहुत कुछ बदलाव ले आयी है। यह प्रेमसागर के बारे में पिछले साढ़े तीन महीने से सतत जुड़ाव का ही परिणाम है। जय प्रेमसागर!
जूनागढ़ से निकलने के बाद प्रेमसागर की बीस किलोमीटर प्रति दिन चलने के औसत से उन्हे चार दिन लगने चाहिये थे सोमनाथ पंहुचने में। आठ दिसम्बर की शाम को वे किन्ही नागबाबा के मंदिर/आश्रम में रुके थे। वहां से वेरावल-सोमनाथ 61 किलोमीटर से अधिक दिखाता था नक्शा। मैं सोचता था कि वे बीस की औसत दूरी ही पार करें। पर लगता है सोमनाथ ज्यादा त्वरित चलने और पंहुचने को प्रेरित किया भगवान महादेव ने।
नौ दिसम्बर को प्रेमसागर सवेरे सात बजे के बाद ही निकल पाये। “भईया नागबाबा के मंदिर परिसर का दरवाजा ही सात बजे के बाद खुला। वही उनका खोलने का समय है। इसलिये चलने में आज देरी हुई। इतनी देरी पहले कभी नहीं हुई थी।” – उन्होने ने कहा।




उनका शाम का मुकाम क्या है? यह पूछने पर उन्होने बताया – और बड़े आत्मविश्वास से बताया – गोरू। सामान्यत: लोगों और स्थानों के नाम बताने में गड़बड़ कर जाते हैं प्रेमसागर।
मैंने नक्शे में गोरू तलाशा पर कोई स्थान आसपास नहीं मिला। फिर मिलते जुलते नामों की तलाश की। ग और र के योग से बनने वाले नाम तलाशे, पर सफलता नहीं मिली। अंत में वेरावल के रास्ते गड़ू मिला। वह नागबाबा के आश्रम से 38 किमी दूर था। प्रेमसागर वैसे भी देर से निकले थे। इतना चलने में रात 8-9 बजना ही था। यह भी मुझे अंदेशा था कि इलाके में जंगली जानवर – गिर के शेर के आने की सम्भावना तो होती ही है। शाम ढलने पर दो तीन घण्टे धुंधलके-अंधेरे में चलना कोई बुद्धिमानी नहीं, दुस्साहस होगा।
मैंने प्रेमसागार को सलाह दी कि वे पंद्रह किलोमीटर चलने के बाद जगह तलाशना प्रारम्भ कर दें जहां रात गुजारी जा सके। भले ही भोजन न मिले, पर रात गुजारने को छत मिल सके। वे अगर कोई शॉर्टकट लेने के लिये किसी गांव में जाते हैं (और शॉर्टकट तलाशने की बात प्रेमसागर बहुधा करते हैं, जो सामान्यत: होता नहीं) तो वहां किसी स्कूल या पंचायत भवन की उपलब्धता की भी कोशिश करें।
उस सब की जरूरत पड़ी नहीं। कंचा भाई – जिन्हे रेखा परमार जी ने उनसे सम्पर्क में रहने और यात्रा की ‘व्यवस्था’ के लिये कह रखा था; ने गड़ू के 11 किलोमीटर पहले किन्ही रंजीत परमार जी के पेट्रोल पम्प पर उनके रहने की व्यवस्था कर दी। इस प्रकार 9 दिसम्बर को प्रेमसागर 27 किमी चले।

परमार जी ने उन्हें घर बुला कर भोजन कराया। उनके स्नान आदि के लिये गरम पानी का इंतजाम किया। रात में रुकने के लिये दो विकल्प उन्हे दिये – उनके घर पर या पेट्रोल पम्प के विश्राम कमरे में। प्रेमसागर को बातों बातों में पता चला था कि रंजीत जी के घर पर लोग देर से उठने के आदी हैं। “यह मेरे लिये तो दुखदाई हो जाता भईया। तो मैंने कहा कि पेट्रोल पम्प पर ही रुक जाता हूं मैं। वहां एक ठो तखत था। गद्दा और रजाई रंजीत जी घर से भिजवा दिये। अपने कर्मचारियों को बोल भी दिया कि सवेरे बाबा जी के उठने पर नहाने के लिये गर्म पानी का इंतजाम कर देना।” – प्रेमसागर ने पेट्रोल पम्प का कमरा चुना।
वे अगले दिन सवेरे सवेरे निकल लेना चाहते थे। सोमनाथ के इतना पास आ चुके थे कि इस यात्रा को दो दिन की बजाय एक दिन में ही सम्पन्न करने की चाह उनके मन में बैठ गयी थी। जल्दी निकल कर और बीच में कम रुकते हुये वे शाम सांझ ढलने तक सोमनाथ मंदिर को छू लेना चाहते थे।
दस दिसम्बर की सुबह प्रेमसागर जल्दी ही निकल लिये। “परमार जी के कर्मचारी बहुत भले थे भईया। सवेरे नहाने के लिये उन्होने गरम पानी की व्यवस्था कर दी थी। पांच सवा पांच बजे मैं निकल लिया था।” प्रेमसागर ने मुझे बताया। मैंने उनसे सवेरे साढ़े छ बजे बात की थी तो उस समय वे पांच सात किलोमीटर चल चुके थे प्रभास तीर्थ (देवपाटन, प्रभास पाटन या सोमनाथ) की ओर। मैं वाराणसी के लिये निकल रहा था। उनको मैंने बताया तो प्रेमसागर ने अपना जोड़ा – “भईया, बाबा (विश्वेश्वर महादेव – काशी विश्वनाथ के महादेव) से मेरे लिये भी कह दीजियेगा कि हम हूं उन्हीं के बच्चा हैं। हमारा खियाल रखें।”
बाबा विश्वनाथ तो प्रेमसागर के सदा साथ हैं। पूरी यात्रा वे ही सम्पादित कर-करा रहे हैं। बीच बीच में प्रेमसागर की दैहिक-मानसिक शक्ति का लोड टेस्ट करते रहते हैं, पर ख्याल पूरा रखते हैं। यह पूरी यात्रा कोई साधारण यात्रा नहीं, उनकी संकल्प सिद्धि का साधन नहीं; अपने में तीर्थ बन गयी है।

मैं बाबा विश्वनाथ के मंदिर में गया। वहां तो मंदिर का कायाकल्प हो गया है। तेरह तारीख को प्रधानमंत्री जी मंदिर के परिसर के पुनर्नवीकरण का उद्घाटन करने वाले हैं। वह स्थान तो हमें – शैलेश पाण्डेय के सहयोग से देखने का अवसर मिला। वहां परिसर में पूजन में जो मनोकामना मैंने व्यक्त की, उसमें प्रेमसागर की यात्रा की सकुशल सम्पन्नता भी एक थी। प्रमुख थी।

दिन की यात्रा के कई चित्र हैं प्रेमसागर के। जैसे जैसे वे अरबसागर के तट की ओर बढ़े वैसे वैसे नारियल और ताड़ के वृक्ष दीखने लगे। नारियल की खेती होती भी नजर आयी। नदी का चित्र है। नक्शे में वह व्रजिमी दिखती है। जल पर्याप्त है नदी में। कुछ ही किलोमीटर के बाद वेरावल के पश्चिम में वह अरब सागार में जा कर मिलती है।

जूनागढ़ और सासन गिर के आसपास से कई नदियां निकलती, एक दूसरे में मिलती और अंतत: अरबसागर में जाती दिखती हैं। पूरा इलाका दर्शनीय होगा। पता नहीं इस सब को प्रेमसागर ने किस भाव से देखा होगा! आज तो वे चालीस किलोमीटर से ज्यादा ही चले और यात्रा की थकान के कारण रात में बहुत विस्तार से कुछ बताने की स्थिति में नहीं लगते थे।

शाम सवा पांच बजे वे वेरावल की सीमा में प्रवेश किये। उसके बाद लोगों से पूछते पूछते सोमनाथ की ओर बढ़े। कोई शॉर्टकट लेने के फेर में थोड़ा भटके भी। मैंने घण्टा भर बाद पूछा तो उन्होने कहा कि रास्ता सूझ नहीं रहा है। अंधेरा हो गया है और जंगल जैसा लग रहा है। लोगों ने इस रास्ते की बजाय सड़क मार्ग से जाने को कहा है।
इस प्रकार शॉर्टकट छोड़ सड़क पकड़ कर प्रेमसागर एक घण्टे बाद सोमनाथ पंहुचे।
साढ़े सात बजे की उनकी लाइव लोकेशन के अनुसार वे सोमनाथ मंदिर के आसपास थे। बाद में पता चला कि मंदिर वे बाहर से देख चुके और रात की रोशनी में लिये उनके चित्रों से स्पष्ट होता है कि वे सोमनाथ मंदिर में शिवलिंग का भी दर्शन कर आये थे।

यह संतोष हो रहा है कि द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर यात्रा का चौथा ज्योतिर्लिंग; और शिवपुराण में वर्णित प्रथम ज्योतिर्लिंग तक पैदल चलते हुये प्रेमसागर पंहुच गये हैं। कल वे भगवान सोमनाथ का दर्शन कर उन्हें गंगा, अमरकण्टक (नर्मदा) और ॐकारेश्वर में लिया कावेरी का जल अर्पित करेंगे। आज का दिन महत्वपूर्ण रहा है, जब उन्होने सोमनाथ के दर्शन किये। कल का दिन अति महत्व का होगा, जब वे कांवर का जल चढ़ायेंगे!

अपडेट सवेरे 11 दिसम्बर 21 –
प्रेमसागर ने 8:06 पर सोमनाथ मंदिर से बाहर निकल कर फोन किया। मेरी पत्नी और मुझे चरण स्पर्श किया – बोल कर। बताया कि विधिवत जल चढ़ा दिया महादेव को। आज कुछ स्थान देखेंगे और कल सवेरे वे नागेश्वर तीर्थ के लिये रवाना हो जायेंगे।
मंदिर में प्रवेश के पहले मोबाइल इत्यादि सब रखा लिया जाता है। इस कारण से उस समय का कोई चित्र उनके पास नहीं है। उनकी आवाज में एक महान उपलब्धि पाने का भाव स्पष्ट था। निश्चय ही इसके लिये उन्होने बड़ी कांवर साधना की है।
घण्टा भर बाद प्रेमसागर ने समुद्र किनारे से वीडियो कॉल किया। पांच रुपये का टिकट कटा कर समुद्र तट पर पंहुचे थे वे। उन्होने सोमनाथ मंदिर और समुद्र दिखाया मुझे। अपना चेहरा भी दिखाया। खूब प्रसन्न चेहरा! हायर सेकेण्डरी के इम्तिहान में मैरिट लिस्ट में आने पर मेरा भी चेहरा इतना प्रसन्न रहा होगा!

जय सोमनाथ! हर हर हर हर महादेव!
*** द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची *** प्रेमसागर की पदयात्रा के प्रथम चरण में प्रयाग से अमरकण्टक; द्वितीय चरण में अमरकण्टक से उज्जैन और तृतीय चरण में उज्जैन से सोमनाथ/नागेश्वर की यात्रा है। नागेश्वर तीर्थ की यात्रा के बाद यात्रा विवरण को विराम मिल गया था। पर वह पूर्ण विराम नहीं हुआ। हिमालय/उत्तराखण्ड में गंगोत्री में पुन: जुड़ना हुआ। और, अंत में प्रेमसागर की सुल्तानगंज से बैजनाथ धाम की कांवर यात्रा है। पोस्टों की क्रम बद्ध सूची इस पेज पर दी गयी है। |
प्रेमसागर पाण्डेय द्वारा द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर यात्रा में तय की गयी दूरी (गूगल मैप से निकली दूरी में अनुमानत: 7% जोडा गया है, जो उन्होने यात्रा मार्ग से इतर चला होगा) – |
प्रयाग-वाराणसी-औराई-रीवा-शहडोल-अमरकण्टक-जबलपुर-गाडरवारा-उदयपुरा-बरेली-भोजपुर-भोपाल-आष्टा-देवास-उज्जैन-इंदौर-चोरल-ॐकारेश्वर-बड़वाह-माहेश्वर-अलीराजपुर-छोटा उदयपुर-वडोदरा-बोरसद-धंधुका-वागड़-राणपुर-जसदाण-गोण्डल-जूनागढ़-सोमनाथ-लोयेज-माधवपुर-पोरबंदर-नागेश्वर |
2654 किलोमीटर और यहीं यह ब्लॉग-काउण्टर विराम लेता है। |
प्रेमसागर की कांवरयात्रा का यह भाग – प्रारम्भ से नागेश्वर तक इस ब्लॉग पर है। आगे की यात्रा वे अपने तरीके से कर रहे होंगे। |
प्रेम सागर जी एक निश्चल निर्मोही तीर्थ यात्री हैं औरआप उनके ई-सहयात्री। सो आपको भी भोलेनाथ का प्रसाद मिल रहा। पिछले सोमवार एक विवाह समारोह में वाराणसी में था।बाबा विश्वनाथ, काल भैरव और विंध्याचल माई के दर्शन किये। काशी विश्वनाथ कॉरिडोर, उन लोगों को जवाब है जो क्योटो का नाम लेकर व्यंग्य करते थे। विंध्याचल में भी सड़कें चौड़ी की गईं हैं।
काशी विश्वनाथ कॉरिडोर लोकार्पण पर कल कॉरिडोर के उद्घाटन के बाद 7 लाख घरों में 16 लाख लड्डू का प्रसाद भेजा जाएगा। कटका तक भी शायद पहुंचे😊
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मुझे तो शैलेश ने एडवान्स में कचौरी जलेबी खिला दिया है महादेव की ओर से! 😁
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प्रेम सागर जी एक निश्चल निर्मोही तीर्थ यात्री हैं औरआप उनके ई-सहयात्री। सो आपको भी भोलेनाथ का प्रसाद मिल रहा। पिछले सोमवार एक विवाह समारोह में वाराणसी में था।बाबा विश्वनाथ, काल भैरव और विंध्याचल माई के दर्शन किये। काशी विश्वनाथ कॉरिडोर, उन लोगों को जवाब है जो क्योटो का नाम लेकर व्यंग्य करते थे। विंध्याचल में भी सड़कें चौड़ी की गईं हैं।
काशी विश्वनाथ कॉरिडोर लोकार्पण पर कल कॉरिडोर के उद्घाटन के बाद 7 लाख घरों में 16 लाख लड्डू का प्रसाद भेजा जाएगा। कटका तक भी शायद पहुंचे😊
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Astrologer Siddharth ट्विटर पर –
हर हर महादेव,
जय विश्वनाथ
जय सोमनाथ।
यात्रा निर्बाध जारी रहे 🙏
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