पोरबंदर के आसपास कांवर यात्रा पर विचार

20 दिसम्बर 21 –

नवी बंदर से नागेश्वर तीर्थ की कांवर यात्रा एक अलग प्रकार से हो रही है प्रेमसागर की। यह सब दिलीप थानकी जी के काठियावाड़ी आतिथ्य का प्रभाव है। काठियावाड़ का स्वागत सत्कार भगवान को भी उनका स्वर्ग भुला देता है तो प्रेमसागर की यात्रा का स्वरूप बदलना तो छोटी बात है। प्रेमसागर की कांवर से उनका बीस तीस किलो का बोझा हट गया है। वह दिलीप के जीजा जी के घर पर रखा है। कांवर में केवल जल ही है। जल के लोटे। कोई फोटो नहीं है जिससे पता चले कि दोनो ओर कांवर बैलेंस कैसे की है। शायद जल के लोटे ही आधे एक ओर आधे दूसरी ओर लटका रखे हों। अब वजन केवल तीन किलो का होगा।

आज सवेरे पूछा तो वे साढ़े छ बजे पोरबंदर से चल कर द्वारका की ओर बढ़ रहे हैं। जहां तक जायेंगे, जायेंगे। शाम को दिलीप जी अपने वाहन से उन्हे वापस पोरबंदर ले आयेंगें रात्रि विश्राम के लिये। अगले दिन फिर उसी स्थान पर जा कर आगे यात्रा करेंगे। द्वारका 106 किमी है पोरबंदर से। तीन दिन लगने चाहियें। पर प्रेमसागर के पास सामान कम है तो हो सकता है यह दूरी वे दो दिन में ही तय कर लें। उन्हें ऐसा करना नहीं चाहिये। पर यह मैंने समझ लिया है कि क्या करना चाहिये और क्या नहीं; उसपर मुझे बहुत माथापच्ची नहीं करनी है। उनकी यात्रा मॉनीटर करने का फेज नहीं रहा। अब उनकी लाइव लोकेशन देखने की भी जरूरत महसूस नहीं होती। वे सौराष्ट्र के आतिथ्यस्वर्ग के आनंदलोक में हैं।

दिलीप थानकी जी के गांव का समुद्र किनारा। प्रेमसागर के साथ बालक दिलीप जी की बहन का पुत्र है।

मैंने प्रेमसागर से पूछा – कोई गांव दिखता है? प्रेमसागर का कहना था कि वे हाईवे पर चल रहे हैं। दोनो ओर दूर दूर तक गांव नहीं है। तटीय इलाका है पर समुद्र के पास से नहीं गुजर रहा हाईवे। जमीन सामान्य है। रेतीली नहीं। हाईवे पर यातायात बहुत है। वाहनों की आवाज फोन पर बात करते समय आती रहती है – लगभग निरंतर।

मेरी पत्नीजी मेरी फोन की बातचीत सुन कर कहती हैं – “इतना जोर जोर से क्यों बात करते हो। वह तुम्हारा कोई कर्मचारी नहीं है जिससे तुम्हें पोजीशन लेनी हो या निर्देश देने हों।” एक सज्जन मुझे फोन कर कहते हैं कि मुझे प्रेमसागर के बारे में लिखते समय उन्हें प्रेमसागर नहीं; “बाबाजी, महराज जी या प्रेम महराज” लिखना चाहिये। लेखन में सम्मान और श्रद्धा झलकनी चाहिये। पर मैं उन्हें मना कर देता हूं। प्वाइण्ट ब्लैंक! साफ साफ। मैं प्रेमसागर से स्नेह करता हूं। वही भाव प्रेमसागर की यात्रा के शुरुआती दौर के हम तीन लोग – प्रवीण दुबे, सुधीर पाण्डेय और मैं रखते हैं। हम तीनों उन्हे सरल, संकल्पित और जुनून वाला व्यक्ति मानते हैं और इस आशंका से ग्रस्त रहे हैं कि कहीं लोग प्रेमसागर को बाबा जी बना कर ऐसा न कर दें कि उनका व्यक्तित्व जाने अनजाने उनके आदर-सम्मान में से कोई ऐसा तत्व सोख कर अहंकार न संग्रहीत कर ले। (हमारे हिसाब से) वह विनाशकारी होगा। भगवान इस प्रकार की कलाकारी करते हैं। … मुझे नहीं लगता कि उन सज्जन को समझ आयी मेरी बात। पर यह जरूर हुआ कि उनके द्वारा बिनमांगी सलाह पर काफी समय तक मुझे क्रोध आता रहा।

इस प्रकरण पर मेरी पत्नीजी जोड़ती हैं – “तुम्हारा क्रोध वाजिब है। पर उस क्रोध को प्रेमसागर पर क्यों उतारते हो। मैं तो कहती हूं कि प्रेमसागर के बारे में लिखना बंद कर दो। लेकिन वह भी नहीं करते। कम से कम जो चल रहा है; उसे सहज भाव से तो लो। प्रेमसागर महादेव की कठपुतली है, तुम्हारी तो नहीं। वह तुम्हारा कोई रेलवे का कर्मचारी थोड़े ही है जिसे तुम निर्देश देने की सोचो।” मुझे लगता है कि मेरी पत्नीजी मुझसे बेहतर समझती हैं प्रेमसागर को।

मुझे याद आता है पिलानी में एक बार स्वामी चिन्मयानंद जी ने एक प्रसंग सुनाया था। राम एक दिन हनूमान जी से पूछते हैं – कस्त्वम? तुम कौन हो?

हनूमान जी – कस्त्वम? तुम कौन हो?

हनूमान जी समझ जाते हैं कि यह सरल प्रश्न नहीं है। इसलिये उनका उत्तर हिंदू दर्शन का सार है। हिंदुत्व की सभी शाखाओं का संश्लेषण। वे कहते हैं –

देहबुद्‍ध्या त्वद्दासोऽहं जीवबुद्‍ध्या त्वदंशकः।
आत्मबुद्‍ध्या त्वमेवाहम् इति मे निश्चिता मतिः॥

“यह मेरा निश्चित मत है कि देहबुद्धि से मैं आपका दास हूं। जीव बुद्धि से आपका अंश हूं। और आत्म बुद्धि से तो मैं आप ही हूं।” द्वैत, विशिष्टाद्वैत और अद्वैत तीनो का संश्लेषण है हनूमान जी के कथन में।

[यह महत्वपूर्ण श्लोक श्रीमत शंकराचार्य कृत हनुमत्पंचरत्न स्तोत्र का अंश है।]

प्रेमसागर जिस इलाके में घूम रहे हैं, वह द्वैतवादियों का गढ़ लगता है। स्वामीनारायण सम्प्रदाय भक्ति मार्ग का प्रसार करता है। वहां श्रद्धा और आस्था बहती है। वहां अद्वैत की कठोरता-रुक्षता या अनास्थावादियों का उपहास कत्तई नहीं है। अत: उसमें प्रेमसागर की बाबाजी या महराज जी वाली ईमेज बनना स्वाभाविक ही है। और काठियावाड़ ही नहीं, पूरा देश भी कमोबेश, द्वैत सिद्धांत से प्रभावित है – मूलत:। जीडी, तुम्हें क्रोध-कष्ट-खिन्नता नहीं होनी चाहिये उन सज्जन के “सुझाव” पर!

मंदिर में प्रेमसागर।

प्रेमसागर की यात्रा पर आगे किसी पोस्ट में लिखूंगा। दिलीप थानकी जी ने उनकी सोमनाथ से द्वारका-नागेश्वर तक की यात्रा का विधिवत इंतजाम कर दिया है। नवीं बंदर से पोरबंदर (जिसकी यात्रा वे 18 दिसम्बर को कर चुके हैं) और आगे नागेश्वर तक प्रेमसागर को अपने सामान का बोझ भी उठा कर नहीं चलना है। उसके आगे की यात्रा भी निर्विघ्न हो सके, इसका इंतजाम भी वे सोच रहे हैं। वे और उनके समुदाय के लोग बाबा प्रेमसागर से अत्यंत प्रभावित हैं।

दिलीप थानकी, उनका भांजा और प्रेमसागर।

यूं लग रहा है – उत्तरोत्तर यह प्रकटित हो रहा है – कि दिलीप थानकी का सम्पर्क भी प्रेमसागर की यात्रा में एक चमत्कार ही है। हां, यह जरूर है कि चमत्कार पर जोर दे कर मैं प्रेमसागर को महिमामण्डित करने या ‘महराज’ बनाने का कृत्य नहीं करना चाहता। उन्हें एक सरल कांवर-पदयात्री ही रहना चाहिये।

हर हर महादेव।

*** द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची ***
पोस्टों की क्रम बद्ध सूची इस पेज पर दी गयी है।
द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची
प्रेमसागर पाण्डेय द्वारा द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर यात्रा में तय की गयी दूरी
(गूगल मैप से निकली दूरी में अनुमानत: 7% जोडा गया है, जो उन्होने यात्रा मार्ग से इतर चला होगा) –
प्रयाग-वाराणसी-औराई-रीवा-शहडोल-अमरकण्टक-जबलपुर-गाडरवारा-उदयपुरा-बरेली-भोजपुर-भोपाल-आष्टा-देवास-उज्जैन-इंदौर-चोरल-ॐकारेश्वर-बड़वाह-माहेश्वर-अलीराजपुर-छोटा उदयपुर-वडोदरा-बोरसद-धंधुका-वागड़-राणपुर-जसदाण-गोण्डल-जूनागढ़-सोमनाथ-लोयेज-माधवपुर-पोरबंदर-नागेश्वर
2654 किलोमीटर
और यहीं यह ब्लॉग-काउण्टर विराम लेता है।
प्रेमसागर की कांवरयात्रा का यह भाग – प्रारम्भ से नागेश्वर तक इस ब्लॉग पर है। आगे की यात्रा वे अपने तरीके से कर रहे होंगे।
प्रेमसागर यात्रा किलोमीटर काउण्टर

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

4 thoughts on “पोरबंदर के आसपास कांवर यात्रा पर विचार

  1. जय महादेव।

    अच्छा लगा ये आयाम। बेहतर भावनात्मक निरुपण व लालित्यपूर्ण भी जो कि आप कहते थे कि आप के लेखन में नही है।
    आपकी मानसिक हलचल दर्शित होना प्राथमिक उद्देश्य है। वैसे ये ट्रावेलोग आपके सम्पूर्ण ब्लॉग संसार का एक प्रकरण है सो प्रेमसागरजी को एक पात्र के तौर पे ही रखें व उन्हें बाबाजी की तरह ग्लोरीफाई ना हो बहुत ठीक लगा आपका ये स्टांस। प्रेमसागरजी का ध्येय भी यह नही है यात्रा का, सो उनकी दिशा भी न भटके ये प्रयत्न करना भी वाजिब है। काठियावाड़ में द्वेत मत ही 99% है, अद्वेतवाद सिर्फ कुछ चिंतक के व्यवहार व ब्रह्माकुमारी अनुयायियों के अनुसरण में है।
    शिक्षापत्री में अन्य धर्म की निंदा व अपने धर्म की निंदा सुनना व करना दोनो वर्ज्य है। पर पूरा इलाका स्वामीनारायण सम्प्रदाय अनुसरण नही करता पर कोई साफ सम्प्रदाय में न बंधे होने के बावजूद मुख्यत भक्ति मार्गीय ढांचा समाज का जनजीवन है।

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    1. भक्ति और अर्थ (पैसे) के प्रति जागरूकता – यह दोनों अच्छे लगे मुझे. श्री अरविंद भी कहते हैं कि धन असुरों के पास चला गया है और उसे वापस लाना सभी मानवों का कर्तव्य है. उन्हें पढ़ने के पहले मैं भी धन को आत्मिक उन्नति में बाधक मानता था.
      शिक्षा पत्री इस कोण से मुझे रुचती है.

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      1. धन को हाथ का मेल बताना आज भी सन्यासी फैशन है (ज्यादातर सामाजिक जिम्मेदारी से भागने वाले संन्यासी)। और 18 साल से 30 का होने तक यही भाव मेरे मन मे भी था कि धन बाधक बनके हमे रोकेगा अपने अंतिम उद्देश्य में।
        शिक्षापत्री में सिर्फ सन्यासी को ही धन संचय से रोका है, संसारी जीवनमे उसके सही मैनेजमेंट को उत्तम तरीके से करने के लिए नियम दिए गए है। एक सामाजिक मुहावरा है काठियावाड़ में, (जो टीला वालो होय तो पैसो तो बनावे ज) अगर स्वामीनारायण से है तो कोई भी तरीके से पैसा तो बनाएगा ही, पर बेहतर आर्थिक मेनेजमेंट अगर आपके धर्मपालन का सिद्धांत में सम्मिलित हो तो ये आपकी अन्य प्रगति को भी सम्पूर्ण करेगा।

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        1. आपकी टिप्पणियां पढ़ कर शिक्षापत्री को ध्यान से पढ़ने का मन बनता है. 😊

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