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मेरे घर से 7-8 किमी दूर है वह जगह। गड़ौली ग्राम पंचायत के कमहरिया और अगियाबीर गांवों के बीच गंगा तट का वह क्षेत्र जहां पिछले चार दशक से खेती नहीं होती थी और जहां कुशा, कासा या सरपत जैसी जिद्दी घास ने अपना साम्राज्य बना लिया था। ब्लॉग की पिछली कुछ पोस्टों में उस जगह को मैंने “गौ गंगा गौरीशंकर” परियोजना के नाम से लिखा था। अब उस जगह को नाम दिया गया है – गड़ौली धाम। उसी नाम के अनुसार साइन बोर्ड भी लग गये हैं। “गड़ौली धाम” नाम बातचीत का शब्द बन रहा है।
मेरे आकलन से गड़ौली धाम का काम साल भर में पर्याप्त सार्थक जड़ पकड़ लेगा और उसके सामाजिक-आर्थिक परिणाम भी दिखने लगेंगे।
वहां जो कुछ बनेगा; वह पूर्वांचल के पर्यटन, संस्कृति, धर्म, स्वास्थ्य और आर्थिक विकास के विभिन्न पहलुओं से महत्वपूर्ण स्थान होगा ही; मेरे लिये व्यक्तिगत रूप से गांव-देहात से सार्थक जुड़ाव का निमित्त भी बनेगा। मैं स्वयं इसे बड़ी आशा से देखता हूं। और यह भी चाहता हूं कि परियोजना जिस प्रकार से विकसित हो, उसके बारे में सतत लिख कर एक महत्वपूर्ण मेमॉयर बना सकूं।
मेरे आकलन से गड़ौली धाम का काम साल भर में पर्याप्त सार्थक जड़ पकड़ लेगा और उसके सामाजिक-आर्थिक परिणाम भी दिखने लगेंगे। बाकी; भविष्य की अनिश्चितता के बारे में कौन क्या कह सकता है?!
कुछ दिन पहले मुझे सुनील ओझा जी का एक संदेश मिला कि मुझे 20-21-22 फरवरी को गड़ौली धाम के कार्यक्रम के कर्यक्रम में बतौर एक यज्ञ-यजमान के रूप में सपत्नीक जुड़ना है। यह मेरे लिये गौरव की बात थी – यद्यपि अपनी ऑस्टियो-अर्थराइटिस के कारण पद्मासन या सुखासन या साधारण पालथी मार कर जमीन पर बैठना सम्भव नहीं था, और यज्ञ-अनुष्ठान में जजमान के रूप में जुड़ना-बैठना नहीं हो पाता; पर मुझ साधारण व्यक्ति को ओझा जी ने यज्ञ-यजमानों की सूची में जोड़ कर जो सम्मान दिया, वह मुझे और मेरी पत्नीजी को अभिभूत करने वाला था।

इक्कीस तारीख को सुनील ओझा जी मुझे गड़ौली धाम परिसर में घूमते मिल गये। उन्होने कहा कि मेरे लिये वहां कोई भूमिका होनी चाहिये। वहां आने और घूम कर चित्र खींचने भर में इति नहीं होनी चाहिये। मैंने उन्हें अपने योगदान की बात कही – कि मैं ब्लॉग लेखन के माध्यम से गड़ौली धाम की गतिविधियों को लिखने में अपना योगदान दे सकता हूं। मुझे प्रसन्नता हुई कि ओझा जी ने इसे महत्वहीन कार्य समझ कर खारिज नहीं किया। तो अगामी समय में गड़ौली धाम के साकार होने की प्रक्रिया को ब्लॉग पर प्रस्तुत करूंगा।
अगले साल भर मुझे नित्य 2-3 घण्टे गड़ौली धाम की गतिविधियां देखने, उसके बारे में अतिरिक्त जानकारी जुटाने और लिखने के लिये अपने विचारों को व्यवस्थित करने में मेहनत करनी पड़ेगी। अभी हाल ही में मैने एक कांवर पदयात्री की यात्रा का वृत्तांत लिखने में जो जुनून से लगाव महसूस किया; उससे गड़ौली धाम के बारे में लेखन कम मेहनत लेगा – वैसा मुझे लगता नहीं है। यह भी एक परियोजना के साकार होने का यात्रा वृतांत ही होगा!
अब देखता हूं कि मैं क्या कर पाता हूं! 🙂
शैलेश पाण्डेय ने मुझे गड़ौली धाम की जानकारी के बारे में जारी एक पुस्तिका की पीडीएफ प्रति दी। छप्पन पेज की यह पुस्तिका प्रॉजेक्ट की मूल अवधारणा प्रस्तुत करती है। मैं उस पुस्तिका/ब्रोशर को नीचे प्रस्तुत कर रहा हूं। एक एक पेज में चित्र हैं और कुछ लेखन। वह गड़ौली धाम से पहला परिचय देने के लिये बहुत सटीक है।
(गड़ौली धाम, काशी क्षेत्र की ई-पुस्तिका/ब्रोशर अगर ब्राउजर में स्क्रॉल करने के लिये न दिख रही हो तो कृपया डाउनलोड बटन क्लिक कर डाउनलोड करें। अधिकांश मोबाइल/टैब पीडीफ डॉक्यूमेण्ट Embedded नहीं दिखाते।)
पुस्तिका के प्रारम्भ में सुनील ओझा जी का कथन है। उनके शब्द हैंं- “आत्मीय जनों; सेना के एक टेण्ट से, प्रथम नवरात्रि को प्रारम्भ परिकल्पना को मूर्त रूप लेते देख रहा हूं, तो यह मुझे किसी दिव्य दैवीय योजना की परिणति का आभास कराती है। गौ, गंगा, गौरीशंकर का पावन आह्वान, माँ विंध्यवासिनी और माँ गंगा का सानिध्य गड़ौली धाम को एक अलौकिक आभा प्रदान करता है, जहां आध्यात्म, विज्ञान, मौलिक चिंतन, परम्पराओं और पद्धातियोंं का अद्भुत क्रियान्वयन हम देख और आत्मसात कर पाते हैं। इस दिव्यता में तथा इस विस्तृत परिवार में मैं आपका हृदय से स्वागत करता हूं।”
“अलौकिक आभा”, “आध्यात्म, विज्ञान, मौलिक चिंतन, परम्पराओं और पद्धातियोंं का अद्भुत क्रियान्वयन” – यह सब मैं पिछले कुछ महीनों में सवेरे की उस स्थान की साइकिल से सैर में धीरे धीरे पनपते देखता रहा हूं। सवेरे सात आठ बजे वहां “सेना का टेण्ट” उसमें आरती करते सतीश, निर्बाध विचरते नीलगाय, कुछ काम करते लोग/मजदूर भर हुआ करते थे। धीरे धीरे गतिविधियां बढ़ीं। एक दिन सतीश ने बताया कि बापू जी (सुनील ओझा जी) ने शाम गंगा आरती प्रारम्भ करने को कहा है। सतीश ही वह करने लगे। भयंकर शीत में भी गंगा आरती होती रही। एक परम्परा बनी।
मैंने आसपास के गांवों के लोगों को जोड़ने की चेष्ठा भी देखी। आसपास गांवों घूमते हुये लोगों से बातचीत में उनकी अपेक्षायें, आशंकायें और (सहज) ईर्ष्या, परनिंदा और छुद्र कुटिलता के भी दर्शन हुये। पर सभी यह जरूर समझ रहे थे कि कुछ अनूठा होने जा रहा है, जो इस अलसाये ग्रामीण परिवेश में अत्यधिक बदलाव लायेगा।
शीत बढ़ा तो मेरा वहां जाना कम हो गया। फिर लगभग महीने भर तो जाना हुआ ही नहीं। अचानक 18 फरवरी को सतीश सिन्ह का फोन आया – बाबूजी, दस गायें आ गयी हैं। आप जरा आइये।
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उस दिन शैलेश पाण्डेय के साथ शाम के समय गड़ौली धाम पंहुचा। साहीवाल गायें – भूरी रंग की वहां आ गयी थीं। उनके साथ उनके बछड़े-बछियां भी थे। एक गाय तो वहां आने के बाद ही बच्चा जनी। आश्चर्य और आनंद का वातावरण था। बहुत शुभ माना जा रहा था यह।

गायों के साथ आये दो कर्मी उनकी देखभाल कर रहे थे। गायों के लिये शेड तैयार हो रहा था। गाय के साथ बंसी बजाते कृष्ण भगवान की भव्य प्रतिमा ट्रक से अनलोड हो रही थी। उसी ट्रक में बड़े आकार के नन्दी की प्रतिमा आयी थी। अगले तीन दिन के समारोह की पूर्व तैयारी चल रही थी।
ढलते संझा के सूरज की रोशनी में वह सब बहुत मोहक था!
एक सज्जन मधुकर चित्रांश जी की शादी की सालगिरह थी। उन सज्जन और उनकी पत्नी को गंगा तट पर जा कर एक लोटा आयी हुई गायों का दूध गंगाजी को चढ़ाने के लिये कहा सुनील ओझा जी ने। उसके बाद अंगरेजी तरीके से उन दोनो ने केक भी काटा। आश्रम से जुड़े स्वामी जी – स्वामी अक्षयानंद सरस्वती जी ने संस्कृत में उनको आशीर्वाद भी दिया। ऐसी अनूठी सालगिरह को मधुकर दम्पति कभी भूल नहीं पायेंगे। गड़ौली धाम के साथ उनका जुड़ाव भी सम्भवत: स्थाई रहे।

गायों का आगमन, लोगों की उपस्थिति, श्रीकृष्ण की प्रतिमा का लगाया जाना और नंदी प्रतिमा का परिसर में आना – यह सब कल्पना से मूर्त रूप में साकार होते हुये देखने के हम साक्षी बन रहे थे। आगे जो भी कुछ होता है, मां सरस्वती की प्रेरणा से जो भी सृजन होता है; उसे भी नियमित देख कर लिखने और प्रस्तुत करने की चेष्ठा रहेगी मेरी। वैसे पहले ही Gadauli Dham वर्ग में सात पोस्टें ब्लॉग पर जा चुकी हैं जो यहां से पहले के जुड़ाव को दर्शाती हैं। आगे यह संख्या जल्दी बढ़ने लगेगी।
गौ गंगा गौरीशंकर की जय! जय श्रीकृष्ण। हर हर महादेव!

रोचक रहा जानना
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Dinish Shukla जी फेसबुक पेज पर –
अद्भुत। इन उपक्रमों में सभी जातियां सक्रियता के साथ शामिल रहें तो आत्मघाती जातिवादी फूट से हिंदू समाज और देश का उद्धार हो। जातिवाद की आड़ लेकर अपराधी,भ्रष्ट,भारत विरोधी ताकतें देश और मानवता का बहुत अहित कर रही हैं।
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सुनील ओझा जी, ह्वात्सेप्प पर पोस्ट पर टिप्पणी में –
नमस्कार,
आपका ब्लॉग पढ़ कर इस विधा के प्रति आकर्षण बढा, पर ये भी मानता हूँ की कलम और तलवार भी महादेव के निर्देशों से ही नियत हाथों में जाते हैं|
आपको पढने के बाद लालच हो जाता है की अगला कब?क्या पढने के लिए मिलेगा? और ऐसी बातें जिन्हें सामान्यतः हम शब्दों में व्यक्त नहीं कर पाते उन्हें आप जिस सहजता से सामने रख देते हैं वो आपके लेखों के प्रति आकर्षण और भी बढाता है|
सौ ब्लॉग पोस्टों का खजाना और उसकी अपेक्षा जहाँ आपको पढने के लिए एक अनुशासन और ललक दोनों लाएगी, वहीं गड़ौली धाम पर कार्य भी उत्कृष्ट हो इसका भी सतत प्रयास रहेगा!
आपको ह्रदय से साधुवाद ज्ञान दत्त जी (GD 😀)
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जब से केंद्र सरकार ने गंगा किनारे के दोनों तरफ की खाली जमीनो मे खेती करने का प्लान दिया है ,दबंग लोगों ने जमीनो पर कब्जा अवैध करना शुरू कर दिया है ,तरह तरह के बहाने करके/मेरा पुश्तैनी एक मकान गंगा के किनारे है ,बड़ी तेजी से जमीनो मे कब्जे हो रहे है और हम सब तमाशा देख रहे है /
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अच्छा? यह विचित्र और विचलित करने वाली बात बताई आपने।
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मेने गढ़ौली धाम देखा है जब मै आया था उधर तब वहा खाली टैंट ही था तब भी यह जग मे वहा एक दिव्य शांति की अनभूति थी अब वहा गौमाता, श्री कृष्ण भगवान और साक्षातअहादेव भी विधि गत स्थापित हे तब यहां कितनी ऊर्जा और शांति होगी यह अनुभव अपने आपने ईश्वर की मौजूद दिव्य शांति का अनुभव कराती होगी, जय हो गढ़ौली धाम की जय…..
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धन्यवाद अजय जी। स्थान वास्तव में तेजी से बदला है और उत्तरोत्तर भव्य लगने लगा है।
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