शाम की पूजा, गड़ौली धाम में

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Gadauli Dham गड़ौली धाम

महुआ के तने पर लिखा बोर्ड है – अन्नपुर्णा मंदिर। वह बोर्ड एक टेण्ट को इंगित करता है, जिसके लिये सुनील ओझा जी ने गड़ौलीधाम के ब्रोशर में लिखा है कि सेना के उसी टेण्ट से गड़ौली धाम की शुरुआत हुई थी। उसी टेण्ट में पूरब की ओर देवी देवताओं के चित्र रखे हैं। गौरीशंकर की जो विशाल प्रतिमा परिसर में गंगा किनारे लगने जा रही है, उसकी प्रतिकृति भी वहां है। मैंने आगंतुक लोगों को आगमन पर पहले वहां चप्पल-जूता उतार कर गौरीशंकर और अन्य देवी देवताओं को नमन करते देखा है। इस परिसर में आने वाला हर सामान्य-विशिष्ठ व्यक्ति अन्नपूर्णा माँ को धोक देता है।

सुनील ओझा जी।

अयोध्या में रामलला टेण्ट में रहे। यहां माँ अन्नपूर्णा टेण्ट में हैं। दोनो जगह वैसा ही भक्ति भाव है। अंततोगत्वा यह पूरा परिसर ही गौरीशंकर मय होने जा रहा है; या हो ही रहा है। पर यह टेण्ट रहेगा या किस रूप में रहेगा; मुझे नहीं मालुम। शायद समय बतायेगा या सुनील ओझा जी।

अब देखा कि उस अन्नपुर्णा (हिंदी पट्टी में हिंदी के हिज्जे गलत लिखना जमता नहीं। पर जो है सो है) मंदिर में शाम के समय विधिवत आरती हो रही है। चार वेदपाठी नौजवान, केसरिया वस्त्र धारण किये मंत्रोच्चार करते हैं और उसके बाद शिवानंद स्वामी रचित आरती होती है। धर्म और आस्था की परम्परायें पनप रही हैं। मैं शुरू में फोटो लेने में लगा, पर जल्दी ही वातावरण की धार्मिकता ने मुझे श्रद्धा के मोड में ला दिया। अपने आप मोबाइल जेब में चला गया। हाथ जुड़ गये और सिर नत हो गया। ढलते सूरज की रोशनी गौरीशंकर प्रतिमा पर सीधी पड़ रही थी और वह सुंदर प्रतिमा मंत्रमुग्ध कर रही थी।

शांति और आनंद दोनो मन में अनुभव हुये। तुम्हारा तो भाषा में हाथ तंग है, वर्ना आनंदमय शांति के लिये कोई एक शब्द जरूर होता होगा, जीडी!

अन्नपूर्णा मंदिर में शाम की आरती – स्लाइड शो

अन्नपूर्णा मंदिर में आरती सम्पन्न कर वेदपाठी टीम महुआ के वृक्षों के नीचे स्थापित गोपाल कृष्ण की प्रतिमा की ओर बढ़ी।

एक गाय के साथ वंशी बजाते कृष्ण की संगमरमर की लगभग आदमकद मूर्ति अभूतपूर्व है। एक गोल चबूतरे पर स्थापित है। महुआ के वृक्षों के बीच खुले में वह प्रतिमा अहसास देती है मानो कृष्ण स्वयम जंगल में धेनु चरा रहे हों। पास में ही गौशाला है – कुंदन कामधेनु मंदिर। वहां दस साहीवाल गायें और उनके शिशु हैं।

कामधेनु मंदिर भी विकसित हो रहा है। अभी बहुत कुछ होना शेष है – निर्माण के स्तर पर और प्रबंधन के स्तर पर। मेरी कामना है कि सब कुछ सहज और भव्य तरीके से विकसित हो। कुंदन कामधेनु मंदिर की परिकल्पना में आसपास के गांवों का आर्थिक-सामाजिक-धार्मिक विकास का रोड-मैप निहित है। वह (मेरे विचार से) गड़ौली धाम का सबसे महत्वपूर्ण अंग है। इसके लिये सबसे अच्छे और सबसे अधिक निस्वार्थ-प्रतिबद्ध लोगों की जरूरत है। कहां हैं वे लोग? … मुझे इस प्रश्न का उत्तर नहीं मिलता। पर मैं तो दृष्टा मात्र हूं। प्रश्नों के उत्तर तो ओझा जी और उनकी टीम को खोजने हैं। शायद खोज भी लिये हों।

संझा के समय गोपाल कृष्ण के पास आरती, घण्टा ध्वनि और एक गाय बछ्ड़े के साथ मधुराष्टक उच्चारण सहित सम्पन्न होती है। वह सब मुझे वृन्दावन के वातावरण में ट्रांसपोर्ट कर लेता है। लगता है कि शाम को इस अनुष्ठान में रोज सम्मिलित हो सकूं तो क्या बढ़िया हो। पर मेरा घर इस स्थान के इतना पास नहीं कि आरती सम्पन्न कर अंधकार हुये बिना घर पंहुचा जा सके। कसक होती है कि इस स्थान के आसपास घर क्यों न बनाया।

कुंदन कामधेनु मंदिर के पास गोपाल कृष्ण की आरती – स्लाइड शो

गोपाल की आरती के बाद वेदपाठियों की टीम गंगा किनारे महादेव मंदिर की ओर चलती है। वहां भगवान महादेव की और माता गंगा जी की शायंकालीन आरती होती है। पूरे परिसर की भूमि वही उतारचढ़ाव लिये है, जैसा प्रकृति ने वहां पिछले आधी सदी में बनाया होगा। निर्माण के लिये केवल कुशा ही साफ की गयी है। बहुत कुछ वैसा ही बचाने का यत्न किया गया है, जैसा प्रकृति ने बनाया था। उतार चढ़ाव में मुझे गंगा तट पंहुचने में कष्ट होता है। घुटने में दर्द के कारण मैं सबसे अंत में वहां पंहुचता हूं। वहां बैठने के लिये कोई चबूतरा नहीं है। मिट्टी के उभरे हिस्से में मैं अपना आसन जमाता हूं। वहां आरती की प्रतीक्षा में कई अन्य लोग – आसपास के गांवों के लोग – भी पहले से जमा हैं। यह सुखद है कि ग्रामीण जुड़ रहे हैं।

गोपाल की आरती के बाद वेदपाठियों की टीम गंगा किनारे महादेव मंदिर की ओर चलती है।

सूरज गंगाजी के जल में जा चुके हैं। ढूह के किनारे पर खड़ा हुआ जाये तो उनका जल में जाते देखना अभूतपूर्व अनुभव है। प्रयाग में शिवकुटी में मैं पूर्व दिशा में सवेरे गंगाजी के जल में से सूरज निकलते देखता था; यहां पश्चिम में उनके गंगा के जल में विलीन होते देखता हूं। दोनो अनुभव एक दूसरे के पूरक हैं। मैं दोनो का साक्षी हूं।

महादेव जी का मंदिर खुले छत वाला जिस प्रकार बन रहा है वह मुझे भोजपुर के विशाल खुले महादेव मंदिर की याद दिलाता है। जब बन जायेगा तो वास्तव में अभूतपूर्व होगा। गंगाजी के तट पर होना एक और सशक्त आयाम होगा।

आरती करते बटुक की आवाज, उनके सांझ की रोशनी में चमकते पीताम्बर वस्त्र, डमरू और झल्लक की संगीतमय ध्वनि, एक बटुक के हाथ में आरती करता बड़ा दीपक – वह सब मैं लिख कर नहीं बता सकता, उसके लिये आपको वहां होना होता है। सशरीर-स-मन। आरती में नंदी; उनके पीछे कूर्मावतार विष्णु भगवान और माता गंगा का आराधन भी होता है। ये सभी भारत भूमि को जोड़ने वाले सशक्ततम प्रतीक हैं। …. बंधुवर संझा के एक रोज आपको वहां जरूर उपस्थित होना चाहिये वह रोमांचक अनुभूति के लिये।

सांझ के धुंधलके में महादेव और माँ गंगा की आरती के चित्र – स्लाइड शो

आरती सम्पन्न होने पर सतीश लोगों को प्रसाद के रूप में हलवा देते हैं। गरमागरम हलवा। एक बालिका हथेली पर गरम हलवा पा कर कराह सी उठती है। महामलपुर-मझवां में कई बनवासी हैं। उनसे महुआ की टेरी के दोने बनवा लेने चाहियें गर्म हलवा देने के लिये। पर अभी तो सिस्टम बन रहे हैं। परम्परायें विकसित हो रही हैं। लोग जुड़ रहे हैं। महादेव केवल रुद्र ही नहीं हैं, वे महादेव हैं – बनानेवाले, पालन करने वाले भी। वे परम्पराओं का सृजन भी करेंगे। सौ पोस्टों में उन बनती परम्पराओं का दस्तावेजीकरण करना है जीडी; अपनी अटपटी हिंदी में! :smile:

गड़ौली धाम जाते समय मुझे अपने एक मित्र की याद हो आती है। वह मेरी तरह रेलवे में विभागाध्यक्ष था। एक दिन उसने अपनी पद प्रतिष्ठा त्याग दी। वालेण्टियरी रिटायरमेण्ट ले कर वह मध्य प्रदेश में किसी सम्प्रदाय के मठ में चला गया। वहां जंगल के बीच किसी आश्रम की स्थापना प्रबंधन के लिये। वह मुझे पगलेट लगता था। अब सोचता हूं, तो लगता है चौबीसों घण्टे रेलगाड़ी परिचालन में जुता मैं ही पागल था; वह नहीं। आज वह कहीं जंगल में दो तीन सौ गायों के आश्रम का प्रबंधन कर रहा होगा। … ओझा जी को उस जैसा फुलटाइमर चाहिये गड़ौली धाम के लिये। या, पता नहीं, वह फुलटाइमर खुद सुनील ओझा जी ही हों। शायद!

फिलहाल, मैं यह पढ़ने वालों से शाम के डेढ़ घण्टे का स्लॉट एक दिन गड़ौली धाम के लिये करने का अनुरोध करता हूं।

हर हर महादेव! जय गंगा माई!


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

2 thoughts on “शाम की पूजा, गड़ौली धाम में

  1. यह स्थान निश्चित रूप से एक भव्य आकार ग्रहण करने जा रहा है और श्रद्धालुओं के लिए अत्यंत मनोहारी और शांत वातावरण उपलब्ध कराएगा. प्रेम सागर जी का कोई सन्देश फिर आया अथवा अब वे पूर्ण रूप से संवाद हीनता की स्थिति में हैं.

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    1. प्रेम सागर जी ने मल्लिकार्जुन और रामेश्वरम की यात्रा संपन्न कर ली है. वे वापस वाराणसी आए थे और आज मुझे मेरे घर पर मिल कर आगे केदार नाथ की यात्रा पर निकले हैं.
      महादेव ने अब तक उनकी यात्रा संपन्न करायी है, आगे भी कराएंगे!

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