शाम की पूजा, गड़ौली धाम में


संझा के समय गोपाल कृष्ण के पास आरती, घण्टा ध्वनि और एक गाय बछ्ड़े के साथ मधुराष्टक उच्चारण सहित सम्पन्न होती है। वह सब मुझे वृन्दावन के वातावरण में ट्रांसपोर्ट कर लेता है। लगता है कि शाम को इस अनुष्ठान में रोज सम्मिलित हो सकूं तो क्या बढ़िया हो।

स्मार्टफोन जाओ, साइकिल आओ


उसने मुझे दिखाया था कि साठ रुपये की पुड़िया में दो तीन दिन तक वे तीन चार लोग चिलमानंद मग्न रह सकते थे। वह ‘सात्विक’ आनंद जिसे धर्म की भी स्वीकृति प्राप्त थी। यह सब मैं, अपनी नौकरी के दौरान नहीं देख सकता था।

पांच सौ रोज कमाने का रोजगार मॉडल


अच्छी भली स्वस्थ काया। देखने में मेधा भी कुंद नहीं लगती। पर कुछ सार्थक उद्यम की बजाय मंदिर की “प्रेरणा” से भिखमंगत्व को अपना कर पिछले पांच छ साल से जीवन यापन कर रहा है।

मातृ ऋण चुकाया नहीं जा सकता


उस धनी का कहना भर था कि उस मंदिर की नीव का पत्थर मिट्टी में धसकने लगा। मंदिर एक ओर को झुकने लगा। वह झुका मंदिर एक वास्तविकता है।

रामप्रसाद तीर्थयात्री का निमन्त्रण


चार-पांच लोग आपस में राम मन्दिर की बात कर रहे थे। एक महिला ने मुझे सम्बोधित कर कहा – आप तो मन्दिर बणवाओ सा। हम सब आयेंगे कार सेवा करने।

गोधना का शिव मंदिर – सारनाथ


देखने में 10-11वीं सदी का छोटा और अत्यन्त सुन्दर मन्दिर नजर आता है। आक्रान्ताओं के भंजन का शिकार।