कबूतरों और गिलहरियों का आतंक – भाग 2

दस दिन पहले पोस्ट थी – कबूतरों और गिलहरियों का आतंक। मैंने कबूतरों की मनहूस आवाज से बचने के लिये कंटीले तार का उपाय किया था। मन में विजेता का भाव था। पर आशंका भी थी कि कबूतर बहुत दुष्ट प्रकार के पक्षी हैं। कहीं वे कंटीले तारों के बीच भी तो जगह नहीं तलाश लेंगे? मैंने लिखा भी था –

कबूतर और गिलहरियों के आतंक के साथ एक सतत और लम्बी जंग लड़नी होगी। अगर हम नॉनवेजिटेरियन होते तो यह लड़ाई बड़ी जल्दी जीती जा सकती थी। पर शाकाहारी होने के कारण हमारा आत्मविश्वास पुख्ता नहीं है। आप ही बतायें, यह जंग हम जीत पायेंगे? घर हमारा रहेगा कि उनका हो जायेगा? 😆

कुछ दिन कबूतर वहां दिखे नहीं। फिर इधर उधर से एक जोड़ा आ कर बैठने लगा। उन्होने कंटीले तारों से थोड़ी छेड़छाड़ की। उसके बाद अपने लिये जगह बनाई और नीम की सींकें जमानी शुरू कर दीं। उनका इरादा वहां अपना फूहड़ घोंसला बना कर अंडे देने का लग रहा था। साफ साफ।

मीटर के ऊपर रखे कंटीले तारों का प्रयोग केवल चार दिन के लिये ही ‘सफल’ रहा। फिर इधर उधर से एक जोड़ा आ कर बैठने लगा।

इससे पहले कि उनका सींकों का बिस्तर (कबूतर का घोंसला बेतरतीब तिनकों का ढेर ही होता है) पूरी तरह बन जाये, हमें एक्शन लेना था। अण्डा देने के बाद हम नैतिक रूप से बाध्य हो जायेंगे कि जब तक उनके बच्चे बड़े न हो जायें, उन्हें वहां रहने दिया जाये। हमारे स्टोर रूम में एक कबूतर दम्पति ने अंडे दे रखे हैं और उसे ले कर हम पर नैतिक दबाव है कि किसी बिल्ली को वहांं न प्रवेश करने दें। जीवों से यह लव-हेट रिलेशनशिप बड़ी ही दुखदाई होती है।

सो हमने समय रहते एक और प्रयोग किया। कंटीले तार हटा कर पूरे स्पेस को ईंटों से भर दिया। कबूतर का एक और घोंसला, उनकी फड़फड़ाहट और गुटरगूं की सतत मनहूस आवाज और उसके बाद उनके अंडों की हिफाजत के लिये हमारा तनिक भी मन नहीं था। उसके नीम के सींकों के तिनके हमने उसी तरह निकाल फैंके, जैसे विध्वंसक काम यूक्रेन में पुतीन महाशय कर रहे हैं। (वैसे, बाई द वे; मेरे घर में मेरी पत्नीजी भारत के पक्ष में हैं और मैं यूक्रेन के पक्ष में। घर में दो प्राणी हैं और दोनो के बीच मतभेद है। पत्नीजी का उलाहना है कि “तुम्हें तो मोदी की कोई भी नीति पसंद नहीं आती”। पर कबूतर के इकठ्ठा किये सींक को फैंकने में पहल पत्नीजी की थी!) :lol:

गुलाब चंद ने जब पूरे स्पेस में ईंटें भर दीं और बचे स्पेस में एसबेस्टॉस की टूटी शीटें जमा दीं तो हमें विजेता टाइप गर्वानुभूति हुई।

अच्छा, यह गर्वानुभूति कायम रह पायेगी? अंतत: कौन जीतेगा? हम या कबूतर? या कबूतर रूपी यूक्रेन की सहायता को पोलेण्ड रूपी गिलहरियां कोई नया बखेड़ा कायम करेंगी? क्या “कबूतरों और गिलहरियों का आतंक” का कोई भाग 3 भी लिखना होगा?!

गांव में रहना इन जीवों के साथ लव-हेट रिलेशनशिप वाली जंग है! यह शीत युद्ध की तरह चलती रहेगी।

सो हमने समय रहते एक और प्रयोग किया। कंटीले तार हटा कर पूरे स्पेस को ईंटों से भर दिया। गांव में रहना इन जीवों के साथ लव-हेट रिलेशनशिप वाली जंग है! यह शीत युद्ध की तरह चलती रहेगी।

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

आपकी टिप्पणी के लिये खांचा:

Discover more from मानसिक हलचल

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading

Design a site like this with WordPress.com
Get started