अभोली के रामेश्वर मिश्र

वह अपरिचित नौजवान मुझे घर के गेट पर मिल गये। मैं शाम के समय साइकिल ले कर निकलने ही वाला था कि उस व्यक्ति ने मेरे बारे में पूछा। कौन हैं, किस लिये मिलना चाहते हैं, यह पूछ्ने पर बड़ा आश्चर्यजनक (और सुखद) उत्तर था कि वे सलोरी, प्रयागराज में रह कर पीसीएस की परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं। ट्विटर पर मुझे फॉलो करते हैं और मेरे ब्लॉग के नियमित पाठक हैं।

कोई अपरिचित मुझे ढूंढ‌ता हुआ गांव में आ कर मिले – यह तो सेलिब्रटित्व टाइप भाव हो गया! मुझे बरबस याद हो आयी उन सज्जन की जो मुझे बरेली रेलवे स्टेशन पर पीछे से लगभग दौड़ते मेरे पास तक आये थे और अपना परिचय दिया था कि वे मुझे ब्लॉग पर नियमित पढ़ते हैं।

इस प्रकार के लोगों से मिलना लम्बे अर्से तक याद रहता है। लगभग 50-60 लोग इस प्रकार के मिले होंगे अब तक। और कई अन्य हैं जो मेरा लिखा (लगभग नियमित) पढ़ते हैं या किसी न किसी दौर में पढ़ते रहे हैं। लोग मेरे लिखे पर जिज्ञासा भी व्यक्त करते हैं, प्रश्न भी पूछते हैं और सुझाव भी देते हैं। और यह तब है जब मैंने सेल्फ-प्रोमोशन के हथकण्डे (सयास) इस्तेमाल नहीं किये। :-D

नौजवान ने नाम बताया – रामेश्वर मिश्र। सिर पर छोटे बाल। शायद पीछे सवर्ण का प्रतीक चोटी भी थी। वेश से गंवई-शहरी का मिलाजुला रूप। गोल और प्रसन्न दिखने वाला बालसुलभ चेहरा।

नौजवान ने नाम बताया – रामेश्वर मिश्र। सिर पर छोटे बाल। शायद पीछे सवर्ण का प्रतीक चोटी भी थी। वेश से गंवई-शहरी का मिलाजुला रूप। गोल और प्रसन्न दिखने वाला बालसुलभ चेहरा। पसंद आये रामेश्वर मुझे पहली नजर में। साइकिल मैंने बैक कर ली। रामेश्वर जी के साथ एक कप चाय पर आधा घण्टा व्यतीत किया।

रामेश्वर ने अपना गांव बताया अभोली। अभोली सुरियांवा के पास है। यहां (कटका रेलवे स्टेशन) से करीब 40-44 किमी दूर। आसपास किसी काम से आये थे वे और मेरे यहां आने का मन था तो ढूंढते हुये आ गये। छोटे स्तर पर ही सही, घुमक्कड़ी की वृत्ति तो दिखा ही दी उन्होने।

मैंने उनसे दूसरी ही बात की। उन्हें यह कहा कि जब तक उनके पास अवसर हैं, तब तक मन लगा कर वे परीक्षा की तैयारी करें और सफल होने का प्रयास करें। पर साथ ही यह मान कर न चलें कि परीक्षा पास कर नौकरी करना ही एकमात्र विकल्प है। वे अपनी किसी व्यवसाय के बारे में योग्यता बनाने बढ़ाने की भी सोचते रहें।

चौबीस साल की उम्र बताई पर उनका बालसुलभ चेहरा देख उससे कम का ही आकलन होता है। अभी शादी नहीं हुई। उनके बड़े भाई की शादी 22 साल की उम्र में हो गयी थी। तब घर वालों और समाज का दबाव था। रामेश्वर ने बताया कि गांवसमाज में भी धीरे धीरे शादी कराने का दबाव कम होता जा रहा है। माता पिता अब ज्यादा जोर इसपर देते हैं कि लड़का कामकाजी हो जाये। उनके पिताजी बम्बई में व्यवसाय करते थे। अब वे घर पर ही रहते हैं – अभोली में। शायद कोरोना संक्रमण काल का विस्थापन रहा होगा उनके पिताजी का।

इधर उधर की बातों में रामेश्वर ने मुझसे अपनी पीसीएस परीक्षा की तैयारी के बारे में सलाह-सुझाव मांगा। उन्हें लगा होगा कि भूतपूर्व नौकरशाह के रूप में मुझे परीक्षा क्रैक करने के बारे में गुर बताने का जज्बा होगा। पर मैंने उनसे दूसरी ही बात की। उन्हें यह कहा कि जब तक उनके पास अवसर हैं, तब तक मन लगा कर वे परीक्षा की तैयारी करें और सफल होने का प्रयास करें। पर साथ ही यह मान कर न चलें कि परीक्षा पास कर नौकरी करना ही एकमात्र विकल्प है। वे अपनी किसी व्यवसाय के बारे में योग्यता बनाने बढ़ाने की भी सोचते रहें। नौकरी, वह भी सरकारी नौकरी का पिरामिड चढ़ कर शिखर छूना बहुत खड़ी चढ़ाई का उपक्रम है। अपनी क्षमता और अपने विकल्प सतत तोलते रहने चाहियें।

“चार पांच साल परीक्षा की तैयारी कर वैसा बनना कि आप किसी और काम लायक बचें ही नहीं; कोई अच्छी स्ट्रेटेजी नहीं कही जा सकती।” – मैंने इसी सोच पर जोर दिया। रामेश्वर जी ने सिर हिला कर मेरी बात समझने स्वीकारने की हामी भरी; पर मैं नहीं जानता कि वे अपनी वैकल्पिक योग्यताओं के बारे में कितनी गम्भीरता रखते हैं। सामान्यत: इस इलाके में मैंने युवाओं को परीक्षा की तैयारी में कई साल लगाने के बाद किसी कामलायक न बचने की त्रासदी झेलते पाया है। आशा करता हूं कि रामेश्वर जी के साथ वैसा नहीं होगा।

शाम होने को थी। मुझे आधा घण्टा साइकिल चला कर अंधेरा होने से पहले घर लौटना था। रामेश्वर मिश्र जी को भी कटका स्टेशन जा कर साढ़े छ बजे की डेमू पैसेंजर पकड़नी थी प्रयागराज जाने के लिये। हम दोनो ने एक दूसरे से विदा ली।

अभोली के हैं रामेश्वर तो भविष्य में उनसे मिलना होते रहना चाहिये। अगर वे अपरिचित के रूप में इधर उधर पूछताछ कर मेरे यहां आ सकते हैं तो मित्र के रूप में तो उनका स्वागत है ही। रामेश्वर को उज्वल भविष्य की शुभकामनायें। भगवान करें, पीसीएस बन ही जायें। :-)


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

7 thoughts on “अभोली के रामेश्वर मिश्र

  1. आप सेलिब्रिटी तो हैं ही, अपनी तरह के विशिष्‍ट सेलिब्रिटी, में भी आपसे गांव के इसी घर में आकर मिलकर गया हूं, अभी तक स्‍मृति में ज्‍यों का त्‍यों ताजा है, अगली जब भी बनारस की यात्रा होगी, आपसे भेंट करने का पक्‍का मन है, इस बार सपरिवार आपके यहां पहुंचा जाएगा…

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  2. रामेश्वर जी जैसे लोग अपने परिवार के लिए एक सिल्वरलाइन की तरह होते हैं,क्योंकि परिवार काफ़ी कुछ उन पर आश्रित होने की तरफ़ देखने लगता है
    पारिवारिक अपेछाएँ और पीसीएस बनने के लिए बाहर जाक़र पढ़ना,एक सामाजिक दबाव भी उतपन्न करता है। हमको ऐसा लगता है अगर लोग बिना किसी दबाव और अपेछा की तैयारी करें तो अधिक सफल होंगे।
    उनकी आपसे मिलने की जिज्ञासा उनको कटका तक खींच कर लाई, मतलब वो जिज्ञासु और जुझारू तो हैं।
    मेरी तरफ़ से उनको अनेक शुभकामनाएँ और उनके इस महायज्ञ में अगर मेरी कोई सहायता हो तो में कर सकता हूँ।
    🙏🙏

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  3. रामेश्वर जी को शुभकामनाएं।

    वैसे आपके घर कभी मैं पहुंच जाऊं और आपको हैरान कर दूं, ऐसा कई बार सोचा है।

    प्रेमसागर जी आपसे मिलने आते थे, आपके लिखे कटा इंतजार है

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