लगता है कि अगर संस्मरण लिखे जायें तो उनमें तथ्यों की गलती की गुंजाइश जरूर होगी पर उनको लिखने में खुद जीडी की बजाय एक काल्पनिक पात्र गढ़ कर लिखा जा सकता है। तब यह बंधन नहीं होगा कि तथ्य पूरी तरह सही नहीं हैं।
भारतीय रेल का पूर्व विभागाध्यक्ष, अब साइकिल से चलता गाँव का निवासी। गंगा किनारे रहते हुए जीवन को नये नज़रिये से देखता हूँ। सत्तर की उम्र में भी सीखने और साझा करने की यात्रा जारी है।
लगता है कि अगर संस्मरण लिखे जायें तो उनमें तथ्यों की गलती की गुंजाइश जरूर होगी पर उनको लिखने में खुद जीडी की बजाय एक काल्पनिक पात्र गढ़ कर लिखा जा सकता है। तब यह बंधन नहीं होगा कि तथ्य पूरी तरह सही नहीं हैं।