बढ़ती उम्र और रीता पाण्डेय की आंखें

साठ पार की उम्र के साथ शरीर की समस्यायें भी बढ़ती हैं और उनके बारे में ध्यान देने की विचारधारा भी बदलती है। एक सार्थक, समग्र और सकारात्मक सोच अगर नहींं बन सकी तो व्यथित जीवन का ओर-छोर नहीं। ऐसे में अपनी परिस्थितियाँ शेयर करने और कठिनाई के लिये सपोर्ट सिस्टम बनाना पड़ता है या धीरे धीरे विकसित होता है। हम लोग – मैं और मेरी पत्नी जी (रीता पाण्डेय) उस अवस्था में आ गये हैं। मेरे दामाद जी और बिटिया – विवेक और वाणी – उसी सपोर्ट सिस्टम को विकसित करने में लगे हैं। बिटिया के यहां के सपोर्ट सिस्टम को स्वीकारना पारम्परिक भारतीय समाज में लोकसम्मत नहीं रहा है। पर मान्यतायें बदल रही हैं। और हम वैसे भी पारम्परिक नहीं रहे हैं।

मेरी पत्नीजी की आंखों में पुरानी तकलीफ है। उनकी बांई आंख की मायोपिक लेंस की पावर बहुत ज्यादा है। लेंस दांई आंख के लेंस से दो तीन गुना ज्यादा मोटा है। उम्र के साथ वह और भी मोटा होता गया है। अब लगता है तकलीफ और भी बढ़ गयी है।

डाक्टर आलोक अग्रवाल जी ने विधिवत परीक्षण कर भारी भरकम मेडिकल टर्मिनोलॉजी को हमारे लिये जितना सम्भव हो सकता था सरल शब्दों में बताने का यत्न किया।

वाणी के ससुराल में हॉस्पीटल भी उनके व्यवसाय का अंग है। विवेक जी ने हमें अपने यहां, चास-बोकारो, बुलवा लिया जिससे रीता पाण्डेय की आंखों की अच्छे से जांच हो सके। कल वही जांच हुई। डाक्टर साहब – डाक्टर आलोक अग्रवाल जी – ने विधिवत परीक्षण कर भारी भरकम मेडिकल टर्मिनोलॉजी को हमारे लिये जितना सम्भव हो सकता था सरल शब्दों में बताने का यत्न किया।

उनके अनुसार मेरी पत्नीजी की बांयी आंख में उम्र के साथ दृष्टि क्षरण का एक रोग है जिसे Choroidal Neovascular Membranes या सी.एन.वी.एम. कहा जाता है। ये वे रक्त वाहिकायें हैं जो आंख के रेटीना के नीचे विकसित हो कर सामान्य दृष्टि को गड्ड-मड्ड करती हैं। आंख के कोरोइड में उपस्थित ये रक्तवाहिनियां आंख को ऑक्सीजन और पोषक तत्व देती हैं। जब ये रक्तवाहिनियां बढ़ने लगती हैं तो सीएनवीएम की दशा में कोरोइड और रेटीना के बीच के विभाजन को पंक्चर करती हैं। रेटीना ऊबड़ खाबड़ होने लगता है और दृष्टि कमजोर होने लगती है।

हम लोग – सामान्य बुढ़ाते दम्पति की तरह – यह कल्पना करने में तल्लीन हो जाते हैं कि जीवन लम्बा हो और (लम्बा होने से ज्यादा) स्वस्थ हो। व्याधियों का अतिक्रमण कम से कम हो। वह कल्पना व्यग्रतामूलक भी होती है। कल विवेक और वाणी हमारी उस व्यग्रता को कम करने का भरसक प्रयास करते दिखे। अच्छा लगा। बहुत सुकून मिला।

डाक्टर आलोक ने हमें एक स्वस्थ व्यक्ति, एक सीएनवीम के प्रारम्भिक बीमार और मेरी पत्नी जी की आंखों के कम्प्यूटर जनित चित्रों को दिखा कर विस्तार से समझाया – उस भाषा में जिसमें एक तकनीकी निरक्षर व्यक्ति समझ सके। मुझे अपनी पत्नी जी की बांयी आंख की रेटीना की खुरदरी दशा वैसी लगी जैसी चांद की क्रेटर वाली जमीन। अगर एक दर्पण या लेंस वैसी सतह का हो जाये तो कैसा दिखाई देगा, उसकी कल्पना मैंने की। बांई आंख की दशा की गम्भीरता स्पष्ट हुई। इतना ज्ञानवर्धन शायद सामान्य मरीज का नहीं होता होगा।

रीता जी की आंख का परीक्षण करते डा. आलोक

डाक्टर साहब ने रीता जी की दांयी आंख के रेटीना की दशा भी दिखाई, जिसमें केटरेक्ट (मोतियाबिंद) घर बना गया है। दोनो आंखों की कोरोइड, स्केलीरा (आंख का सफेद हिस्सा) और रेटीना की दशा देख कर मुझे यह स्पष्ट हो गया कि दांई आंख को बिना समय गंवाये किये दुरुस्त कर लेना चाहिये और सीएनवीएम ग्रस्त बांई आंख में आगे और क्षरण टालने के लिये प्रयास किये जाने चाहियें।

कितने लोगों की आंखों की दशा मेरी पत्नीजी जैसी होती होगी? मैंने गूगल सर्च कर जानने का प्रयास किया। उसके अनुसार करीब एक हजार में दो-ढाई लोग इस तरह की समस्या से ग्रस्त होंगे। किस स्तर पर वह समस्या पंहुच गयी है, वह कितनी गम्भीर है, वह तो डाक्टर साहब ही जान सकते हैं; पर मुझे यह तो लगा कि आंख के रोग के मामले में मेरी पत्नीजी ‘विशिष्ट’ की श्रेणी में जरूर हैं!

सीएनवीम का रोग उनकी दूसरी आंख को प्रभावित नहीं किया है, वह ईश्वर की कृपा है। अन्यथा गूगल सर्च के अनुसार करीब एक तिहाई मामलों में रोगी की दूसरी आंख भी प्रभावित होने लगती है।

डाक्टर आलोक ने यह कहा कि एक दो महीने में हमें मोतियाबिंद का ऑपरेशन करा लेना चाहिये। सीएनवीएम ग्रस्त आंख के लिये उन्होने दवायें भी दीं। ऑपरेशन कब और कहां कराना है – यह हम पर छोड़ दिया। यह कहा कि सीएनवीएम ग्रस्त आंख का परीक्षण छ महीने के अंतराल पर (और/या एस.ओ.एस. की दशा में) कराने के लिये उनके पास आना उचित रहेगा।

मेरी पत्नीजी को अपनी आंखों के स्वास्थ्य की जानकारी और आशंका पहले भी थी ही। मोतियाबिंद शायद नई जानकारी थी। विवेक और वाणी के साथ होने के कारण उनकी व्यग्रता में कमी जरूर हुई होगी पर फिर भी रात एक बजे वे अंधेरे में नींद की दवा टटोलती मिलीं। उम्र के साथ की यह व्यग्रता शायद हम लोगों के जीवन में आगे आती रहेगी। आज आंख है, फिर दांत या घुटने या कोई और अंग कष्ट देते ही रहेंगे। व्यग्रता के निमित्त मिलते ही रहेंगे।

हम लोग – सामान्य बुढ़ाते दम्पति की तरह – यह कल्पना करने में तल्लीन हो जाते हैं कि जीवन लम्बा हो और (लम्बा होने से ज्यादा) स्वस्थ हो। व्याधियों का अतिक्रमण कम से कम हो। वह कल्पना व्यग्रतामूलक भी होती है। कल विवेक और वाणी हमारी उस व्यग्रता को कम करने का भरसक प्रयास करते दिखे। अच्छा लगा। बहुत सुकून मिला।

श्री बी.एन. बैनर्जी (बैनर्जी दादा) हम लोगों को डा. आलोक के पास ले कर गये।

अभी हम लोग बोकारो में हैं। बिटिया मेरे लिये सतत चाय बनाने का काम कर रही है। मां और बेटी व्यग्रता कम करने के लिये अब-तब आपस में लड़ने का स्वांग रचने में व्यस्त हैं और विवेक, अपने काम से समय निकाल कर हम लोगों की सब सुविधाओं का प्रबंधन करते नजर आते हैं। सब कुछ बहुत अच्छा लग रहा है। विवेक-वाणी-विवस्वान के साथ हम अपने साठोत्तर जीवन का सपोर्ट सिस्टम तलाश रहे हैं। मन में यह आ रहा है कि रात में एक बजे रीता पाण्डेय नींद की दवा टटोलने की समस्या से दूर रहें।

मैं जीवन दर्शन की सोचता हूं। हिंदू धर्म साठोत्तर जीवन के बारे में किस अनुशासन की बात करता है? दु:ख, प्रसन्नता, आनंद आदि के मुद्दों पर रास्ता सुझाता बौद्ध दर्शन किसी काम का है? सपोर्ट सिस्टम के साथ मैं आस्था को भी टटोलता हूं। वह टटोलते हुये नींद आ जाती है।


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

9 thoughts on “बढ़ती उम्र और रीता पाण्डेय की आंखें

  1. प्रशांत पाण्डेय, ह्वात्सेप्प पर –
    चिकित्सक और रोगी या देखभाल करने वालों के बीच की प्रभावी वार्ता चिकित्सक-रोगी संबंध बनाने में बहुत महत्वपूर्ण ​​है, जो चिकित्सा में रोगी को शारीरिक सही ना सही मानसिक रूप से बहोत आराम पहुँचाता है, आधी दवाई तो यही प्रभावी वार्तालाप ही होती है और कारगर सिद्ध होती है।

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  2. डा. आलोक अग्रवाल, ह्वात्सेप्प पर –
    Excellent Sir.
    This is a challenging case for me and I will definitely do it with my best effort.

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  3. प्रशांत पाण्डेय ह्वात्सेप्प पर –
    आँख अभूतपूर्व अंग है शरीर का, अच्छा किए जो पहले ही दिखा दिए डाक्टर को।

    सामान्यतः डाक्टर को ये सब बातें अधिकांशतः लोगों को समझाना चाहिए लेकिन डाक्टरों का पालन पोषण और पढ़ाई ऐसी परिस्थितियों में हुआ होता है कि वो या तो जनता को निरक्षर ही समझते हैं और उनको कुछ समझाने का प्रयत्न भी नहीं करतें और आने वाली समस्याओं को भी खुलकर नहीं बतातें या फिर अपनी शिक्षा को सर्वोत्तम समझते हुए बात करना उचित नहीं समझतें और दवाएँ लिखकर *नेक्सट* बोल देतें या अपने सहायक को अगले उपभोक्ता को भेजने के लिए बोल देतें।

    यदि वाणी विवेक के या आप अपने किसी जानने वाले चिकित्सक को ना दिखातें तो वो आपसे साझा *ही ना* करता आँख से संबंधित वर्तमान और भविष्य के समस्याओं की।

    कारपोरेट स्तर के अस्पताल डाक्टरों को मरीज़ (उपभोक्ता) के साथ बात कैसे करनी है और कैसे समझाना है, इन सबकी ट्रेनिंग दे रहे आजकल।

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  4. यह आपका अब तक का सर्वोताम लेख है। मेरे निजी विचार से आपका सहमत होना आवश्यक नहीं है।

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  5. आप साठ साल मे ही घबरा गए और जिंदगी को इतना भारी समझने लगे/ मेरी पत्नी मुझसे पाँच साल बड़ी है/मै 77 साल का हू और वह 82 साल की, सबसे छोटी लड़की 46 साल की और डाक्टर है/ मेरी पत्नी गठिया वात हाई ब्लड प्रेशर अनिंद्रा शारीरिक कमजोरी आदि बुढ़ापा जनित रोग से पीड़ित है /अधिकतर हमारे परिवार मे आयुर्वेद होम्योपैथी यूनानी दवाओ का उपयोग इलाज के लिए करते है और जब जरूरत पड़ती है तो एलोपैथी की भी दवा का सहारे के लिए प्रयोग करते है/ईसी मिलेजुले उपचार के प्रभाव की वजह से मेरी पत्नी अपना सारा काम स्वयं करती है और रिश्तेदारी मे जब जरूरत पड़ती है तो आती जाती है/बड़ा दामाद डाक्टर है और सरकारी सेवा मे है/ मेरा सुझाव है की जब बीमारिया लंबे समय और जीवन पर्यंत चलने वाली हो जाए तो ऐसी स्तिथि मे “ईन्टीग्रेटेड ईलाज बहुत सफल होता हे/मैंने हजारों रोगियों का इंटीग्रेटेड इलाज किया है और आज भी उसी राह पर मेरी प्रैक्टिस है/आपके आसपास कोई इंटीग्रेटेड इलाज करने वाला डाक्टर हो तो उससे सलाह जरूर ले ,आपको फायदा ही होगा/ आधुनिक चिकित्सा विज्ञान मे अभी ऐसी बहुत सी हजारी की संख्या मे बीमारिया है जिनका कोई इलाज नहीं और न दवाये है ,ये सब हम डाक्टर लोग अंदर से जानते है लेकिन खुलकर कुछ कह नहीं सकते है /

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    1. धन्यवाद बाजपेयी जी 🙏🏼
      आपके कहने से बहुत संबल मिला. उम्र और रोग – आरोग्य के प्रति आपके कहे अनुसार सोचने और आचरण का प्रयास करेंगे.
      जय हो!

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