डा. आलोक के यहाँ मेरी पत्नीजी मेरी बिटिया के साथ गयीं। रीता की दांयी आंख, जिसका मोतियाबिंद ऑपरेशन किया जाना है, के लेंस को तय करने के लिये उनका परीक्षण किया गया। उनकी आंख को दवा दे कर डायलेट किया गया और डाक्टर साहब के सहकर्मियों ने देखा-परखा। बाद में, मेरे दामाद जी – विवेक – के साथ डा. आलोक की बात हुई। यह पता चला कि लेंस कई प्रकार के आते हैं और उनकी गुणवत्ता के आधार पर उनकी कीमत भी कम या ज्यादा है।
रीता का मामला सामान्य मोतियाबिंद ऑपरेशन का नहीं है। उनकी दूसरी आंख में सी.एन.वी.एम. क्षरण सतत जारी है। इसलिये उपयुक्त यह है कि सामान्य दांई आंख, जिसमें मोतियाबिंद हो गया है, को ऑपरेट कर सही कर लिया जाये। यह ऑपरेशन बहुत अच्छी तरह होना चाहिये। रीता के आगे के जीवन की दृष्टि बहुत कुछ इसी ऑपरेशन पर निर्भर है।
रीता की डी-जेनरेट हो रही आंख का भी ऑपरेशन जरूरी है। उस आंख में मोतियाबिंद बहुत ज्यादा नहीं है। पर डाक्टर साहब हमें बार बार समझाने का प्रयास करते हैं कि उसका भी ऑपरेशन करा लेना चाहिये। मुझे समझ भी आता है। डा. आलोक से बातचीत के अलावा मैं इधर उधर उपलब्ध सामग्री भी खंगालता हूं। मेयो क्लीनिक स्टाफ द्वारा नेट पर उपलब्ध सामग्री भी कुछ वैसा कहती प्रतीत होती है –
When a cataract interferes with the treatment of another eye problem, cataract surgery may be recommended. For example, doctors may recommend cataract surgery if a cataract makes it difficult for your eye doctor to examine the back of your eye to monitor or treat other eye problems, such as age-related macular degeneration or diabetic retinopathy.
डाक्टर साहब हमें यह भी बताते हैं कि रीता की दांयी और क्षरित होती बांयीं आंख के चश्मे को ले कर भी द्वंदात्मक स्थिति है। उनका दांयी आंख का मोतियाबिंद इलाज करने के बाद अगर उनकी दांयी आंख का चश्मा लगभग बिना पावर का और बांई आंख का चश्मा आज जैसा बहुत ज्यादा मोटा और बहुत ज्यादा पावर का बना रहा तो दोनो आंखों के देखने में एक ही चीज अलग अलग दिखेगी। डबल-विजन की सतत असमंजस की दशा हो जायेगी। उसके लिये जरूरी है कि बांयी आंख में चश्मे के लेंस की बजाय एक सादे शीशा लगाया जाये। उस दशा में देखने का काम लगभग दांयी आंख से होगा। “पर वह सब करने पर अब से बेहतर ही दिखाई देगा” – डाक्टर साहब हमें यह स्पष्ट करते हैं।

रीता का मामला सामान्य मोतियाबिंद ऑपरेशन का नहीं है। उनकी दूसरी आंख में सी.एन.वी.एम. क्षरण सतत जारी है। इसलिये उपयुक्त यह है कि सामान्य दांई आंख, जिसमें मोतियाबिंद हो गया है, को ऑपरेट कर सही कर लिया जाये।
मुझे यह भी अहसास होता है कि निकट भविष्य में बांई आंख का भी मोतियाबिंद ऑपरेशन के बाद दृष्टि में और सुधार ही होगा। उसके अलावा बांई आंख के आगे होने वाला डी-जेनरेशन भी शायद समाप्त हो जाये। … फिर भी, आगे क्या होगा, को ले कर मन में कई प्रश्न कौंधते हैं, कई आशंकायें बनती हैं। उन सब के शायद तत्काल उत्तर न हों। पर एक आम व्यक्ति की बजाय मेरे पास ज्यादा जानकारी है, उसका संतोष होता है।
मैं जितना सोचता हूं, डाक्टर आलोक पर उतना विश्वास बढ़ता जाता है। पिछली पोस्ट पर डाक्टर आलोक की टिप्पणी – This is a challenging case for me and I will definitely do it with my best effort – मुझे और भी सम्बल देती है।
आंखों की समस्यायें विश्व में व्यापक हैं। यद्यपि आंखों को हम टेकेन-फॉर-ग्राण्टेड ले कर चलते हैं; पर हमारी देखने की क्षमता पर हमारा जीवित रहना बहुत कुछ निर्भर करता है। हम शतायु होना चाहते हैं तो वह बिना सामान्य दृष्टि के होना कल्पनातीत है। केनोप्निषद की वह पंक्ति मन में आती है, जिसमें ऋषि उस सत्ता की बात करते हैं – चक्षुः श्रोत्रं क उ देवो युनक्ति। कौन है वह जिसने देखने और सुनने की क्षमता दी है!
आंख के ऑपरेशन का तनाव शायद मेरी पत्नीजी को भी हो। मेरी बिटिया और वे उस तनाव को दूर करने के लिये बाजार घूमने निकल गये। वापस आ कर घर में घुसे तो तीन चार थैले सामान लिये और आपस में झगड़ते हुये। “मम्मा आपको तो शॉपिंग करना आता ही नहीं। दुकानदार के सामने आपको बनारसी साड़ी के बारे में अपना ज्ञान बघारने की क्या जरूरत थी? आपके साथ तो मार्केट जाना ही नहीं चाहिये।”
मैंने पूछा नहीं, पर मां-बेटी बिना गोलगप्पे खाये घर लौटे ही नहीं होंगे। आपको क्या लगता है? स्त्रियाँ घर के बाहर तनाव दूर करने जायें और बिना चाट-पकौड़ी के बेरंग लौटें; यह कभी हुआ है इस धराधाम पर? 😆

रीता की आंखों के बारे में सोच कर मेरे मन में भी कुछ घुमड़ता है। मुझे अपने बाबा – पण्डित महादेव प्रसाद पाण्डेय की याद हो आती है जो सत्तासी साल की उम्र में अपनी मुट्ठी की झिर्री में से ताकते हुये के.एम. मुंशी की लोपामुद्रा पूरी पढ़ गये थे। साढ़े तीन दशक हुये उस बात को। शायद उन्हें भी मोतियाबिंद था जो हमने ध्यान नहीं दिया। आज सोच कर एक पछतावा सा होता है, पर अब लगता है कि रीता पर ध्यान देना चाहिये, जो वर्तमान है, उसपर।
मेरे पास मेरे टैब में, The Barefoot Eye Surgeon नामक पुस्तक की सॉफ्ट कॉपी है। यह नेपाली आंख के डाक्टर संदुक रुईत पर है। उनके नेपाल और विश्व की विपन्न/जरूरतमंद जनता के दृष्टि-स्वास्थ्य के विवरण की पुस्तक। उस पुस्तक के रिव्यू और उसका प्रोलॉग पढ़ता हूं। मन बनाता हूं कि अगले कुछ दिनों में वह पुस्तक ही पढ़/सुन ली जाये।

राजेश पुण्डीर फेसबुक पेज पर –
अभी केवल जिस आंख में मोतियाबिंद है उसका आपरेशन करवायें डाक्टर लोग तो अपने हथियार लेकर तैयार बैठे हैं मेरी पत्नी का सीधी आंख का मैकुलर छेद के साथ साथ मोतियाबिंद का आपरेशन भी कर दिया पोस्ट चैक अप के दौरान डॉक्टर दूसरी आंख के मोतियाबिंद का आपरेशन करने का दवाब बनाने लगे, मैंने जब वडोदरा अस्पताल में अति. मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डा. दीपाली जो पश्चिम रेलवे पर ख्याति प्राप्त आंखों की सबसे अच्छी डाक्टर है उन्हें दिखाया तो उन्होंने बताया कि अभी एक से दो साल तक आपरेशन की जरूरत नहीं हैं।
अगर संभव हो तो वडोदरा उन्हें अवश्य दिखा लें।
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माधव कुमार फेसबुक पेज पर –
दोनों आंखों में यदि अलग अलग पॉवर का चश्मा लगा हो तब भी देखने में असमंजस की स्थिति बनी रहती है।
मेरे चश्में में भी है!
अलग अलग तो नहीं दिखती पर
गुणवत्ता अलग अलग होती है देखी गई वस्तु की
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वैसे प्रयास करें की एक बार में दोनों आंखों को ऑपरेट न किया जाए।
किसी भी प्रकार की समस्या की स्थिति में लाभप्रद रहेगा
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सुरेश शुक्ल फेसबुक पेज पर –
सही है ऐसे में शीघ्र ही करा लेना चाहिए। बहुत ही माइनर आपरेशन होता है अब तो।
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