घुमंतू आयुर्वेदिक डाक्टर

मेरे एक सुहृद दम्पत्ति जब भी मिलते हैं, हमें इस बात पर जोर देते हैं कि हम अपनी मधुमेह की दवायें छोड़ कर एक आयुर्वेदिक डॉक्टर की बताई दवाई लेना प्रारम्भ कर दें।

आज भारत मधुमेह की राजधानी है। यहां सब प्रकार की मधुमेह की दवायें और इलाज दीखते हैं। बहुत सी एलोपैथिक दवायें डॉक्टर प्रेस्क्राइब करते हैं। वे दवा के काउण्टर पर मिलती हैं। उनके बारे में बहुत सा लिटरेचर इण्टरनेट पर उपलब्ध है। उन दवाओं के प्रभाव और दुष्प्रभाव के बारे में पढ़ा जा सकता है।

पर मेरे इन सुहृद का मामला बिल्कुल अलग है।

यह दम्पति महुमेह के गहरे मरीज हैं। एक को तो टाइप 1 डाइबिटीज है। वे इंस्युलिन के इंजेक्शन लेते थे और नियमित अपना शूगर नापते रहते थे। दूसरे को भी खासी ज्यादा टाइप 2 मधुमेह है।

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अब दोनो ने अपने डायबिटीज इलाज को तिलांजलि दे दी है। एक आयुर्वेद के डाक्टर साहब कहीं बाहर से पखवाड़े में एक बार आते हैं। उनके पास बहुत से मरीजों की भीड़ लगती है। वे डाइबिटीज की ‘आयुर्वेदिक’ दवा बांटते हैं। एक काले रंग की गोली और एक चूर्ण। चूर्ण पेट साफ रखने के लिये है और गोली रक्त शर्करा नियंत्रण के लिये। अपनी जरूरत के मुताबिक मरीज एक या दो गोली रोज लेते हैं।

बकौल मेरे सुहृद दम्पति; उनका मधुमेह बिल्कुल नियंत्रण में है। रक्त शर्करा जो इंस्युलिन/दवा के बावजूद कभी कभी 200मिग्रा/डीएल भागती थी अब 120-140 के बीच रहती है। “मेन बात यह है कि यह दवा पूरी तरह आयुर्वेदिक है। कोई साइड इफेक्ट नहीं।” – वे हमें कहते हैं। वे यह भी बताते हैं कि तीन महीने बाद कराया एचबीए1सी टेस्ट भी अब 6-6.5 के बीच रीडिंग दे रहा है। पहले यह 7 के पार हुआ करता था।

यह समझ नहीं आता। अगर आयुर्वेद में ऐसी रामबाण दवा उपलब्ध है तो भारत (या विश्व) की मधुमेह समस्या का निदान उसके मास-प्रोडक्शन और वितरण से क्यों नहीं हो जाता? डाक्टर साहब कहीं बाहर से आते हैं। उनकी दी गयी दवा का कोई कम्पोजीशन नहीं मालुम। डाक्टर साहब को भविष्य में किसी मामले में जवाबदेह कैसे ठहराया जा सकता है। उनका कोई प्रेस्क्रिप्शन नहीं होता? दवा में कोई स्टेरॉइड या कोई अन्य रसायन हो जो लम्बे अर्से में शरीर पर दुष्प्रभाव डाले तो क्या होगा? …. बहुत से सवाल मन में उठते हैं।

असल में हम एक चिकित्सा पद्यति में यकीन के साथ पले-बढ़े हैं। डाक्टर प्रेस्क्रिप्शन देते हैं। इससे उनकी जवाबदेही बन जाती है। दुकानदार ब्राण्डेड दवा देता है और उसका बिल भी। उससे यकीन बढ़ता है। इसके अलावा जो दवा हम ले रहे हैं, उसके बारे में बहुत सी जानकारी इण्टरनेट पर देख सकते हैं। उसके साइड-इफेक्ट बताने वाला भी बहुत सा साहित्य उपलब्ध है। पर यह घुमंतू आयुर्वेदिक डाक्टर जैसा इलाज, जो भारत में व्यापक है, के बारे में पारदर्शिता नहीं है।

आयुर्वेद का अपना अनुशासन है, पर उसका मानकीकरण नहीं हुआ है। दवाओं का बनाना और उनका वितरण भी उतना पारदर्शी नहीं है, जितनी अपेक्षा की जानी चाहिये। इसके अलावा, रागदरबारी के बैद जी की ‘नवयुवकों मेंं आशा का संदेश’ छाप बकरी के लेंड़ी वाली दवायें या सड़क किनारे नपुंसकता और बांझपन के इलाज के टेण्ट वाले क्लीनिक भी बेशुमार हैं। हर प्रकार की मेधा के लिये हर स्तर पर औषधियां हैं।

घुमंतू आयुर्वेदिक डाक्टर साहब के इलाज पर यकीन कर रोज इंस्युलिन का इंजेक्शन कोंचना बंद कर दिया जाये? साल छ महीने बाद पता चले कि आपकी किडनी या दिल या फेफड़े पर दुष्प्रभाव पड़ा है और आपको उनका इलाज कराने के लिये अस्पतालों के चक्कर लगाने हैं, तब क्या होगा? आप अपने बहुमूल्य शरीर-जीवन के साथ कितना रिस्क ले सकते हैं? उत्तर आसान नहीं हैं।

हम जिस खुली पद्यति में जीने की आदत रखते हैं उसमें भी सब कुछ परफेक्ट नहीं है। मसलन तीन दशक तक हमें बताया गया कि रिफाइण्ड तेल आपकी बहुत सी बीमारियों का इलाज है। सोया सॉल्वेट और रिफाइनिग यूनिटों ने बहुत कमाया। अब कहा जा रहा है कि सरसों के तेल पर लौटिये। गाय का घी सर्वोत्तम है। और उसमें भी देसी गाय का ए2 वाला घी-दूध ही तलाशें। एक पीढ़ी में ही खानपान की आदतों के बारे में मानक बदल रहे हैं। वही हाल दवाओं का है।

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अभी तक हम उन घुमंतू आयुर्वेदिक डाक्टर साहब के पास जाने की इच्छा और साहस नहीं दिखा पाये हैं। वे सुहृद दम्पति मिलेंगे जरूर और फिर हमें अपनी वण्डर-ड्रग की बात करेंगे। नहीं मालुम कि भविष्य में कभी अपनी काया के साथ प्रयोग करने का साहस हम में आ पायेगा। लेकिन अभी भी हम आधा दर्जन गोलियां और कैप्स्यूल गटकते हैं। वे सभी शरीर में जा कर क्या संगीत या क्या ताण्डव मचाते हैं, कुछ पता है? समस्या शायद जानने की आश्वस्तता और न जानने के मस्त आनंद के बीच चयन न कर पाने की है।

और हम तय नहीं कर पाते!


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

7 thoughts on “घुमंतू आयुर्वेदिक डाक्टर

  1. पिछले 60 साल से इंटीग्रेटेड इलाज यानी आयुर्वेद होम्योपैथी यूनानी प्राकरतिक चिकित्सा और साथ मे एलोपैथी भी इनका मिलाजुला इलाज करता चला आ रहा हू/मेरे पिता जी ने होम्योपैथी की सिक्षा कोलकता ((उस समय का कलकत्ता) से प्राप्त की थी और एलोपैथी के किसी डाक्टर काली प्रसाद मुखर्जी के यहा कम्पाउंडरी करते थे/पिता जी ने बनारस से बैद्य भूषण की परीक्षा पास की थी /यह स्वतंत्रता के पहले की बात है और 1930 के आसपास का समय हो सकता है/बटवारे के पहले मैमन सिंह सिलचर और सिलहट मे सबकी मिलीजुली प्रैक्टिस करते थे/बटवारे के बाद कोलकता आ गए और बाद मे यहा उन्नाव और कानपुर मे बस गए/हम सभी बचपन से उनको इंटीग्रेटेड इलाज देखते देखते मै भी उसी दिशा मे गया और बाकायदा चारों विधाओ की डिग्री और फिर रजिस्ट्रेशन का लाइसेंस लेकर उसी तरह से इलाज करता चला आ रहा हू जैसा मेरे पिता जी करते थे/अब सब यही मेरे लड़के और बेटी भी कर रही है/दामाद को भी पसंद आया और उसने भी शुरू कर दिया/यह सही है की मेरे यहा जीतने भी शुगर के मरीज आए उनकी सभी दवाये छूट गयी जिनको शुरुआत की थी /और कई कई साल हो चुके है दुबारा नहीं हुयी/जिनके इंसुलिन सुबह शाम 80 -80 यूनिट या इससे भी ज्यादा लगती थी उनकी इंसुलिन भी छूट गयी और वे आयुर्वेदिक इंटीग्रेटेड इलाज से अपनी शुगर नियंत्रित किए हुए है/इसमे आश्चर्य की कोई बात नहीं है/जानकारी का अभाव लोगों मे है/मै अपनी ईजाद की गयी तकनीक का इसलिए विज्ञापन नहीं करता क्योंकि एक मरीज को देखने मे लगभाग 5 से 6 घंटे लग जाते है /कांपलीकेट केस होने पर अधिक समय लग जाता है/इसलिए रोजाना एक या दो मरीज ही बमुश्किल देखा पाता हू/पबलीसिटी करने पर ज्यादा संख्या मे मरीज आ सकते है और इसके लिए मेरे पास मशीनों और कंप्यूटर का इंतजाम नहीं है क्योंकी सारा परीक्षण तरह तरह के स्कैनर और मशीने करती है और कंप्यूटर जेनेरेटेड सभी रिपोर्ट्स होती है/ आपने जिन दम्पत्ति का जिक्र किया है वे सही और सत्य बात कह रहे है/ईन्टीग्रेटेड इलाज से मधुमेह ही नहीं एच आई वी जैसी और कठिन से कठिन लाइलाज बीमारियों का इलाज संभव है जिनको माना जाता है की ऐसी बीमारियों का इस दुनिया मे इलाज ही नहीं है/यह भ्रम फैलाया जा रहा है ऐसा मै 60 साल की प्रैक्टिस के आधार पर कह सकता हू/

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    1. आपके तरीके पर आगे शोध कर व्यापक application की तकनीक विकसित होनी चाहिए जिससे हर मधुमेह रोगी का इलाज सम्भव हो…
      इसके लिए फण्ड आयुष मंत्रालय या कोर्पोरेट जगत उपलब्ध कराए – आखिर वह बेहतर व्यावसायिक प्रस्ताव भी तो होगा ही!
      धन्यवाद बाजपेयी जी, टिप्पणी करने के लिए!

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      1. आयुष मंत्रालय भारत सरकार नई दिल्ली और विज्ञान और तकनीकी मंत्रालय भारत सरकार नई दिल्ली इस तकनीक का परीक्षण AIIMS ,लेडी हारर्डीनग मेडिकल कालेज नई दिल्ली,सेंट्रल काउंसिल फार रिसर्च इन आयुर्वेदिक साइसेज,नई दिल्ली और सेंटर; आयुर्वेद रिसर्च इंस्टीट्यूट पंजाबी बाग नई दिल्ली तथा आयुर्वेद और तिबबिया कालेज कारोलबाग,नई दिल्ली , आई आई टी दिल्ली के अलावा विदेशी संस्थान रूहर यूनीवर्सिटी, बोचुम ,जर्मनी तथा अन्य विदेशी संस्थानों ने यह तकनीक संन 2004 से लेकर 2009 तक के बीच मे पायलट अध्ययन और परीक्षण के दरमियान इस तकनीक का अवलोकन किया जो मैंने इन संस्थानों मे रहकर प्रैक्टिकल स्वरूप मे प्रोजेक्ट किया है/चूंकि यह इंडिजिनस सेल्फ विकसित टेकनोलाजी है इसलिए मैंने देशहित मे इसको किसी विदेशी संस्थान से जोड़ने के लिए स्पष्ट रूप से मना कर दिया/क्योंकि दसरा देश यही कहेगा की उसने यह तकनीक विकसित कर ली है और मेरा योगदान शून्य हो जाता/मैंने पैसे के लिए यह सब नहीं किया/आज के दिन भी बड़े बड़े आफ़र कोलैबोरेशन के लिए आते रहते है लेकिन मै जानता हू की मुझे क्या करना है?इसीलिए अपनी स्वयं की मैन्यूफैकचरिंग यूनिट और जीएसटी रजिस्ट्रेशन करा लिया है और मशीने बनना शरू हो चुकी है/जैसे जैसे लोगों को पता चल रहा है वैसे वैसे इसकी डिमांड भी बढ़ रही है/इसके साथ रिसर्च और डेवलप मेट का काम हमारे रिसर्च सेंटर और नर्सिंग फार्मेसी कालेज के अस्पताल मे लगातार बराबर चल रहा है/

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  2. और पतंजलि वाले बाबा रामदेव की दवाओं के बारे में आपके क्या विचार हैं?

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    1. बाबा रामदेव व्यापार में लगे हैं. वे व्यापार के चरित्र को अच्छे से जानते हैं और उसी के अनुरूप उनका आचरण है.
      हठ योग और आयुर्वेद का सफल व्यवसायिक दोहन किया है उन्होंने!

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      1. बिलकुल सहमत हूँ, क्योंकि बाबा रामदेव योग सिखाकर लोगों को योग करने पर बिज़ी करके स्वयं व्यवसाय में लग गये। 😀

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