आलसी आंख की शल्य चिकित्सा

जुलाई के महीने में डा. आलोक ने मेरी पत्नीजी की दांयी आंख की शल्य चिकित्सा की थी। मोतियाबिन्द की। उसके दो महीने बाद बांयी आंख का ऑपरेशन करना था; पर वह दशहरा-दीपावली-छठ के पर्व के कारण हम टालते गये। अब नवम्बर मे‍ं संयोग बना।

पत्नीजी की बांई आंख में, बकौल डा. आलोक एम्ब्लायोपिया – Amblyopia है। उस आंख के कमजोर होने के कारण बचपन से ही शरीर उस आंख का प्रयोग कम करता गया है। जिस अंग का प्रयोग कम हो तो उसका क्षरण होता ही है। बकौल डाक्टर साहब यह रोग बीस हजार में से एक को होता है। सो उस हिसाब से मेरी पत्नीजी विशिष्ट है‍!

बचपन में ही अगर यह एम्ब्लायोपिया नोटिस होता तो शायद कोर्स करेक्शन हो पाता। पर परिवारों में उतना सूक्ष्म निरीक्षण नहीं हो पाता – वह भी एक बड़े कुटुम्ब में रहते हुये। आज कल जहां न्यूक्लियर परिवार में एक दो बच्चे मात्र होते हैं, माता-पिता वह सूक्ष्म निरीक्षण कर पाते हों, शायद। अन्यथा समय के साथ साथ वह एम्ब्लायोपिया से प्रभावित आंख और भी कमजोर होती जाती है। उस आंख का चश्मा और भी मोटा होता जाता है और मोटे भारी लेंस के बावजूद भी सामान्य दृष्यता नहीं मिल पाती।

इस ऑपरेशन का लाभ यह हुआ है कि धुंधला आभास भर देने वाली आलसी आंख अब चैतन्य हो गयी है और दूर की लिखावट भी पढ़ने में सक्षम हो गयी है।

एम्ब्लायोपिया को साधारण भाषा में आलसी आंख – Lazy Eye कहा जाता है। मेरी पत्नीजी की बांयी आंख आलसी थी। उस आंख का मोतियाबिन्द ऑपरेशन के पहले उसकी दृष्यता, डाक्टरी भाषा मे‍ एफ़सी (Finger Counting) 2 थी। अर्थात दो मीटर दूर से वे यह भर बता पाती थीं कि सामने कितनी उंगलियां हैं। चक्षु परीक्षण का मानक चार्ट पढ़ने की सम्भावना ही नहीं थी।

डा. आलोक के अनुसार मेरी पत्नीजी की बांयी आंख में मोतियाबिन्द ज्यादा नहीं था। मात्र बीस प्रतिशत भर था। पर शल्य चिकित्सा द्वारा उनका ध्येय आंख में मल्टीफ़ोकल लेंस डाल कर उस आंख की दृष्यता बढ़ाना था।

वह छोटी सी लड़की नुमा पैरामेडिक जो यूं लगता था कि दसवीं कक्षा की छात्रा होगी; ने परीक्षण कुशलता से किया।

चुंकि बांयी आंख आलसी आंख थी, उसके लिये मोतियाबिन्द का मल्टीफ़ोकल लेंस भी ज्यादा पावर का चाहिये था। वह विशेष लेंस अरेन्ज करने में डाक्टर साहब को समय लगा। जब उन्होने उसकी उपलब्धता की हामी भरी तो हम अपने गांव से बोकारो आये। हमारे आने के कुछ घण्टे बाद ही डाक्टर साहब को कुरीयर ने लेंस का पैकेट उपलब्ध कराया। डा. आलोक के क्लीनिक/अस्पताल जाते ही पत्नीजी की आंख का परीक्षण हुआ और घण्टे भर में उस आलसी आंख का ऑपरेशन भी हो गया।

डा. आलोक के अस्पताल की दक्षता से मैं प्रभावित हुआ – फ़िर एक बार। …. वह छोटी सी लड़की नुमा पैरामेडिक जो यूं लगता था कि दसवीं कक्षा की छात्रा होगी; ने परीक्षण कुशलता से किया। उसके बाद डा. आलोक ने अपनी ओर से भी देख परख कर पत्नीजी को ऑपरेशन थियेटर में प्रवेश कराया।

डा. आलोक के अस्पताल की दक्षता से मैं प्रभावित हुआ – फ़िर एक बार।

हम लोग – पत्नीजी, मेरे बिटिया-दामाद और मैं डा. आलोक के अस्पताल सोमवार दोपहर ढाई बजे गये थे और चार बजे तक सब सम्पन्न हो चुका था।

ऑपरेशन के बाद आधा घण्टा एक बिस्तर पर लेटना था रीता पाण्डेय को। मेरी बिटिया उनके साथ बराबर मौजूद थी। दामाद जी – विवेक भी आसपास बने थे। उनके आजु बाजू रहने के कारण रीता पाण्डेय का तनाव जरूर कम रहा होगा।

पोस्ट ऑपरेशन आराम करने का कैबिन। ” एक वृद्ध तो अकेले थे। थोड़ी देर बाद वे खुल उठे और अपनी लाठी टटोल कर टेकते हुये जा कर गैलरी में बैठ गये।”

दो और मरीज थे वहां। एक वृद्ध तो अकेले थे। थोड़ी देर बाद वे खुद उठे और अपनी लाठी टटोल कर टेकते हुये जा कर गैलरी में बैठ गये। एक मरीज बाद में आये। ऑपरेशन के बाद वे सज्जन ज्यादा ही वाचाल हो गये थे। उनकी पत्नी उनके पांव दबा रही थी और बार बार उन्हें शान्त हो लेटने की कह रही थी। पर वह तो अपने ऑपरेशन के अनुभव इस प्रकार बता रहे थे कि मानो भूल जाने के पहले सब उगल देना चाहते हों। बेचारी पत्नी जो अपने पति की बलबलाहट भी समझ रही थी और यह भी जान रही थी कि सार्वजनिक स्थान पर उसे यह सब अनर्गल नहीं कहना-बोलना चाहिये; उसे बार बार चुप रहने को कहती हुई उसकी टांगे और तलवे सहलाती जा रही थी – मानो ऑपरेशन आंख का भले ही हुआ हो, उसको दर्द टांग में हो रहा हो! :lol:

बिटिया-दामाद वाणी और विवेक डा. आलोक के क्लीनिक में

अगले दिन सवेरे हम दस बजे डा. साहब के चक्षु क्लीनिक पर गये आंख की पट्टी हटवाने। डा. साहब ने आंख का पोस्ट-ऑपरेशन परीक्षण कर देखा और बताया कि रेटीना पर लैंस अच्छी तरह सेट हो गया है। आंख की लालिमा समय के साथ दो चार दिन में समाप्त हो जायेगी।

सात नवम्बर को ऑपरेशन हुआ था। पांच दिन बाद 11 नवम्बर को डा. आलोक के क्लीनिक में आंख की दृष्यता का परीक्षण हुआ। आंख की विजन जो ऑपरेशन के पहले मात्र दो मीटर दूर की उंगलियो‍ की संख्या भर बताने की थी, अब छ फ़िट दूर की लिखावट उसी प्रकार पढ़ पाने की हो गयी थी जो सामान्य दृष्यता का व्यक्ति 24 फ़िट दूर की लिखावट पढ़ने की रखता है। अर्थात विजन 6/24 हो गया था। डाक्टर साहब के अनुसार महीने भर में यह और बेहतर हो कर 6/18 तो हो ही जायेगा। इस ऑपरेशन का लाभ यह हुआ है कि धुंधला आभास भर देने वाली आलसी बांयी आंख अब चैतन्य हो गयी है और दूर की लिखावट भी पढ़ने में सक्षम हो गयी है।

रीता पाण्डेय और डा. आलोक अग्रवाल

आलसी आंख छ दशक बाद चैतन्य – देशज भाषा में कहें तो छटपट – बनी! देर से ही सही, मेरी लुगाई जी पुनर्योवना हो रही हैं और हम जो हैं सो ही हैं! :-)


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

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