अठाईस दिसम्बर। सवेरे धूप आ गयी थी। मौसम साफ था यद्यपि हवा तेज चल रही थी। मैं उहापोह में था कि घर से बाहर साइकिल ले कर निकला जाये कि नहीं। आठ बजने वाले थे। अचानक दरवाजे पर कुछ खटखटाहट और लोगों की आवाज सुनाई थी। इतने सवेरे कौन आ सकता है?
आने वाले एक दो नहीं सात लोग थे। दो महिलायें और पांच पुरुष। आगे थे एक मुझसे कुछ कम उम्र के, और मुझसे काफी कम वजन के खिचड़ी बालों वाले सज्जन। उनका शरीर वैसा ही था, जैसा मैं अपना वजन कम बनाने का स्वप्न देखता हूं। मुझसे कुछ ज्यादा ऊंचाई थी उनकी। उन्होने बताया – आप मुझे नहीं जानते होंगे। मैं आपको आपके लेखन के माध्यम से जानता हूं। मेरा नाम श्री नारायण शुक्ल है। मैं सिंगापुर में रहता हूं। मेरी सॉफ्टवेयर की कम्पनी है जो मोबाइल और वेब एप्लीकेशन के कार्य करती है। हम वाराणसी आये थे। वहां से सवेरे गड़ौली धाम पंहुचे और फिर आपके बारे में पूछते हुये आपसे मिलने आया हूं। मेरे साथ मेरी कम्पनी के अधिकारी लोग हैं।”
सात साल हो गये मुझे यहां गांव में रहते। मेरे जाने और अनजाने पाठक इक्का दुक्का आये हैं यहां। अभी कुछ दिन पहले चौबीस वर्ष के आयुष पटेल और फिर शिकागो में प्रवासी राजकुमार उपाध्याय जी अपने परिवार के साथ आये थे। आयुष पटेल पर मैंने लिखा भी है। राजकुमार जी की भेंट पर अभी लिखना शेष है। पर यह पहली बार हुआ है कि अपरिचित सज्जन अपनी कम्पनी के शीर्षस्थ अधिकारियों के साथ अचानक आ गये हों। यह बड़ा आश्चर्य भी था और अतीव प्रसन्नता का विषय भी।

लगता है अतिथियों के आने का एक दौर चल रहा है। गांव में हम अपेक्षा नहीं करते थे कि ब्लॉग पर मेरी उपस्थिति के आधार पर लोग हमें ढूंढ़ते घर पर पंहुच जायेंगे। वह भी तब, जब ब्लॉग की अपडेटिंग महीनों से ‘नियमित रूप से अनियमित’ हो गयी है। लोगों के आने से निश्चय ही हम – मेरी पत्नीजी और मैं – आल्हादित हैं। हम ने अपने घर-परिवेश के रखरखाव पर और रुचि ले कर उसे बेहतर करने की सोची है। और मैंने यह भी सोचा है कि उम्र का बहाना ले कर ब्लॉग को अनियमित करने की बजाय उसे और जीवंत बनाया जाये। उम्र के साथ उसे नये ध्येय और अधिक पाठकोन्मुख बनाया जाये। … यह जोश कायम रहना चाहिये, जीडी! 🙂
श्री नारायण जी चौरी चौरा के मूल निवासी हैं। अर्से से वे सिंगापुर में हैं और वहीं बनाई है अपनी कम्पनी – SingSys (सिंगसिस)। नाम इन्फोसिस की तर्ज पर लग रहा है। सिंग उपसर्ग शायद सिंगापुर के कारण हो। कम्पनी के दफ्तर सिंगापुर और भारत (लखनऊ) में हैं। मुख्यालय सिंगापुर में होने से व्यवसायिक सहूलियत होती होगी। शायद सॉफ्टवेयर के भारत से वे निर्यातक और सिंगापुर से आयातक – दोनो होने का लाभ ले पाते हों।

मैंने उनके बारे में जानने के लिये उनकी वेब साइट का निरीक्षण किया।
उनकी साइट से कम्पनी की सोशियो-कल्चरल जीवंतता के बारे में ये पंक्तियाँ मुझे बहुत भाईं –
“हम हर कर्मचारी का ध्यान रखते हैं। दफ्तर के प्रांगण में ही मासिक हेल्थ केयर चेक अप अनिवार्य हैं। हम सभी त्यौहार मनाते हैं। हम होली के अवसर पर रंग खेलते हैं, रंगोली और पटाखे दीपावली पर होते हैं, रावण दहन होता है दशहरा पर, नवरात्रि में डांडिया और बोन-फायर पार्टी नव वर्ष के अवसर पर होते हैं। स्पर्धा नामक एक इनडोर स्पोर्ट्स मीट आयोजित की गयी। यह टीम भावना जगाने वाली थी और तनाव दूर करने वाली भी। We go for regular outdoor trips for team building, sponsored by the company. It includes our recent trips to Jaipur, Nainital, Mussoorie, Banaras, Manali and Singapore. Above all, road trip on bikes to Leh and Ladakh was a milestone.”
शुक्ल जी इलेक्ट्रॉनिक्स और टेलीकम्यूनिकेशंस में स्नातक हैं। मेरी तरह केवल डिग्री वाले स्नातक नहीं वरन तकनीकी दुनियाँ में जागते-सोते-जीते हैं। उनके द्वारा यह कम्पनी सेट अप करने, सफलता से 150 लोगों को ह्वाइट कॉलर जीविका प्रदान करने की बातें सुन कर अपने बारे में मुझे लगता रहा कि मैंने उसी तरह की पढ़ाई कर घास ही खोदी। भला हो कि भारत सरकार ने मुझे रेल हाँकने का (ग्लोरीफाइड) गाड़ीवान रख लिया, अन्यथा हम किसी काम के थे नहीं! उस समय तो कोई टेलीफोन ऑपरेटर के लायक भी न समझता हमें! शुक्ल जी के बारे में जान कर उनसे प्रभावित हुये बिना नहीं रह सका मैं।


यह भी पता चला कि तकनीकी के साथ प्रयोगों का शुक्ल जी का अनुभव सतही नहीं है। वे एमेच्योर रेडियो (एचएएम – HAM) के साथ प्रयोग कर चुके हैं और उनके पास उसे चलाने का लाइसेंस/सनद (एमेच्योर स्टेशन ऑपरेटर्स लाइसेंस – जिसे परीक्षा उत्तीर्ण कर ही पाया जा सकता है) लम्बे अर्से से है। उनकी कम्पनी एप्पल, एण्ड्रॉइड और वेब एप्लीकेशंस के सॉफ्टवेयर बनाती है। उनके ग्राहकों की जमात में नामी गिरामी नाम हैं। उनकी वेब साइट का अवलोकन कर प्रभावित हुये बिना बचा नहीं जा सकता।
श्री नारायण शुक्ल जी की कम्पनी के चार विभागाध्यक्ष उनके साथ थे। शुक्ल जी की पत्नी और साली उनके साथ थीं। वे लोग विश्वेश्वर महादेव का दर्शन कर, वहीं पास में पूड़ी-जलेबी का नाश्ता कर निकले थे। पहले वे गड़ौली धाम गये। गड़ौली धाम के बारे में जानकारी उन्हें मेरे ब्लॉग से मिली थी। शुक्ल जी ने ब्लॉग में गड़ौली धाम के एक पात्र सोनू के बारे में वहां के लोगों से पूछा तो उन लोगों को आश्चर्य हुआ – “आप सोनू के बारे में कैसे जानते हैं?”
शुक्ल जी ने ब्लॉग की और मेरी चर्चा की तो वहीं के किसी व्यक्ति ने मेरा घर का पता बताया। उनके बताये रास्ते से रेल लाइन के बगल से गुजरते हुये वे मेरे घर तक पंहुचे।
कोई आम आदमी घुमक्कड़ी के इतने प्रयोग नहीं करता। यह तो अलग मिट्टी से बने शुक्ल जी ही हैं जो सर्दी के मौसम में सवेरे सवेरे अपनी टीम के साथ घूमते घूमते मेरे घर तक आ गये। और उसके लिये लिंक उनके बेटे द्वारा उन्हें सुझाया मेरा ब्लॉग ही था। उनसे बात करते यह तो साफ हो ही गया कि मेरे ब्लॉग को बहुत चाव से उन्होने पढ़ा है और इस गांवदेहात के बहुत से पात्रों से वे परिचित हो गये हैं। सिंगापुर में रहता कोई व्यक्ति अगर उस तरह का परिचय पा लेता है तो और क्या कहूं – ‘मानसिक हलचल’ धन्य हो गया।
उन लोगों की उपस्थिति के दौरान मन में यह विचार बना रहा कि मुझे ब्लॉग को, अपनी बढ़ती उम्र के साथ उपेक्षित नहीं करना है। उसे जीवंत बनाये ही नहीं रखना, उसे नये आयाम देना भी है। बहुत कुछ है जो लिखा-कहा जा सकता है।
शुक्ल जी के साथ चार विभागाध्यक्ष अधिकारी थे। छोटी सी मुलाकात में ज्यादा नहीं जान पाया उनके बारे में। गुलशन जी की बात याद रह गयी है कि वे जब अपने जूते टांगेंगे तो इसी तरह गांव में रहना चाहेंगे। वे मेरे घर-परिवेश को भविष्य की नजर से देख रहे थे! अजय मिश्र जी इलाहाबादी हैं। मुझे उन्होने बताया कि वे मुझसे मेरी बोली अवधी में भी बात कर सकते हैं और यहां भदोहिया भोजपुरी मिश्रित अवधी में भी।
शुक्ल जी खुद गोरखपुर के पास चौरीचौरा के रहने वाले हैं। चौरीचौरा से सिंगापुर की जीवन यात्रा के बारे में, अगर कभी फिर मिले तो बातचीत होगी।

शुक्ल जी की पत्नी जी, साली जी और मेरी पत्नी जी में बड़ी जल्दी तादात्म्य स्थापित हो गया। आसपास के सगे सम्बंधियों की चर्चा, बाभनों को प्रकार – सरयूपार – की बातचीत शुरू होने में देर नहीं लगी। … एक आध घण्टा और वे रुके होते या मेरी पत्नीजी उन लोगों को चाय-स्नेक्स पर टरकाने की बजाय ब्रेकफास्ट के लिये रोकतीं तो उन भद्र महिलाओं को चर्चा में एक दो शादियाँ तय हो जातीं आपसी रिश्तेदारी-पट्टीदारी में। 😆
चलते समय हम लोगों ने घर के सामने चित्र खिंचाये। शुक्ल जी अपने खिचड़ी होते बालोंं पर खुद ही बोले – “जब पोता हो गया, तो डाई करना छोड़ दिया।” वैसे उनके लिन्क्ड-इन प्रोफाइल में उनका चित्र काले बालों वाला है। अच्छा है – Linkedin पर जवान बने रहना ठीक रहता है! 🙂
शुक्ल जी ने किन्ही गोरखपुरी कवि की पंक्तियाँ सुनाईं, जिनका आशय है कि सफेद बालों में खिजाब लगा कर चलना यूं है जैसे झूठ कपाल पर लिये चलना! पहले शुक्ल जी मिले होते और वे पंक्तियां सुनाई होती तो मेरा भी भला होता। मैं तो दो-तीन दशक तक झूठ कपारे पर लिये घूमता रहा। रिटायर हुआ तो उसे कपाल से उतारा! 😆

और शुक्ल जी तो कभी रिटायर होने वाले हैं नहीं! डेढ़ सौ कर्मचारियों को नौकरी देते; पालते-पोसते हैं। उन्हें कोई रिटायर होने देगा? कभी नहीं। हां वे मौज मजे के लिये एमेच्योर रेडियो ब्रॉडकास्टिंग करें और उसपर एक आध बार हम जैसे को भी पॉडकास्ट ठेलने का मौका दें! और इधर इलाहाबाद-बनारस से गुजरते हुये ‘रेल लाइन के बगल-बगल चलते’ मेरे घर तक भी चले आयें। जरा बता कर आयें, जिससे उनके आतिथ्य लायक भोजन की तैयारी हो सके।
शुक्ल जी, उनके परिवार और उनकी टीम की जय हो!
ज्ञानदत्त पाण्डेय – मैं भदोही, उत्तरप्रदेश के एक गांव विक्रमपुर में अपनी पत्नी रीता के साथ रहता हूं। आधे बीघे के घर-परिसर में बगीचा हमारे माली रामसेवक और मेरी पत्नीजी ने लगाया है और मैं केवल चित्र भर खींचता हूं। मुझे इस ब्लॉग के अलावा निम्न पतों पर पाया जा सकता है। |
ट्विटर ID – @GYANDUTT फेसबुक ID – @gyanfb इंस्टाग्राम ID – @gyandutt ई-मेल – halchal(AT)gyandutt.com |
Jai Ho Pandey ji .
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