स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती पर विकिपेडिया पेज के बहाने


गुरुजी (श्री माधव सदाशिवराव गोलवळकर) की जयंती के अवसर पर वाराणसी कार्पेट्स, औराई, भदोही में आर.एस.एस. की एक संगोष्ठी थी और स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती मुख्य वक्ता थे। एक नॉन-पोलिटिकल अध्यक्ष की जरूरत थी तो उन्होने मुझे बुला लिया। वहाँ जाने के पहले मैंने उचित समझा कि आचार्य जीतेंद्र पर उपलब्ध जानकारी हासिल कर ली जाये।

स्वामीजी पर विकिपेडिया पर मौजूद सामग्री ने मुझे निराश किया। सन 2018 में विकिपेडिया ने इस पेज को ले कर कुछ बिंदु फ्लैग किये हैं। उन्हें देखते हुये लोगों को पेज अपडेट करना चाहिये था। पर वह साढ़े चार साल में भी किसी ने नहीं किया।

Swami Jitendranand Saraswati के विकिपेडिया पेज पर फ्लैग किये गये मुद्दे।

जो मुद्दे फ्लैग किये गये हैं, उनके आधार पर पेज को सुधारना आसान काम नहीं है। उसके लिये अध्ययन की आवश्यकता है। स्वामीजी गंगा महासभा, गंगा के पर्यावरण संरक्षण, हिंद-बलोच फॉरम के माध्यम से बलोच लोगों की समस्याओं/आजादी, हिंगलाज शक्तिपीठ आदि महत्वपूर्ण मुद्दों पर कार्य कर रहे हैं। ऐसा नहीं कि इन मुद्दों पर गहन गतिविधियां नहीं हैं। पर उनके बारे में लिखा लगभग नहीं जाता है। और जिन एनजीओ के बारे में इण्टरनेट पर सामग्री है, वे मूलत: वाम विचारधारा के हैं।

दक्षिण पंथ की ओर की सोच की लेखन सामग्री का इण्टरनेट पर अकाल है। और जब सामग्री का अकाल है तो विकिपेडिया पर सुगढ़ पेज बन ही नहीं सकता।

स्वामीजी का संगोष्ठी में उद्बोधन बहुत अच्छा था।

स्वामीजी का संगोष्ठी में उद्बोधन बहुत अच्छा था। मैं अगर उनके भाषण के आधार पर उनके व्यक्तित्व में सत्व-रजस-तमस गुणों का आकलन करूं तो उनमें तमस तो कत्तई नहीं है। रजस की भरमार है। सही मायने में वे एक्टिविस्ट हैं। हिंदुत्व के उदात्त की बजाय उदग्र पक्ष को व्यक्त करने में उन्हें संकोच नहीं है। पर उस पक्ष को भी बड़े महीन तरीके से व्यक्त करती प्रमाणिक जानकारी के अकाल के मुद्दे पर ध्यान दिया जाना चाहिये। नेट पर ‘स्वराज्य‘ उसकी कुछ कमी पूरी करता है। पर जब वामपंथी इकोसिस्टम के पास न्यूयॉर्क टाइम्स, गार्डियन, द हिंदू जैसे देस-विदेश के धाकड़ संस्थान मौजूद हों, तो मात्र स्वराज्य अपर्याप्त है।

आरएसएस वाले या ट्विटर पर मौजूद व्यापक ‘भक्त’ समुदाय इस दिशा में कुछ खास करते नहीं दीखते। मेरे एक सम्बंधी, जो संघ में खासी दखल रखते हैं; मजाक मजाक में कहते हैं – “आरएसएस के तीन काम। चिंतन, बैठक और विश्राम।” मेरे ख्याल से इसमें चौथा जुड़ना चाहिये – लेखन और वह भी इण्टरनेट पर लेखन।

‘माता’ पुस्तक में श्री अरविंद कहते हैं कि धन दैवीय शक्ति है। यह असुरों के द्वारा हथिया ली गयी है। इसे वापस लाना है। ‘धन’ की तरह लेखन और शिक्षण संस्थायें भी दैवीय शक्तियां हैं। ये असुरों के द्वारा हथिया ली गयी हैं। इन्हें वापस लाना चाहिये।

श्री माधव सदाशिवराव गोलवळकर जी की जयंती के अवसर पर वाराणसी कार्पेट्स, औराई, भदोही में आर.एस.एस. की एक संगोष्ठी थी और स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती मुख्य वक्ता थे।

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Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

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