23 फरवरी 2023
रींवा से प्रयागराज की ओर बढ़ रहे हैं प्रेमसागर। पिछली ज्योतिर्लिंग यात्रा के दौरान रींवा में उनके सम्पर्क बन गये थे, उनके माध्यम से रास्ते में इंतजाम होता जा रहा है।
सवेरे भोर में निकले कटरा के लिये। एक रास्ता हाईवे है। मनगवाँ होते हुये। दूसरा मझिगंवा-बैकुण्ठपुर-लालगांव होते हुये। दोनो रास्ते लगभग बराबर हैं। प्रेमसागर ने हाइवे की बजाय दूसरा रास्ता चुना।
रींवा रेस्ट हाउस से निकलते ही एक सज्जन – कुलदीप शर्मा जी मिल गये। उन्होने बताया कि फॉरेस्ट नर्सरी के बगल में ही उनका घर है। कुलदीप जी ने प्रेमसागर को चाय पिलाई, एक पानी का बोतल दिया और बैकुण्ठपुर का रास्ता दिखा दिया। उसी पर प्रेमसागर चल दिये। सवेरे पौने सात बजे जब उन्होने मुझसे बात की तो सात किमी चल चुके थे। शायद चाय की किसी दुकान पर रुके रहे हों।



सवेरे के चित्र। पहले में डा. कुलदीप शर्मा जी हैं। उन्होने प्रेमसागर को चाय पिलाई
पैदल चलने वाला यात्री एक एक इंच चलना बचाना चाहेगा। उसे हजारों किलोमीटर की यात्रा करनी है। प्रेमसागर भी पैदल शॉर्टकट रास्तों की बात करते हैं। सवेरे उन्होने बताया कि लोगों ने बताया कि बैकुण्ठपुर वाला रास्ता बयालीस किलोमीटर पड़ेगा। सो इस रास्ते को चुना। असल में यह रास्ता हाईवे वाले रास्ते से एक दो किमी ज्यादा लम्बा है।
चलने वाला किसपर यकीन करे? गूगल मैप पर या लोगों के बताये अनुभव पर? मेरे ख्याल से दोनो को देखे और अपना विवेक इस्तेमाल करे। लोग दूरी के बारे में आंकड़े पर नहीं, परसेप्शन पर ज्यादा यकीन करते हैं। पर गूगल कभी कभी आपको ऐसे रास्ते पर ठेल देता है जो वास्तव में लम्बा होता है। उसके पास गांव देहात के भारत के सभी छोटे रास्ते अपडेट नहीं हैं। लेकिन इस मामले में गूगल सही था – मेरे हिसाब से। खैर दोनो रास्तों में ज्यादा अंतर नहीं था। वैसे प्रेमसागर का अनुभव है कि तेज गर्मी में हाईवे की डामर की सड़क पर चलने की बजाय दूसरी सड़क पकड़ना बेहतर रहता है। गर्मी कम लगती है टांगों को।
रास्ते में कुछ खास नहीं रहा। रास्ता लम्बा था तो प्रेमसागर चलते ही रहे। लालगांव के पास कुछ सुरापान किये लोग उन्हें उन्हीं के यहां रुकने और रात गुजारने की जिद कर रहे थे। बकौल प्रेमसागर – बड़ी मुश्किल से उनसे जान छुड़ाई। 🙂
अपने बैग के बारे में प्रेमसागर ने बताया – “भईया रींवा से चलने के बाद 10-12 किमी पर मेरा बैग फट गया। पुराना था। नया कांधे से लटकाने वाला काला बैग तो रींवा में सज्जन सिंह जी के पास ही छोड़ दिया था। फिर सुधीर भईया (दमन के प्रशासनिक अधिकारी सुधीर पाण्डेय) ने खाते में पैसा भेजा। उससे एक कामचलाऊ बैग खरीद लिया है। प्रयागराज में देख कर अच्छा पिट्ठू बैग खरीदूंगा। सुधीर भईया ने कहा है कि उसका भी पैसा वे भेज देंगे।”
प्रेमसागर ने बताया कि दिल्ली के एक सोशल मीडिया वाले दिलीप जी ने भी पांच सौ एक रुपया उनके खाते में भेजा है। उनका भी धन्यवाद कर रहे हैं प्रेमसागर!
सुधीर जी ने प्रेमसागर की हर पग पर आर्थिक सहायता की है। मेरी तरह प्रेमसागर के भीषण आलोचक भी हैं, पर बहुत स्नेह भी रखते हैं।


कटरा में राम मूरत पाण्डेय जी के घर पर। दांये चित्र में प्रेमसागर का नया लिया पिट्ठू बैग भी रखा है।
कटरा में वे राम मूरत पाण्डेय जी के घर पर ठहरे हैं। राम मूरत जी से परिचय रींवा की नर्सरी के वन रक्षक सज्जन सिंह जी के माध्यम से हुआ है। राम मूरत जी प्रेमसागर को गौशाला बनाने के लिये जमीन भी उपलब्ध करा रहे हैं। गौशाला में परित्यक्त गायों को आश्रय दिया जायेगा।
परित्यक्त गायों को आश्रय? यह सुनने में बहुत अच्छा लगता है पर मैंने अमूमन लोगों को परित्यक्त गायों की सेवा करते नहीं, सेवाभाव को भुनाते ज्यादा देखा है। यही कारण है कि बहेतू गौवंश की समस्या विकराल है और किसान फसल बर्बाद होने से उनके प्रति श्रद्धाभाव खोता जा रहा है। प्रेमसागर और राम मूरत जी अगर गौवंश के लिये कुछ सार्थक करते हैं तो वह देखने लायक होगा। मैंने प्रेमसागर जी से उनके इस प्रॉजेक्ट पर आगे और नहीं पूछा।




कटरा तक की यात्रा के कुछ चित्र भेजे हैं प्रेमसागर ने। एक नहर, चने के खेत और एक तालाब (?)। देहात के भारत के दृश्य।
कटरा तक की यात्रा के कुछ चित्र भेजे हैं प्रेमसागर ने। एक नहर, चने के खेत और एक तालाब (?)। देहात के भारत के दृश्य। प्रेमसागर तो चलते ही रहे हैं। बीच बीच में मोबाइल से जो क्लिक कर लिया, उसे मेरे पास भेज देते हैं। पर वह सब देखते समय मन में जो विचार आते होंगे, उसका वर्णन अपने फोन वार्ता में नहीं करते। डिजिटल ट्रेवलॉग की यह कमी है। मैं साथ यात्रा कर रहा होता तो और बहुत कुछ निकल कर आता।
कभी कभी मन में आता है कि हीरो बिजली की साइकिल वाले अगर मेरी यात्रा स्पॉन्सर कर दें तो भारत दर्शन की ई-साइकिल से एक यात्रा मैं भी कर सकता हूं! और वह अभूतपूर्व होगी!
फिलहाल तो प्रेमसागर की यात्रा से बंध कर चला जाये। देखें वे अगले पड़ाव – प्रयागराज – तक कैसे पंहुचते हैं!
प्रेमसागर की शक्तिपीठ पदयात्रा प्रकाशित पोस्टों की सूची और लिंक के लिये पेज – शक्तिपीठ पदयात्रा देखें। ***** प्रेमसागर के लिये यात्रा सहयोग करने हेतु यूपीआई एड्रेस – prem12shiv@sbi |
दिन – 34 कुल किलोमीटर – 1244 मैहर। अमरपाटन। रींवा। कटरा। चाकघाट। प्रयागराज। विंध्याचल। कटका। वाराणसी। जमानिया। बारा। बक्सर। बिक्रमगंज। दाऊदनगर। करसारा। गया-वजीरगंज। नेवादा। सिकंदरा। टोला डुमरी। देवघर। तालझारी। दुमका-कुसुमडीह। झारखण्ड-बंगाल बॉर्डर। नंदिकेश्वरी शक्तिपीठ। फुल्लारा और कंकालीताला। नलटेश्वरी। अट्टहास और श्री बहुला माता। उजानी। क्षीरसागर/नवद्वीप। |
Prem Sagar ji ka sunder prayas may God bless him happy journey
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Thanks 🙂
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