रास्ता लम्बा था तो प्रेमसागर चलते ही रहे। लालगांव के पास कुछ सुरापान किये लोग उन्हें उन्हीं के यहां रुकने और रात गुजारने की जिद कर रहे थे। बकौल प्रेमसागर – बड़ी मुश्किल से उनसे जान छुड़ाई। 🙂
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अमरपाटन से रींवा
जूठी चाय और फिर पानमसाला-जर्दा। अचानक प्रेमसागर को लगा कि उस भिखमंगे का एक फोटो ले लेना चाहिये। पर तब देखा कि वह भिखमंगा गायब हो गया है। …
रींवा पंहुच कर लोगों को यह घटना बताई तो उनका कहना था – महादेव और माई बीच बीच में अपने गणों को भेजते रहते हैं। उससे ज्यादा उद्विग्न नहीं होना चाहिये। यह तो लीला है!
रीवा से बाघवार – विंध्य से सतपुड़ा की ओर
आगे रास्ता बहुत खतरनाक था। सर्पिल “जलेबी जैसी” सड़क। जरा सा फिसले नहीं कि खड्ड में गिर जाने का खतरा। सर्पिल सड़क से हट कर एक जगह पगड़ण्डी पकड़ी प्रेम सागर ने और पांच-सात किलोमीटर बचा लिये। शाम पांच बजे वे बाघमार रेस्ट हाउस पंहुच गये थे।
प्रेम सागर के घर वाले कैसे लेते हैं पदयात्रा को?
कोई व्यक्ति, 10-15 हजार किलोमीटर की भारत यात्रा, वह भी नंगे पैर और तीन सेट धोती कुरता में करने की ठान ले और पत्नी/परिवार की सॉलिड बैकिंग की फिक्र न करे – यह मेरी कल्पना से परे है। मैं तो छोटी यात्रा भी अपनी पत्नीजी के बिना करने में झिझकता हूं।