शक्तिपीठ पदयात्रा में प्रयाग-विंध्याचल-वाराणसी

26 फरवरी 2023 से 1 मार्च 2023

गुड्डू मिश्र जी के यहां रहे प्रेमसागर 25-26 फरवरी की रात में। गुड्डू मिश्र नैनी में रहते हैं। शाक्त हैं और कई शक्तिपीठों की यात्रा भी कर चुके हैं। मातृश्रद्धा से संतृप्त व्यक्ति। उनके यहां आराम से रहे प्रेमसागर।

छब्बीस फरवरी को दोपहर डेढ़ बजे मिश्र जी के यहां से प्रेमसागर आगे की यात्रा पर रवाना हुये। उस दिन ज्यादा चल नहीं पाये। नैनी से मेजारोड तक ही चलना हुआ। गर्मी बढ़ गयी है। दोपहर में और भी उष्णता थी। उसके अलावा शाम चार बजे के आसपास उनके पैर में एक कांच गड़ गया। कांच निकाल कर सरसों का तेल लगाया पैर में। आराम कर धीरे धीरे मेजारोड तक पंहुचे।

मेजारोड में किन्हीं हरिशंकर शुक्ल जी के यहां रात गुजारने के लिये आश्रय मिला उन्हें। हरिशंकर शुक्ल जी का घरेलू नाम गुरू शुक्ल है। वे गुड्डू मिश्र जी के सम्बंधी हैं और गुड्डू जी माध्यम से ही यहां रहने का इंतजाम हुआ। हरिशंकर जी के भाई कृपाशंकर डीआरएम ऑफिस, प्रयागराज में कार्यरत है। उनसे मेरी बात कराई प्रेमसागर ने। रेलवे के सम्बंध के अलावा कुछ विशेष बात करने को था नहीं मेरे पास। कृपाशंकर जी ने बड़े आदर से मुझसे बात की। हम लोग पहले मिले नहीं थे – यद्यपि मैं प्रयागराज में छ-सात साल पदस्थ रहा। पर कृपाशंकर कुछ लोगों को जानते हैं जो मेरे सम्पर्क में थे।

अगले दिन, सताईस फरवरी को, मेजारोड से जल्दी ही प्रस्थान हुआ प्रेमसागर का। साढ़े छ बजे। रात में सरसों का तेल गर्म कर तीन बार लगाने से पैर में कांच गड़ने का जख्म ठीक हो गया था। यात्रा में अभी प्रेमसागर ने जूते नहीं पहने हैं। “भईया पांच सात शक्तिपीठ दर्शन होने के बाद एक कपड़े का जूता खरीदूंगा। गर्मी बढ़ गयी है तो एक पाउडर का डिब्बा भी खरीदना है। पसीना हो जा रहा है और रगड़ खाने से जांघ में दर्द बढ़ रहा है।”

गर्मी जल्दी ही आ गयी है। समय से पहले ही प्रेमसागर को गर्मियों का इंतजाम करना होगा।

विंध्याचल पहाड़ के पहले जिगिना मार्केट में वे पानी पीने रुके। दुकानदार से पानी का बोतल लिया। दुकानदार ने पैसा कम लिया। आगे एक उत्तर प्रदेश पुलीस के सिपाही जी मिले। उन्होने भी आदर सत्कार किया। उनका फोटो लेना चाहते थे प्रेमसागर पर सिपाही जी ने मना किया – प्रशासन का आदेश है कि इस तरह फोटो नहीं खिंचाना है। लोग उसका मिसयूज कर सकते हैं।

अष्टभुजा की पहाड़ी के पहले एक पतली नदी है – शायद कर्णावती। बहुत सुंदर लगती है पहाड़ की तलहटी से लिपटी वह नदी। उसी नदी के पहले ही मिले थे वे पुलीस वाले सज्जन। नदी इतनी सुंदर लगती है कि वहीं रुक जाने का मन करता है। मुझे यह लगता था कि अगर प्रेमसागर में कुछ सौंदर्यबोध है तो वे उस नदी के चित्र जरूर लेंगे। और प्रेमसागर ने मुझे निराश नहीं किया। :-)

रात आठ बजे प्रेमसागर ने मुझसे बात की। वे अष्टभुजा माई का दर्शन कर चुके थे। वहां यह जान कर कि वे सभी शक्तिपीठों की पदयात्रा पर निकले हैं, मंदिर के लोगों ने उनका चुनरी उढ़ा कर सम्मान किया। गुड्डू मिश्र जी के सम्पर्क से भानू पण्डा जी मिले हैं यहां विंध्याचल में। उनका गेस्ट हाउस है। वहीं उनके रहने का इंतजाम है। भानू पण्डा जी ने उन्हें आगे काली खोह का और विंध्यवासिनी देवी का दर्शन कराया।

अष्टभुजा मंदिर के लोगों ने उन्हें शक्तिपीठ पदयात्री जान कर उनका चुनरी उढ़ा सम्मान किया।

इस पहाड़ पर मातृशक्ति के तीन रूप हैं; मुख्यत:। अष्टभुजा देवी का मिथक महाभारत कालीन है। कंस ने देवकी की सभी संतानों का जन्मते ही वध करने का निश्चय कर रखा था। पर देवकी-वसुदेव की पुत्री उसके हांथ से छिटक कर अंतर्ध्यान हो गयी और यहां अष्टभुजा के रूप में पहाड़ी पर स्थापित हुईं। इस पहाड़ी से दो किमी आगे है काली खोह। वहां माता काली का स्थान है। उसके आगे विंध्यवासिनी माता का स्थान है। अष्टभुजा अगर सृजन की देवी हैं – माता सरस्वती; तो कालीखोह संहारकारिणी शक्ति हैं और विंध्यवासिनी जगदम्बा हैं – पालन करने वाली। ये तीनों देवी स्थान उन शक्ति पीठों में से नहीं हैं जहां सती की देह का कोई अंग गिरा था। पर शाक्त सम्प्रदाय में इन स्थलों की महत्ता किसी भी शक्तिपीठ से कमतर नहीं आंकी जाती।

बड़ी संख्या में श्रद्धालु इन स्थलों पर लगभग नियमित आते हैं। नवरात्रि पर्व में तो यहां भीड़ अभूतपूर्व होती है। कोरोना काल में जब आवागमन पर रोक थी, तब कम आये होंगे लोग पर इस साल तो संख्या बहुत बढ़ने की सम्भावना है। इस क्षेत्र का पुन: निर्माण और सौंदर्यीकरण उसी तर्ज पर हो रहा है जैसे काशी विश्वनाथ धाम का हुआ है। उस कार्य से पर्यटन व्यवसाय से जुड़े लोगों को असुविधा भले हो, भविष्य में धार्मिक पर्यटन और सुगम होगा। लोगों के आने में कई गुणा वृद्धि होगी।

सताईस फरवरी की देर रात तक प्रेमसागर ने इन तीनों देवी-स्थानों का दर्शन कर लिया था। रात में भानू पण्डाजी के गेस्ट हाउस में विश्राम करने के बाद अट्ठाईस फरवरी को, सवेरे एक बार फिर उन्होने विंध्यवासिनी धाम का दर्शन किया। उसके बाद वे आगे बढ़े।

विंन्ध्याचल/मिर्जापुर के बाद शास्त्री पुल से गंगाजी पार कर प्रेमसागर को मेरे घर आना था। उनको मैंने अपने घर का लोकेशन भेज दिया था। प्रेमसागर पहले भी मेरे घर आ चुके हैं। इसलिये आने में विशेष दिक्कत नहीं हुई।

अठाईस फरवरी की दोपहर के भोजन के समय प्रेमसागर, थोड़ा देर से ही सही, मेरे घर पर थे।


अट्ठाईस फरवरी की दोपहर से एक मार्च की सुबह 9 बजे तक प्रेमसागर मेरे घर पर थे। उनका वजन पहले से कम हुआ है। शरीर पर अतिरिक्त मांस नजर नहीं आता। स्वस्थ्य और फुर्तीले लगे प्रेमसागर। आगे की लम्बी यात्रा के लिये तैयार लगता है उनका शरीर। मेरे पूछने पर बताया कि पिछली द्वादश ज्योतिर्लिंग यात्रा करने से उनका आत्मविश्वास बढ़ा है। एक बहुत लम्बी पदयात्रा की समस्याओं, महत्व और लाभ का अंदाज उन्हें बखूबी हो गया है।

प्रेमसागर ने अपने अनुभव मुझे बताये। उनके नेटवर्क, सहायता करने वाले लोग और उनकी अपनी भौगोलिक जानकारी में बहुत विस्तार हुआ है। फोटो खींचने और उसकी बेसिक एडिटिंग वे बखूबी समझ गये हैं। पारम्परिक चिकित्सा के टिप्स अब वे खूब देने लगे हैं। जो लोग उनके पास अपनी समस्याओं के निदान की आशा से आते होंगे (और भारतीय मानस वैसा ही है, अमूमन) उन्हें ये टिप्स बहुत भाते होंगे। उन्होने मुझे महुआ का तेल दिया मेरे जोड़ों के दर्द के लिये। सवेरे घर के पास घूमते हुये मदार की टहनी भी तोड़ लाये। कहा – भईया इसकी पत्तियां रात में तवे पर गरम कर घुटनों में बांध लिया करें। जल्दी आराम मिलने लगेगा।

अपनी उत्तराखण्ड की यात्राओं में वहां की देसी गायों का घी लिया था। एक शीशी घी मुझे भी दिया। “वे गायें भईया जंगल में चरती हैं। घास के साथ जो जंगली बूटियां वे खाती हैं, उससे बनने वाला घी बहुत गुणकारी होता है।” – प्रेमसागर ने मुझे बताया।

प्रेमसागर का बैग मैंने उठा कर देखा – चार किलो से कम ही वजन होगा। वे वास्तव में कम से कम ले कर चलने लगे हैं – ट्रेवल लाइट नारे का प्रयोग करने वाले। पीछे कांधे पर लेने वाला यह पिट्ठू बैग और एक दहिमन की लकड़ी की डण्डी – यही उनका सामान है। कपड़े न्यूनतम हैं। अपनी पोटली में उन्होने सोठउरा, तिल, गुड़ और गोंद का लड्डू और कुछ सूखे मेवे रखे थे। वह मुझे दिखाये भी और चखाये भी। कभी मुझे अगर यात्रा का कीड़ा काटेगा (कम ही सम्भावना है) तो मैं इस तरह की चीजों को लेकर चलूंगा।

प्रेमसागर के कमरे में बिजली के प्वाइण्ट का तार इनवर्टर से जुड़ा नहीं था। उन्होने पेंचकस मांगा और खुद ही उसे इनवर्टर से जोड़ लिया। बिजली की ट्रबलशूटिंग में महारत दिखा दी उन्होने। मैं तो अपनी बिजली के इंजीनियर की डिग्री होने के बावजूद वह करने के लिये इलेक्ट्रीशियन का इंतजार करता रहा कई महीने से। गांव देहात में कारीगर मिलते भी मुश्किल से हैं।

एक मार्च को सवेरे हमने प्रेमसागर को नाश्ता कराया और मेरी पत्नीजी ने रास्ते के लिये उन्हें परांठा-सब्जी का टिफन बांध कर दिया। कुछ उसी तरह जैसे घर के आदमी को रास्ते के खाने के लिये दिया जाता है। प्रेमसागर की पानी की बोतल टूट गयी थी तो पत्नीजी ने उन्हें अपनी स्टील की बोतल में पानी दिया। हम प्रेमसागर पर खीझ भी उतारते हैं, व्यंग भी करते हैं; पर उन सरल जीव पर मोह-ममता भी बहुत है। फिर, विदा होते समय यह तो लग ही रहा था कि अकेला, बिना साधन के यह व्यक्ति कितने बड़े मिशन पर निकल लिया है।

सवेरे नौ बजे हमारे वाहन चालक वाहन से उन्हें हाईवे पर छोड़ कर आये। वहां से उन्होने बनारस की पदयात्रा प्रारम्भ की।

शाम सात बजे वे बनारस में थे। उनके रहने, रात गुजारने का इंतजाम नहीं हो पाया था। मुझे बताया कि वे किसी लॉज की तलाश में हैं। वहां रुक कर अगले दिन वे बनारस में पड़ने वाले दो शक्तिपीठ और बाबा विश्वनाथ का दर्शन करेंगे। उसके अगले दिन सवेरे आगे गाजीपुर के लिये निकल लेंगे।

मेरी पत्नीजी के भाइयों का ट्रेवल ऑफिस बनारस में है और उस ऑफिस के सामने एक लॉज है – आनंद लॉज। पत्नीजी ने अपने भाई से बात की और आनंद लॉज में प्रेमसागर के रुकने का इंतजाम कराया।

अगले दिन (दो मार्च को) भोर में उन्हें वाराही माता का दर्शन करना है। वाराही माता का मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है, जहां सती का नीचे का जबड़ा धरती पर गिरा था। मानमंदिर घाट पर यह मंदिर सवेरे मात्र 2 घण्टे के लिये खुलता है। उस समय बहुत भीड़ होती है वहां। प्रेमसागर को तड़के ही जाना है दर्शन के लिये।

यह यात्रा विवरण मैं कई दिनों के बाद लिख रहा हूं। मेरा स्वास्थ्य बहुत अच्छा नहीं था। लिखने पढ़ने का मन नहीं हो रहा था। आगे प्रेमसागर की यात्रा के साथ साथ लेखन चल पाये, उसका प्रयास होगा।

आगे की यात्रा के लिये अगली पोस्ट! हां, मेरा सोचना है कि प्रेमसागर को आर्थिक सहयोग मिलना चाहिये। पाठकगण, आप जो दे सकते हों, कृपया उनके यूपीआई एड्रेस पर उन्हें देने का कष्ट करें।

हर हर महादेव! ॐ मात्रे नम:!

प्रेमसागर की शक्तिपीठ पदयात्रा
प्रकाशित पोस्टों की सूची और लिंक के लिये पेज – शक्तिपीठ पदयात्रा देखें।
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प्रेमसागर के लिये यात्रा सहयोग करने हेतु उनका यूपीआई एड्रेस – prem12shiv@sbi
दिन – 103
कुल किलोमीटर – 3121
मैहर। प्रयागराज। विंध्याचल। वाराणसी। देवघर। नंदिकेश्वरी शक्तिपीठ। दक्षिणेश्वर-कोलकाता। विभाषा (तामलुक)। सुल्तानगंज। नवगछिया। अमरदीप जी के घर। पूर्णिया। अलीगंज। भगबती। फुलबारी। जलपाईगुड़ी। कोकराझार। जोगीघोपा। गुवाहाटी। भगबती। दूसरा चरण – सहारनपुर से यमुना नगर। बापा। कुरुक्षेत्र। जालंधर। होशियारपुर। चिंतपूर्णी। ज्वाला जी। बज्रेश्वरी देवी, कांगड़ा। तीसरा चरण – वृन्दावन। डीग। बृजनगर। विराट नगर के आगे। श्री अम्बिका शक्तिपीठ। भामोद। यात्रा विराम। मामटोरीखुर्द। चोमू। फुलेरा। साम्भर किनारे। पुष्कर। प्रयाग। लोहगरा। छिवलहा। राम कोल।
शक्तिपीठ पदयात्रा

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

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