19 मार्च 23
कुसुमडीह में रिया रमन होटल से सवेरे रवाना होते समय अंदाज नहीं था कि शाम तक कहां होगा पड़ाव। झारखण्ड में या बंगाल में? कोई मंदिर मिलेगा या धर्मशाला या होटल या फिर पीपल का पेड़।

सवेरे रिया रमन होटल से निकलते ही चाय की दुकान मिल गयी। होटल से सटी है वह ट्विन दुकान – बाबा बासुकी पान भण्डार प्लस बाबा बासुकी चाय भण्डार। आगे के रास्ते के बारे में प्रेमसागर ने बताया कि घर ज्यादातर खपरैल के हैं। उन्होने दूर बैलगाड़ी चलती देखी। लोग सामान ढोने में और बांस आदि ले जाने में बैलगाड़ी का इस्तेमाल करते हैं। सागौन के ज्यादा वृक्ष हैं। लोग सीधे हैं। जो दुकान इत्यादि लगाये हैं, वे कुछ चालाक भी हैं।



घर ज्यादातर खपरैल के हैं।
दुमका झारखण्ड के जंगल भी समेटे है। जैसे जैसे आगे बढ़ रहे हैं प्रेमसागर, जंगल भी बढ़ रहा है। आदिवासी घर भले ही खपरैल के हों, उनमें सुविधायें कम हों, टीवी के एण्टीना ज्यादा न दीखते हों, पर घर साफ दीखते हैं। घर के बाहर की जमीन बहुधा मिट्टी से लीपी हुई होती है। उनकी मुर्गियां और बकरियां सड़क पर भी आ जाती हैं। इक्कीसवीं सदी में भी उनका जंगल से समीकरण (बदला भले है) गड़बड़ाया नहीं है।
हाथियों के एक स्थान से दूसरे में आने-जाने का रूट यहीं से है। झुण्ड में चलते हैं। चेतावनी के बोर्ड जगह जगह लगे हैं। लोग अपने पास मशाल-ढोल और पटाखों का इंतजाम करते हैं। हाथियों से दूर रहना चाहते हैं। उन्हें छेड़ने पर खुद का ही नुक्सान है – यह लोग भली तरह जानते हैं। पर हाथी और मनुष्य में इलाके के वर्चस्व की लड़ाई तो है और उसे नकारा नहीं जा सकता। चेतावनी बोर्डों पर हाथी दीखने पर वन विभाग को सूचित करने का संदेश लिखा रहता है।

अजगर? प्रेमसागर को लोगों ने चेताया कि अजगर भी दिख सकते हैं रास्ते में। छोटे जीव, मसलन बकरी का बच्चा उनके शिकार होते हैं। उन्हे बता दिया है कि अजगर दिखे तो घबराना नहीं है। दूर से बचते हुये निकल जाना है।
दिन भर चलते रहे प्रेमसागर और शाम चार बजे से रात के पड़ाव तलाशने की कवायद शुरू हो गयी। मंदिरों में पूछना शुरू किया गया। मैंने उनकी लाइव लोकेशन देखी तो वे किसी रानीश्वर नामक जगह के समीप थे। जो रास्ता उन्हें नंदिकेश्वरी शक्तिपीठ के लिये लेना था उससे थोड़ा हट कर थे पर ज्यादा हट कर नहीं। उनके दांई ओर मयूराक्षी नदी थी। लगभग समांतर चल रहे थे वे नदी के। गूगल मैप पर मैंने देखा कि रानीश्वर में एक बड़ा शिव मंदिर था – रानीश्वर नाथ मंदिर। जो चित्र उस मंदिर के गूगल मैप पर थे, उसमें एक बड़ा नंदी मंदिर के बाहर चबूतरे पर बैठे थे। लगभग उसी आकार के जैसे काशी विश्वनाथ मंदिर में ज्ञानवापी को फेस करते बड़े नंदी हैं। मैंने प्रेमसागर को सुझाव दिया वहां पंहुच कर कोशिश करें रात्रि विश्राम की। वह जगह नक्शे के हिसाब से एक डेढ़ किलोमीटर दूर थी।

पांच बजे फिर पूछा तो प्रेमसागर के स्वर में निराशा थी – “मंदिर में पुजारी नहीं हैं, पण्डा हैं। वे मंदिर बंद कर अपने घर चले जाते हैं। परिसर में किसी पेड़ के नीचे भी रात गुजारना ठीक नहीं था। चार पांच विक्षिप्त से लोग वहां दिख रहे थे। पागल से। उनके बीच रुकना ठीक नहीं है। लोगों ने बताया है कि पास में एक किलोमीटर पर लक्की हार्डवेयर स्टोर है। उसके मालिक आने जाने वाले यात्रियों के रहने का इंतजाम करते हैं। अब वहीं जा रहा हूं।”
घण्टे भर बाद और भी निराशा – “आगे कोई लाइन होटल (ढाबा) तलाश रहा हूं। लक्की हार्डवेयर के यहां बात नहीं बनी। उसके मालिक जी, जो इंतजाम करते थे, गुजर गये हैं।”
उसके आधे घण्टे बाद – “झारखण्ड-बंगाल बॉर्डर की ओर चल रहा हूं भईया। एक जगह मिली थी वह पांच सौ मांग रहे थे रात भर रुकने का। उसमें तो कोई तकलीफ नहीं थी, पर उनके पास पेटीएम नहीं था। मेरे पास कैश में दो-तीन सौ भर ही था। ज्यादा पैसा जेब में रखना ठीक नहीं समझता मैं। अब झारखण्ड बॉर्डर पर कोई न कोई होटल मिल जायेगा। आप फिकर न करें भईया।”

प्रेमसागर की आवाज में अनिश्चय था और बेचैनी भी। पर मैं उन्हें बार बार फोन कर रहा था तो उन्हें लगा कि मैं शायद ज्यादा व्यग्र हूं। वे मुझे ढाढस बंधा रहे थे। मैं, जिसके पास घर की पूरी सुविधायें और आराम था। उनके पास तो उनकी लाठी, पिट्ठू और मोबाइल भर था। गूगल मैप पर शेयरिंग बता रही थी कि उनके मोबाइल की बैटरी भी 34 प्रतिशत बची है। इससे पहले कि बैटरी डाउन हो जाये, उन्हें कोई न कोई जगह मिलनी ही चाहिये।
सात बजे वे झारखण्ड – बंगाल सीमा पर थे। जगह का नाम था कुलुबंदी। एक ठिकाना मिला – शांति होटल एण्ड रेस्टोरेण्ट। कमरे का रेट पांच सौ का है। पास की एक दुकान से प्रेमसागर ने सात सौ रुपये निकाल लिये हैं। दुकान वाले ने पेटीएम पर ऑनलाइन ले कर कैश दे दिया है।
“रात का इंतजाम हो गया भईया। कल सवेरे पार करूंगा झारखण्ड-बंगाल बॉर्डर। अभी तो झारखण्ड है। आगे बंगाल में कैसे टाइम कटेगा, वह माई जानें, महादेव जानें। हम क्या फिकर करें भईया।” – प्रेमसागर ने कहा।
होटल वाला बमुश्किल तैयार हुआ कमरा देने को। उसने बताया – “बाबा लोग आते हैं रुकने के लिये और बहुत नौटंकी करते हैं।”
इतने सारे मंदिर हैं। उन मंदिरों में रुकने की जगह की कमी नहीं। लोगों में शायद श्रद्धा भाव भी पूरी तरह मरा नहीं है। ताली दोनो हाथों से बजती है। बाबाओं-साधुओं ने अपनी साख गंवा दी है जन मानस में। वह आसानी से वापस नहीं आ सकती। 😦
यह घटना सुन कर मेरी पत्नीजी याद करती हैं। पंद्रह बीस साल पहले प्रयाग के शिवकुटी में हाथी पर सवार साधू लोग आते थे। जोर जोर से चिल्ला कर मांगते हुये। उन्हें देख लोग अपने घर-दरवाजे-खिड़कियां बंद कर लेते थे। वे भिक्षा न देने पर बहुत अपशब्द कहते थे। शाप देते थे – जा मर जा। तेरा वंश नाश हो जाये। … मुस्टण्डे साधुओं को, जो हाथी पर सवार हों, यह नौटंकी करने की क्या जरूरत? उन्ही की नौटंकी के कारण हिंदू धर्म में से पदयात्रियों के प्रति अश्रद्धा और अविश्वास बढ़ा है। लोग अर्थ के युग में स्वार्थी तो वैसे भी हो गये हैं। हिंदू धर्म का धर्म और अर्थ का बैलेंस बुरी तरह गड़बड़ा गया है। काम का उद्दीपन हो गया है और मोक्ष तो लोगों के ध्येय के राडार पर रहा ही नहीं!
प्रेमसागर अपने परिचय के रूप में होटल वाले को मेरे ब्लॉग दिखाते हैं। द्वादश ज्योतिर्लिंग यात्रा के और इस शक्तिपीठ यात्रा के। उससे यह स्पष्ट हो जाता है कि बाबा प्रेमसागर जेन्युइन पदयात्री हैं; नौटंकीबाज नहीं। और उससे होटल वाले का पैराडाइम बदल जाता है। बदले नजरिये से उसमें श्रद्धा भाव आ जाता है। वह कमरे का किराया – 500 रुपया – तो कम नहीं करता; पर प्रेमसागर को अपनी ओर से रोटी दाल (बघारी हुई), आलू की भुजिया और एक ग्लास दूध देता है।
प्रेमसागर ने जब यह बताया तो मुझे अपने डियाक लेखन की सार्थकता का अहसास हुआ। उसी के माध्यम से लोग प्रेमसागर को उनके यूपीआई पते पर अंशदान भी कर रहे हैं। अनेकानेक लोगों की शुभकामनायें उनके साथ जुड़ गयी हैं। शांति होटल वाले सज्जन की शुभकामना भी उसमें जुड़ गयी।
होटल वाला बमुश्किल तैयार हुआ कमरा देने को। उसने बताया – “बाबा लोग आते हैं रुकने के लिये और बहुत नौटंकी करते हैं।”
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इतने सारे मंदिर हैं। उन मंदिरों में रुकने की जगह की कमी नहीं। लोगों में शायद श्रद्धा भाव भी पूरी तरह मरा नहीं है। ताली दोनो हाथों से बजती है। बाबाओं-साधुओं ने अपनी साख गंवा दी है जन मानस में। वह आसानी से वापस नहीं आ सकती। 😦
इस जगह से नंदिकेश्वरी शक्तिपीठ पच्चीस किलोमीटर दूर है। वहां से पच्चीस-तीस-पचास किलोमीटर के अंतराल पर चार और शक्तिपीठ हैं। शक्तिपीठ दर्शन की एक चेन बन जायेगी अगले सप्ताह। गया से ले कर कुलुबंदी तक की यात्रा रोचक रही है। कठिन यात्रा में भी मेरा प्रेमसागर से और प्रेमसागर का मुझसे उच्चाटन नहीं हुआ है। आगे देखें क्या होता है!

आज तक की यात्रा में प्रेमसागर हजार किलोमीटर का आंकड़ा पार कर गये हैं। आजतक का जोड़ बनता है 1020किमी! हजार किलोमीटर पैदल चलना बिना साधन-सम्पन्नता के, कोई मामूली बात नहीं है। मामूली नहीं है, तभी मैं उनकी डियाक (डिजिटल यात्रा कथा) लिखने में दिन में तीन चार घण्टे लगाता हूं, कम से कम! 😆
हर हर महादेव। ॐ मात्रे नम:।
आप तो कृपया प्रेमसागर को रहने और यात्रा की खुराकी के लिये अपने अंशदान की सोचें। उनके यूपीआई एड्रेस पर जो भी दे सकते हैं, देने का कष्ट करें। छोटा अमाउण्ट भी चलेगा। 🙂
प्रेमसागर की शक्तिपीठ पदयात्रा प्रकाशित पोस्टों की सूची और लिंक के लिये पेज – शक्तिपीठ पदयात्रा देखें। ***** प्रेमसागर के लिये यात्रा सहयोग करने हेतु उनका यूपीआई एड्रेस – prem12shiv@sbi |
दिन – 83 कुल किलोमीटर – 2760 मैहर। प्रयागराज। विंध्याचल। वाराणसी। देवघर। नंदिकेश्वरी शक्तिपीठ। दक्षिणेश्वर-कोलकाता। विभाषा (तामलुक)। सुल्तानगंज। नवगछिया। अमरदीप जी के घर। पूर्णिया। अलीगंज। भगबती। फुलबारी। जलपाईगुड़ी। कोकराझार। जोगीघोपा। गुवाहाटी। भगबती। दूसरा चरण – सहारनपुर से यमुना नगर। बापा। कुरुक्षेत्र। जालंधर। होशियारपुर। चिंतपूर्णी। ज्वाला जी। बज्रेश्वरी देवी, कांगड़ा। तीसरा चरण – वृन्दावन। डीग। बृजनगर। सरिस्का के किनारे। |
