प्रेमसागर के स्वर में निराशा थी – “मंदिर में पुजारी नहीं हैं, पण्डा हैं। वे मंदिर बंद कर अपने घर चले जाते हैं। परिसर में रात गुजारना ठीक नहीं था। चार पांच विक्षिप्त से लोग वहां दिख रहे थे। पागल से।”
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तालझारी से दुमका के आगे कुसुमडीह
दुमका के पहले नंगे पैर चलते प्रेमसागर के पांव में खजूर का कांटा गड़ गया। खुद निकाल नहीं पाये तो रास्ते में एक स्वास्थ्य केंद्र पर डाक्टर साहब से निकलवाया। वहां की पर्ची के चित्र में जगह का नाम लिखा है – सामुदायिक स्वास्थ केंद्र, जामा।
देवघर से तालझारी
सवेरे जल्दी निकलना बहुत फायदेमंद है भईया। अब गर्मी हो गयी है। दिन में सड़क तपने लगती है तो चलने में मुश्किल होती है। सवेरे सवेरे खूब चला जा रहा है। अब आगे यही करूंगा। सवेरे चल कर दिन में आराम और फिर शाम को चलना हुआ करेगा।
