10 अप्रेल 2023
कल 9 अप्रेल को अमरदीप पांड़े के घर से निकलते निकलते भी साढ़े सात बजा। भोर में उठ कर चल देने का नियम नहीं लागू हो रहा। ड्रेगन फ्लाई वाले तरीके से पदयात्रा के अपने लाभ हैं और अपने नुक्स। यह नहीं होता कि आप उठे, राम राम कह कदम बढ़ाया और पदयात्रा चालू। अमरदीप जी के घर से उन्होने बस पकड़ी और सुल्तानगंज के गंगा घाट तक पंहुचने के लिये तीन साधन बदले। पौने बारह बजे किनारे पर फेरी में बैठे।

सुल्तानगंज का घाट गूगल मैप के चित्रों में जितना बढ़िया लगता है, उतना प्रेमसागर के चित्रों में नजर नहीं आया। उनके नये मोबाइल कैमरे की सेटिंग उनकी समझ में अभी तक नहीं आयी है। लम्बे और पतले चित्र यूं आ रहे हैं मानो पैनोरॉमा मोड का प्रयोग हो रहा हो। चित्रों की सफाई भी उतनी सही नहीं है। मैंने उन्हें सलाह दी कि नये मोबाइल को जेब में रख कर पुराने वाले से ही चित्र खींचें और भेजें। पर वे नये वाले की सेटिंग से ही जूझ रहे हैं।

फेरी लोगों और उनके सामान से गंजी हुई है। गंगा पार करने वाले बहुत लोग होते हैं वहां। एक नया गंगा पुल भी बन रहा है। तीन साल हो गये पर अभी तैयार नहीं हुआ है। फेरी उसके आसपास से ही गुजरती है। दर्जनों चित्र उन्होने उस अधबने पुल के दिये हैं।
गंगा पार करने पर मिलता है सरपत की झाड़ी का इलाका। उसके बाद खेत। “भईया, ज्यादा तर यहां मक्का ही खेती हो रहा है। साठ फीसदी तो मक्का ही है। केले के गाछ भी दीख रहे हैं। दूर थे, इसलिये उनके फोटो नहीं ले पाया। चालीस फीसदी केले की खेती है। गेंहू तो खाने भर का उगाते हैं लोग। गंगा के किनारे भी कोई सब्जी – खीरा, खरबूजा, ककड़ी नहीं दिखा। लोगों ने बताया कि कोसी के किनारे सब्जी और फल उगाते हैं लोग। उसकी सिंचाई कोसी के पानी से करते हैं।”


गंगा पार करने पर मिलता है सरपत की झाड़ी का इलाका। उसके बाद खेत।
“बेपारी (व्यापारी) किसान से कैश क्रॉप सीधे खरीद ले जाते हैं। किसान को सीधा नगद मिलता है। व्यापारी केले के गाछ दूर दूर तक भेजते हैं। वैसे बर्बंकी (?) फल की मण्डी है पूर्णिया में। व्यापारी से लोग खुश हैं। मौके पर बिना सूद के कर्जा भी दे देता है।” – प्रेमसागर ने मुझे जानकारी दी। किसान खुद नहीं ले जा रहा मण्डी। आढ़तिया ले जाता है और वह नगद पेमेण्ट की सुविधा देता है। मुझे यह कुछ जमता नहीं। अगर आढ़तिया नामक जीव बीच में है तो किसान जरूर ठगा जा रहा है। बिना सूद का कर्जा मूलत: कंटिया है। आढ़तिया अगर इतना सहायक है तो गरीबी क्यों है?
गंगा थोड़ी सर्पिल सी बहती हैं। कोसी उनसे मोटामोटी 25 किमी दूर उत्तर में है। करीब चालीस किलोमीटर बाद दोनो नदियाँ मुरादपुर में मिलती हैं। इसी दियारे में प्रेमसागर को नवगछिया तक चलना है। नवगछिया से भारत के हर तरफ को सड़क जाती है। रेलवे स्टेशन भी है तो रेल भी हर ओर के लिये उपलब्ध है। यातायात के हिसाब से नवगछिया एक महत्वपूर्ण नोड है।
शाम तीन-चार बजे तक प्रेमसागर नवगछिया पंहुच गये। वहां से बस पकड़ कर अमरदीप जी के घर रात में ही पंहुचे। बस-पैदल-बस वाली दिनचर्या वे शायद अमरदीप पांड़े के घर से पूर्णिया तक या उससे पचीस तीस किलोमीटर आगे तक करेंगे। तब किसनगंज एक दिन की पदयात्रा का ही रास्ता बचेगा। उनके बाबाधाम के मित्र लोग किसनगंज तक तो सुविधायें दे ही देंगे उन्हें। सोमारी बाबा का प्रताप बहुत है इस इलाके में!
दिन की यात्रा के बारे में प्रेमसागर ने और जानकारी दी – “भईया, लोगों से पूछा तो बताये कि गंगा में डॉल्फिन बहुत हैं। केवट के जाल में फंसती भी हैं तो उन्हे निकाल कर वे फिर गंगा में डाल देते हैं। वो कहते हैं कि सोंईस खाने में बहुत स्वाद भी नहीं देती। यहां डॉल्फिन पार्क भी हैं।”
प्रेमसागर की शक्तिपीठ पदयात्रा प्रकाशित पोस्टों की सूची और लिंक के लिये पेज – शक्तिपीठ पदयात्रा देखें। ***** प्रेमसागर के लिये यात्रा सहयोग करने हेतु उनका यूपीआई एड्रेस – prem12shiv@sbi |
दिन – 83 कुल किलोमीटर – 2760 मैहर। प्रयागराज। विंध्याचल। वाराणसी। देवघर। नंदिकेश्वरी शक्तिपीठ। दक्षिणेश्वर-कोलकाता। विभाषा (तामलुक)। सुल्तानगंज। नवगछिया। अमरदीप जी के घर। पूर्णिया। अलीगंज। भगबती। फुलबारी। जलपाईगुड़ी। कोकराझार। जोगीघोपा। गुवाहाटी। भगबती। दूसरा चरण – सहारनपुर से यमुना नगर। बापा। कुरुक्षेत्र। जालंधर। होशियारपुर। चिंतपूर्णी। ज्वाला जी। बज्रेश्वरी देवी, कांगड़ा। तीसरा चरण – वृन्दावन। डीग। बृजनगर। सरिस्का के किनारे। |
“आज तो दिन भर चाय नहीं मिली भईया। गंगा किनारे चलते हुये सड़क नहीं थी। पगडण्डी पर चाय की दुकान कहां होती। सताईस किलोमीटर गंगा किनारे चला, तब सड़क मिली।”
“भईया, यहां लोग मूरख नहीं, बुद्धिमान लगे। एक सज्जन बताये कि बाढ़ में ज्यादा झेलना पड़ता है उसमें गलती लोगों की ही है। पहले लोग अपने घर गांवों में जमीन देख कर बनाते थे। अब सब कोई सड़क किनारे बसना चाहता है। उसके लिये नीची जमीन पर भी घर बना रहा है। तब तो बाढ़ में मुश्किल होगी ही।”
“एक बात बहुत खराब लगी भईया। लोग मकई का बाल सड़क पर फैला देते हैं सूखने के लिये। उससे गाड़ी फिसलता है। चलने में भी दिक्कत होती है। … भईया लोग कमजोर नहीं, स्वस्थ दिखते हैं। घर भी खपड़ा के कम ही हैं। पक्के बन रहे हैं। लोग किसानी में बंटाई पर या सूदभरना पर करते हैं और काम नहीं मिला तो बाहर निकल जाते हैं। पर परेशानी में फांसी नहीं लगाते। एक भाई ने कहा कि मानुख जनम बड़ी मुश्किल से मिला है। फांसी लगाने, आत्महत्या के लिये थोड़े ही है।”
“आस्था है भईया लोगों में। गाय-भैंस ब्याने पर दूध ठीक हो जाता है तो पहला दूध गंगा माई को चढ़ाने ले जाते हैं। कुछ लोग तो बाबाधाम जा कर बैजनाथ जी को चढ़ाते हैं। गंगा माई की और बैजनाथ धाम की बड़ी मानता है। लोग उन्ही से मनौती मानते हैं। उन्हीं की किरपा मानते हैं।”
“कोसी को भी कोसने वाले कम ही हैं। एक सज्जन बोले – उसी के जल से तो साल के दस महीना खेती होती है। दुधारू गाय हो तो उसका दोगो लात बरदास्त करना ही होता है। कोसी दुधारू गाय है।”
“बहुत से लोग मेरे साथ बाबाधाम जाना चाहते हैं भईया। कहते हैं कि साथ रहेंगे तो पण्डाजी अच्छे से दर्शन करने देंगे और जल चढ़ाने देंगे। वैसे तो वे जल्दी जल्दी आगे बढ़ा देते हैं।”

कल मैंने यात्रा में पूछने के लिये प्रश्नों की कुंजी दी थी। बहुत सही फीडबैक दिये सोमारी बाबा ने! बहुत अच्छा लगा। प्रेमसागर यात्रा, पदयात्रा और घुमक्कड़ी के नये अर्थ समझ रहे हैं और उसमें पारंगत भी हो रहे हैं। काश मैं उनके साथ यात्रा कर रहा होता!
हर हर महादेव। ॐ मात्रे नम:।