नवगछिया के आगे मिले गरुड़ जी

11-12 अप्रेल 2023

प्रेमसागर ने चित्र लिये हैं, पर कई बातें कुरेदी नहीं। मैं उन्हें दोष नहीं दे सकता। अगर जानना था तो मुझे अपना पिट्ठू उठा कर साथ यात्रा करनी चाहिये थी।

गंगा और कोसी के बीच का दियारा मुझे कीचड़ की याद दिलाता है। कीचड़ जिसमें कमल खिलता है। कीचड़ की बात, कोसी के अभिशाप की बात, गरीबी की बात तो सभी कर लेते हैं। खूब पढ़ने को भी मिलता है और यूट्यूब वे वीडियो में भी। पर वही असलियत है?

ऋणजल धनजल की “श्रद्धांजलि” में निर्मल वर्मा फणीश्वरनाथ रेणु जी के बारे में कहते हैं – वह व्यक्ति है जो दलदल को कमल से अलग नहीं करता। दोनो के बीच रहस्यमय और अनिवार्य रिश्ते को पहचानता है…

मैं निर्मल वर्मा और रेणु जी के स्तर पर नहीं हूं। मैं तो अपने आसपास भी कभी दलदल देखता हूं। उसमें विद्रुप सटायर भिड़ाता हूं। कभी कमल देखता हूं और गांव की गंध से मोहित होता हूं। दोनो के बीच तालमेल कभी नहीं बना पाता। मैं सोचता हूं कि राह चलते प्रेमसागर कुछ महसूस करते होंगे वैसा। पर प्रेमसागर आजकल “बाबा” बनने की फेज में आ चुके हैं। वे अपनी पदयात्रा पटक कर, अमरदीप जी के गांव वालों को साथ ले सुल्तानगंज से बैजनाथधाम के दर्शन को निकल लिये हैं। तीन दिन के लिये यात्रा होल्ड पर है। क्या पता डी-रेल ही न हो जाये।

कोसी नवगछिया के पास रिंग सा बनाती हैं. वह नैसर्गिक है या मैन मेड?

नवगछिया में कोसी का जल एक रिंग सा बनाता है नक्शे में। प्रेमसागर से पूछने पर संतोषजनक उत्तर नहीं मिलता। सहायता करते हैं ट्विटर पर पुनीत जी। अपने बारे में लिखते हैं – मैं भागलपुर जिले से हूँ। ऐतिहासिक अंग महाजनपद! अपने बारे में ज्यादा जानकारी नहीं शेयर करते पुनीत पर इलाके की अच्छी पकड़ है उनकी। नवगछिया के पास रिंग से बने जल के बारे में उन्होने बताया – ये रिंग डैम के चलते बना जलाशय है। कोशी जलाशय बोलते है इसको। इससे बाढ़ में कमी आई है लेकिन कटाव बढ़ गया है! इंजीनियरो की चांदी है!

कोसी पर बने बन्धा की कहानी भी है। बाबू राजेंद्र प्रसाद ने पहली तगारी मिट्टी फैंकी थी इसके निर्माण में। पर बान्ध से कोसी रुकी नहीं। वह इतना मिट्टी ले कर आती थी बाढ़ के महीनों में नेपाल से कि बांध के बीच गाद से लेवल ऊपर हो गया। गाद भरने से पानी बांध से ओवरफ्लो कर बड़े इलाके को जलमग्न करने लगा। उससे जुड़ी भ्रष्टाचार की कहानियां। यह भी थ्योरी बनी कि बांध में चूहों ने बिल बनाये थे।

प्रेमसागर की शक्तिपीठ पदयात्रा
प्रकाशित पोस्टों की सूची और लिंक के लिये पेज – शक्तिपीठ पदयात्रा देखें।
*****
प्रेमसागर के लिये यात्रा सहयोग करने हेतु उनका यूपीआई एड्रेस – prem12shiv@sbi
दिन – 103
कुल किलोमीटर – 3121
मैहर। प्रयागराज। विंध्याचल। वाराणसी। देवघर। नंदिकेश्वरी शक्तिपीठ। दक्षिणेश्वर-कोलकाता। विभाषा (तामलुक)। सुल्तानगंज। नवगछिया। अमरदीप जी के घर। पूर्णिया। अलीगंज। भगबती। फुलबारी। जलपाईगुड़ी। कोकराझार। जोगीघोपा। गुवाहाटी। भगबती। दूसरा चरण – सहारनपुर से यमुना नगर। बापा। कुरुक्षेत्र। जालंधर। होशियारपुर। चिंतपूर्णी। ज्वाला जी। बज्रेश्वरी देवी, कांगड़ा। तीसरा चरण – वृन्दावन। डीग। बृजनगर। विराट नगर के आगे। श्री अम्बिका शक्तिपीठ। भामोद। यात्रा विराम। मामटोरीखुर्द। चोमू। फुलेरा। साम्भर किनारे। पुष्कर। प्रयाग। लोहगरा। छिवलहा। राम कोल।
शक्तिपीठ पदयात्रा

बिहार में जितना दलदल कोसी और गंगा से है, उससे कम करप्शन से नहीं है। कमल फिर भी खिलते हैं वहां!

और कमल की कथा मिली गरुड़ के आख्यान में। प्रेमसागर ने कड़वा दियारा से गुजरते हुये एक फोटो खींची समुदाय द्वारा गरुड़ पक्षी (ग्रेटर एडज्यूटेण्ट स्टॉर्क – Greater Adjutant Stork) के संरक्षण स्थान की।

इस चित्र के अलावा अधिक जानकारी प्रेमसागर के पास नहीं थी। पूछने पर बोले – “भईया, देवघर से आते समय एक बार वहां रुक कर पता करूंगा।”

पर इसके बारे में पुनीत जी ने बताया –

गरुड़ अभ्यारण्य कदवा एवं खैरपुर पंचायत में आता है। अभी यहाँ लगभग 700 गरुड़ हैं। वैसे ये पक्षी Greater Adjutant Storks है। इसे गरुड़ का नाम भागलपुर के मन्दार नेचर क्लब के अरविंद मिश्रा जी ने दिया था। इस नाम का उद्देश्य इसे लोक जन के मानस से जोड़ना था !

ये पूरा इलाका कोशी और गंगा के बीच का है। तो थोड़ा सुनसान और हराभरा है। इसलिये काफी सारे पक्षी यहां शरण लेते हैं। गरुड़ महाराज मेरे ख्याल से यहाँ काफी सालो से हैं। बात ये है कि 2005 के पहले इस इलाके में लोग दिन में भी जाने से डरते थे! रोड की तो बात ही छोड़ दीजिए यहाँ गुंडे और पुलिस घोड़ो और नाव से ही गश्त लगाते हैं!

सन 2005 में जंगलराज खत्म होने के बाद थोड़ा माहौल बदला। तब जा कर इस पक्षी की मौजूदगी की भनक लगी ! 2006 में मन्दार नेचर क्लब ने इस पर रिपोर्ट भेजी। थोड़ा सरकार भी एक्शन में आईं। लोगो को जागरूक और भावुक करने के लिए इसे गरुड़ महाराज का नाम दिया।

लोग आने लगे तो आमदनी भी बढ़ी स्थानीय लोगो की। गरुड़ मित्र बनाया गया लोगो को। पक्षियों की आबादी भी सुरक्षा, और खाने रहने की बहुलता के कारण बढ़ने लगी।

अभी एक अच्छा खासा इकोसिस्टम बन चुका है। सरकार थोड़ा और ध्यान दे तो ये पूरा इलाका इको-टूरिज्म का गढ़ बन सकता है। बगल में ही भारत का इकलौता विक्रमशिला गांगेय डॉल्फिन अभ्यारण्य है !

कदवा दियारा के गरुड़ (बांये) और राजा रवि वर्मा के चित्र में गरुड़ (दांये) – दोनो अलग अलग दीखते हैं। दोनो चित्र विकिपेडिया से।

मैंने पुनीत जी का लिखा ऊपर जस का तस रख दिया है। उससे बेहतर मैं लिख नहीं सकता था। डॉल्फिन पार्क की बात प्रेमसागर जी ने भी की थी। पर पुनीत जी से पता चला कि वह विक्रमशिला डॉल्फिन अभयारण्य है। मैं अपेक्षा नहीं करता कि प्रेमसागर वह अभयारण्य देखने जायेंगे। वैसे ही वे इधर उधर घूम कर पांच सात दिन गुजार चुके हैं। अब तक उन्हें यात्रा करते हुये जलपाईगुड़ी पार कर लेना था। जलपाईगुड़ी तक उनके पदयात्रा झोली में दो और शक्तिपीठ जुड़ चुके होते।

ज्योतिर्लिंग कांवर यात्रा के दौरान उनकी बाबा बनने वाली वृत्ति के कारण उनका साथ छूट गया था। यहां भी कुछ वैसा ही हो रहा है। देखें, उनसे साथ निभ पाता है या नहीं। समस्या यह है कि उनकी पदयात्रा और मेरी डियाकी (डिजिटल यात्रा कथानक लेखन) के ध्येय पूरी तरह समरस नहीं हैं। उनका इस बीच दो दिन तक अमरदीप जी के यहां रुकना और ऑफशूट ले कर बैजनाथधाम निकलना कुछ वैसा ही है जैसा कोसी के किनारे नवगछिया की ओर बना पानी का छल्ला।

नवगछिया और अमरदीप जी के घर के बीच की पदयात्रा में प्रेमसागर ने और कुछ विवरण दिये थे। उनके चित्र अच्छे नहीं आ पाये। नये मोबाइल का सही प्रयोग वे नहीं कर पाये।

एक जगह कुछ लोगों ने उन्हें जबरी 101 रुपये दिये। न मांगने पर भी उनके बैग में डाल दिये और साथ में यह भी सुनाया कि “आपको इसलिये दे रहे हैं कि आप कुछ मांग नहीं रहे। वर्ना भीख मांगने वालों को हम कुछ नहीं देते।” … दम्भी लोग! दिये भी तो अहसान जताते हुये। प्रेमसागर ने उन्हें कहा भी – “भईया आप लोग यह शंकर भगवान जी के मंदिर में चढ़ा देते तो ठीक रहता।”

दान में भी; दान देने वाले के मन में कृतार्थ होने का भाव होता है कि सामने वाले सज्जन ने उसे स्वीकार कर कृपा की। अब वह भाव समाज में जाता रहा है। आदिशंकर आज के युग में दिन में मात्र तीन घर जा कर “भिक्षाम देहि” कहें और न मिलने पर आगे बढ़ जायें तो जाने कितने दिन उन्हें भूखा सोना पड़े।

शक्ति पीठ पदयात्रा होल्ड पर रख कर प्रेम सागर तीन कांवर ले कर चलने वालों के साथ बैजनाथ धाम को.

अब देखें कब वापस आते हैं प्रेमसागर! हाई कोर्ट (बैजनाथ धाम) से वापस आते हैं या सुप्रीम कोर्ट (बासुकीनाथ धाम) की ओर निकल लेते हैं। :-)

ॐ मात्रे नम:। हर हर महादेव!


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

आपकी टिप्पणी के लिये खांचा:

Discover more from मानसिक हलचल

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading

Design a site like this with WordPress.com
Get started