जीवन पाल जी का चाय बागान

21 अप्रेल 2023

प्रेमसागर को दोपहर के आराम के लिये रुकना था जीवन पाल जी के यहां। पर वहां चाय का बागान उन्हें इतना मोहित कर लिया कि आज वहीं रुक गये। आम भारतीय चाय के बागान की तस्वीरें केवल पेपर या इण्टरनेट पर ही देखता है – टोकरी लादे चाय की पत्तियां चुनती महिलाओं की। पर यहां तो बागान का विस्तार सामने था! दिन भर रुक जाना बनता है! वैसे आगे और भी चाय के बागान मिलेंगे देखने को। पर शायद जीवन पाल जी के जैसा आतिथ्य न मिले!

प्रेमसागर और जीवन पाल। जीवन पाल जी के पास चाय और अन्नानास की खेती है।

सवेरे भोर में ही निकले थे प्रेमसागर अलीगंज से। सवेरे सवेरे जुतिका कुण्डू जी ने भोर में उठ कर स्नान किया और प्रेमसागर को चाय पिला कर विदा किया। बाबा या साधू के प्रति जो श्रद्धा होनी चाहिये वह जुतिका जी के चित्र में उनके भाव से नजर आती है। उनको चाय पिलाने के लिये नहा धो कर शुद्ध हो कर ही रसोई में प्रवेश किया था जुतिका जी ने।

प्रेमसागर और जुतिका कुण्डू

प्रेमसागर मेरे लिये भले ही छोटे भाई जैसे हों और उनपर भले ही मैं खीझता-कटाक्ष करता रहूं, हिंदू समाज में अपनी पदयात्रा की बदौलत वे बड़े साधक जैसे हैं। यह तो महादेव की लीला है कि प्रेम बाबा को मुझ जैसे छिद्रांवेषक के साथ उन्होने टैग कर दिया है। और बेचारे प्रेमसागर की सिद्धि का पांच सात परसेण्ट महादेव मुझे भी दे दे रहे होंगे! ऐसा मेरा सोचना है।

अलीगंज से चल कर साढ़े इग्यारह बजे तक प्रेमसागर 24 किमी चले होंगे जीवन पाल जी के बागान तक पंहुचने में। उत्तर दिनाजपुर जिले में भगबती (भग्वती) जगह नजर आती है नक्शे में। भगबती का कालागाछ इलाका। जीवन पाल जी को बैजनाथ धाम के उनके मित्र मनोज यादव जी के माध्यम से खबर हुई थी।

जीवन जी ने काफी खातिरदारी की प्रेमसागर की। अपने पैत्रिक घर में ले जा कर भोजन कराया। उनको अपना बागान दिखाया और उनके रहने का इंतजाम सड़क के समीप अपने गेस्ट हाउस में किया। प्रेमसागर ने बताया कि गेस्ट हाउस में पंद्रह कमरे हैं। दो कमरे जीवन जी ने अपने अतिथियों के लिये रखे हैं और शेष भाड़े पर उठा रखे हैं। जीवन पाल जी का फोन नम्बर भी उन्होने मुझे दिया – अगर मुझे चाय की किसानी और व्यवसाय के बारे में कोई जानकारी चाहिये होगी, तो मैं जीवन पाल जी से बात कर सकूंगा।

चाय के खेत के दृश्य

जो चित्र प्रेमसागर ने भेजे हैं, उससे तो वह चाय का विस्तृत खेत मुझे ड्रीम-लैण्ड सा लगता है। कोई आश्चर्य नहीं कि उससे प्रेमसागर मोहित हो गये हों। खेत के ऊपर कमर की ऊंचाई तक एक हरी कारपेट सी नजर आती है चाय के पौधों की। उनकी सिंचाई के लिये स्प्रिंकलर्स लगे हुये हैं। बीच बीच में जाने के लिये पगडण्डी-रास्ता है और किसान या पत्तियां चुनने वाले तो पौधों के बीच से जाते होंगे।

चाय की खेती जितना आर्थिक लाभ देती है, उसी के अनुपात में बागान की देखरेख भी खूब अच्छे से की जाती होगी!

प्रेमसागर खेत के बीच भी हिल कर चाय की पत्तियों को परखे और उनकी गंध से परिचित हुये। “भईया मैं आपके लिये यहां से एक किलो चाय ले कर आऊंगा। एक किलो तैयार की हुई फेक्टरी से निकली चाय और कुछ चुनी हुई चाय की पत्तियां भी। उन चुनी पत्तियों को सुखाना पड़ेगा। कामाख्या से लौटानी में यहां होते हुये आना है। इस जगह के बारे में जान कर मेरे पिताजी ने भी चाय की इच्छा जताई है।” चाय की पत्तियों को ले कर बहुत रोमांच झलकता है प्रेमसागर के कहने में – “आप भईया तो शौकीन हैं चाय के। आप मार्केट की और इस चाय में फर्क देखियेगा। यहां की फेक्टरी की चाय में और सीधे पत्तियों वाली चाय में भी। और चाय तो किसिम किसिम की है। सौ रुपये किलो से ले कर आठ सौ रुपये किलो तक की!”

चाय के खेत से निकलते प्रेमसागर

चाय के बारे में कुछ फुटकर जानकारी प्रेमसागर ने दी –

“एक चाय का पौधा, मुझे बताये, कि पचास साल तक पत्तियां देता है। पर तीस साल के बाद उसकी पैदावार में कमी आने लगती है।”

“यहां पास में ही चाय की फैक्टरी हैं। मुझे बताया गया कि दो तरह की फैक्टरियां हैं। एक तो चाय के खेतों के बीच में होती हैं और दूसरी में चाय पत्ती बाहर से आती है और उसकी प्रॉसेसिंग फेक्टरी में की जाती है।”


आज चलने का जो डाटा प्रेमसागर से भेजा उसके अनुसार वे आधे दिन ही चले। उसमें भी 25.94 किमी चलना हुआ और कुल 33,488 कदम।

डग नदी

रास्ते में एक नदी का चित्र भेजा। वह नक्शे में तो मुझे दिखाई नहीं पड़ती पर ठीक ठाक नदी है। काफी पानी है उसमें। प्रेमसागर ने नदी का नाम बताया – डग।

कल सवेरे जल्दी निकलना है प्रेमसागर को। उन्हें करीब चालीस किमी चलना है फुलबारी के माँ भ्रामरी शक्तिपीठ दर्शन के लिये। यह शक्तिपीठ महानंदा के किनारे दीखता है नक्शे में। कोई चम्पा बाबू हैं सिलीगुड़ी के; उन्होने बताया है कि शक्तिपीठ के पास ही रात्रि विश्राम का इंतजाम हो जायेगा।


जीवन पाल जी के सानिध्य और चाय के बागान को देखने से आज का दिन चिरस्मरणीय बन गया प्रेमसागर के लिये। आगे और भी चाय के बागान दिखेंगे उत्तर बंगाल और असम में। पर जीवन पाल जी जैसा मेजबान शायद ही मिले कोई!

हर हर महादेव! ॐ मात्रे नम:!

प्रेमसागर की शक्तिपीठ पदयात्रा
प्रकाशित पोस्टों की सूची और लिंक के लिये पेज – शक्तिपीठ पदयात्रा देखें।
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प्रेमसागर के लिये यात्रा सहयोग करने हेतु उनका यूपीआई एड्रेस – prem12shiv@sbi
दिन – 103
कुल किलोमीटर – 3121
मैहर। प्रयागराज। विंध्याचल। वाराणसी। देवघर। नंदिकेश्वरी शक्तिपीठ। दक्षिणेश्वर-कोलकाता। विभाषा (तामलुक)। सुल्तानगंज। नवगछिया। अमरदीप जी के घर। पूर्णिया। अलीगंज। भगबती। फुलबारी। जलपाईगुड़ी। कोकराझार। जोगीघोपा। गुवाहाटी। भगबती। दूसरा चरण – सहारनपुर से यमुना नगर। बापा। कुरुक्षेत्र। जालंधर। होशियारपुर। चिंतपूर्णी। ज्वाला जी। बज्रेश्वरी देवी, कांगड़ा। तीसरा चरण – वृन्दावन। डीग। बृजनगर। विराट नगर के आगे। श्री अम्बिका शक्तिपीठ। भामोद। यात्रा विराम। मामटोरीखुर्द। चोमू। फुलेरा। साम्भर किनारे। पुष्कर। प्रयाग। लोहगरा। छिवलहा। राम कोल।
शक्तिपीठ पदयात्रा

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

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