20 अप्रेल 2023
आज दिन भर चलने का गूगल फिट का जो स्क्रीनशॉट भेजा है प्रेमसागर ने, उसके अनुसार दिन भर में 58,881 कदम चले हैं। पैदल 43.22 किलोमीटर की दूरी तय की है। यह तब है, जब मौसम उत्तरोत्तर गर्म होता जा रहा है। गर्मी ज्यादा होने के कारण उनकी चलने की स्ट्रेटेजी बदली है। सवेरे जितना दूरी बनता है, नाप लेते हैं। उसके बाद दिन में कहीं विश्राम करते हैं। दो घण्टा नींद भी निकाल लेते हैं। उसके बाद नहा कर तरोताजा हो एक कप चाय ले कर शाम की पदयात्रा शिफ्ट में निकल लेते हैं। “कल से भईया थोड़ा और जल्दी निकल लूंगा। काहे कि सवेरे जितना चला जाये, वही ठीक है।” – उन्होने कहा।
अभी रात के पड़ाव पर पंहुचने में रात के आठ नौ बज जा रहे हैं।
सवेरे जहां से चले; वह जगह – कंकी – बंगाल में है। और रात में जहां पंहुचे – अलीगंज – वह भी बंगाल में है। दिन में बंगाल से बिहार और फिर बिहार से बंगाल में आना-जाना रहा। यह इलाका सीमांत बिहार और उत्तर बंगाल का है। लोग हिंदी भी समझ लेते हैं और बंगला भी बोलते हैं। सम्प्रेषण की कोई समस्या नहीं प्रेमसागर को ग्रामीण अंचल में भी; जो उन्हें बर्दवान, हुगली, हावड़ा और मिदनापुर में आयी थी और जिसके कारण उन्हें रात में रुकने का स्थान भी नहीं मिला करता था। उस बंगाल से इस बंगाल में बहुत अंतर है। इस्लामिक कट्टरता के दर्शन नहीं हुये। उसके उलट हिंदू और मुसलमान अलग अलग टोले में नहीं, एक साथ रहते हैं।
“खेती में भईया मक्का ज्यादा दिख रहा है।” – यह प्रेमसागर का कहना ज्यादातर होता है। इक्का दुक्का इण्डस्ट्री भी हैं। पर ज्यादा नहीं।

दिन में आराम करने के लिये एक कैबिन मैन (?) जी का आवास मिला। उनका नाम बताया है – सर्वेश सरन। कौन सा स्टेशन या केबिन था, वह प्रेमसागर ने नोट नहीं किया। उनके भेजे चित्र भी मैंने ध्यान से देखे पर उनमें स्टेशन का नाम नहीं दिखता।
कटिहार मण्डल के इसी क्षेत्र में गैसल स्टेशन पड़ता है, जिसके बारे में मैंने बहुत सुना, पढ़ा है। वहां अगस्त 1999 में भीषण ट्रेन हादसा हुआ था। सिगनल की खराबी और फिर यातायात स्टाफ की चूकों के कारण एक ही ट्रैक पर दो फुल स्पीड की सवारी गाड़ियां टकराई थीं। तीन सौ लोग मरे थे। हम लोगों ने उस दुर्घटना की कमिश्नर रेलवे सेफ्टी की इंक्वाइरी को गहरे से फॉलो किया था। पूरे देश भर में रेलवे संस्थानों में उसपर चर्चा, सेफ्टी ड्राइव, सेमिनार आदि हुये थे।
अभी के भेजे चित्रों को देखने से वहां कैबिन पर पैनल इण्टरलॉकिंग व्यवस्था दीखती है। पूर्व सीमांत रेलवे के इस खण्ड पर सिगनलिंग में सुधार है। गैसल एक्सीडेण्ट के जमाने की चूक होने की सम्भावना खत्म हो गयी है।
वैसे ह्वट्सएप्प मैसेज में प्रेमसागर ने दोपहर विश्राम का स्थान पंजीपारा लिखा है। सड़क के पास रेल लाइन ट्रेस करने पर पंजीपारा रेलवे स्टेशन दीखता है। हो न हो, वह स्टेशन पंजीपारा ही रहा होगा। गैसल उसके आगे से आगे वाला स्टेशन है।

प्रेमसागर वहां दो तीन घण्टा रुके, सोये और नहा कर निकले। पर इतने में भी वे स्टेशन का नाम नोट नहीं किये। वे अपनी नोटबुक का प्रयोग करते प्रतीत नहीं होते। … मुझे उनपर कोफ्त हुई। पर मैं उनकी प्रकृति बदल नहीं पाया हूं। लोगों और स्थानों के नाम सुनना, समझना और ठीक ठीक हिज्जों के साथ याद रखना या नोट करना वे सीख नहीं सके। फिर भी महादेव की कृपा से भारत भ्रमण कर लिये हैं। यह विलक्षण ही है!
शाम के समय उनका फोन आता है। उन्हें अलीगंज तक पंहुचना है। वहां कोई काली माई की भक्त महिला ने रात में रुकने का इंतजाम किया है। थोड़ा पेशोपेश में लगते हैं महिला के नाम से। कहा – “अब कहां इंतजाम है वह तो जाने पर ही पता चलेगा। घर पर इंतजाम है या मंदिर में। बताये हैं कि उनके घर के बगल में मंदिर भी है।”
रात में पता चलता है कि वे अधेड़ विधवा हैं। उनका परिवार उनके साथ है। तीन पुत्रियां हैं। साल दो साल पहले उनके पति का निधन हुआ है। शिवजी, काली मां और कृष्ण जी की भक्ति में समय गुजारती हैं। नाम है जुतिका कुण्डू। घर पर उन्होने भोजन करने का अनुरोध किया पर “हम देखे भईया कि बंगाली होने के कारन उनके यहां मछली बनता है। मैंने उनसे कहा कि अगर दूध हो तो दे दें। नहीं तो मैं बाजार से ले आऊंगा। पर उन्होने दूध, केला, चिऊड़ा का प्रबंध किया। खाने में वह अच्छा लगा। … आगे तो भईया आसाम में भी हमें बताया कि लोग मछली-मीट खाने वाले हैं। महादेव जैसे इंतजाम करेंगे, चला जायेगा।”
प्रेमसागर और जुतिका कुण्डू रेलवे कैबिन के पास ट्रैक सर्वेश सरन के साथ प्रेमसागर दीपक सरकार किसी स्थान पर नवजात शिशु के साथ।
सवेरे कंकी में दीपक सरकार, दोपहर में रेलवे के सर्वेश सरन और रात में काली भक्त जुतिका कुण्डू! इन सब की सहायता मिल रही है जाने किस विधान से!
महादेव के भरोसे ही तो चल रहे हैं प्रेमसागर। जीजीविषा है, संकल्प है, पर महादेव की सहायता के चमत्कार भी बहुत हैं। फटक गिरधारी, एक सोटा और एक पिट्ठू ले कर यात्रा पर निकल लिये हैं और सब इंतजाम हुये जा रहा है! यह मिरेकल ही तो है!
सवेरे कंकी में दीपक सरकार, दोपहर में रेलवे के सर्वेश सरन और रात में काली भक्त जुतिका कुण्डू! इन सब की सहायता मिल रही है जाने किस विधान से! वह भी ऐसे पदयात्री को जो कंकी को कई बार कनिका बोले; महानंदा को अलकनंदा से कंफ्यूज किये और देर शाम तक सही सही नहीं बता पाये कि उनका पड़ाव जहां होगा वह जगह अलीगंज है! और मजे की बात है कि उनकी जोड़ी मुझ जैसे से बनी है जो हर चीज की डीटेल्स बहुत बारीकी से, चिमटी से छील छील कर जानना चाहता है। न पता चलने पर खीझता है! जो खुद बिना पूरी योजना बनाये घर के बाहर एक कदम नहीं रखता! 😆
राम मिलाये जोड़ी! 🙂
इक्कीस फरवरी को मैहर दर्शन के बारे में पहली पदयात्रा पोस्ट थी प्रेमसागर – मैहर दर्शन के साथ शक्तिपीठों की पदयात्रा प्रारम्भ । उस बात को आज दो महीने हो गये। पैंतालीस ब्लॉग पोस्टें बन गयीं यात्रा पर। … मैं थकान महसूस कर रहा हूं, पर प्रेमसागर उसी ऊर्जा से; घायल होने के बावजूद; रोज 40-50 किमी चल ले रहे हैं। कुल 1709 किमी चले हैं। अर्थात 23 लाख 28 हजार कदम! और, असली बात, अपनी क्षमता से कहीं ज्यादा अच्छा विवरण भी दे रहे हैं। मुझे मौका नहीं दे रहे कि मैं अपने को असंपृक्त कर लूं उनके इस पदयात्रा अभियान से।
हर हर महादेव! ॐ मात्रे नम:!
प्रेमसागर की शक्तिपीठ पदयात्रा प्रकाशित पोस्टों की सूची और लिंक के लिये पेज – शक्तिपीठ पदयात्रा देखें। ***** प्रेमसागर के लिये यात्रा सहयोग करने हेतु उनका यूपीआई एड्रेस – prem12shiv@sbi |
दिन – 83 कुल किलोमीटर – 2760 मैहर। प्रयागराज। विंध्याचल। वाराणसी। देवघर। नंदिकेश्वरी शक्तिपीठ। दक्षिणेश्वर-कोलकाता। विभाषा (तामलुक)। सुल्तानगंज। नवगछिया। अमरदीप जी के घर। पूर्णिया। अलीगंज। भगबती। फुलबारी। जलपाईगुड़ी। कोकराझार। जोगीघोपा। गुवाहाटी। भगबती। दूसरा चरण – सहारनपुर से यमुना नगर। बापा। कुरुक्षेत्र। जालंधर। होशियारपुर। चिंतपूर्णी। ज्वाला जी। बज्रेश्वरी देवी, कांगड़ा। तीसरा चरण – वृन्दावन। डीग। बृजनगर। सरिस्का के किनारे। |