भगबती से फुलबारी – नहर के किनारे किनारे

22 अप्रेल 2023

भगबती से सवेरे पांच बजे निकलना था। पर रात में बरसात हो गयी। देर तक चली। बरसात से जीवन पाल जी प्रसन्न हैं। न होती तो उनको चाय की अपनी खेती को पानी देने के लिये उद्यम करना होता। प्रकृति ने ही पानी पिला दिया बागान को।

सवेरे सवा सात बजे निकले प्रेमसागर। महानंदा पार की करीब नौ बजे। वे महानंदा से निकली नहर के किनारे किनारे की सड़क पर चल रहे हैं।

महानंदा से नहरें निकलती हैं और नीचे, बहाव की दिशा में, महानंदा से ही मिल जाती हैं। महानंदा का पानी इस प्रकार नहरों के जरीये आसपास के ब्लॉकों के ज्यादा बड़े इलाके के खेतों को सींचता है। प्रेमसागर ने जो चित्र भेजे हैं, उनमें से एक के अनुसार वह नहर 1982 में बनी।

गूगल मैप से लिया महानंदा पर नहर वाले पुल का चित्र। यह पुल प्रेमसागर ने पार किया। नदी में पानी खूब है पर पाट ज्यादा चौड़ा नहीं लगता।

महानंदा बाढ़ लाने वाली नदी है। नाम में महा उपसर्ग शायद उसी कारण से हो। उस नदी के ज्यादा पानी को बांध कर खेती के काम लाने का अच्छा उपक्रम प्रतीत होता है नहरों का जाल। मैं केंद्रीय जल बोर्ड की उत्तर दिनाजपुर की 157 पेज की पुस्तक/रिपोर्ट को डाउनलोड करता हूं, पर पढ़ने का धैर्य नहीं जुटा पाया। जब तक पढ़ने की सोचूंगा, प्रेमसागर शायद बंगाल की सीमा पार कर असम की ब्रह्मपुत्र घाटी में प्रवेश करने वाले हों। वह रिपोर्ट इस ट्रेवलॉग में तो काम आने से रही। पर इतना जरूर पता चला कि जल प्रबंधन करने वाले काफी गम्भीर कार्य करते हैं।

महानंदा का पानी इस प्रकार नहरों के जरीये आसपास के ब्लॉकों के ज्यादा बड़े इलाके के खेतों को सींचता है। प्रेमसागर ने जो चित्र भेजे हैं, उनमें से एक के अनुसार वह नहर 1982 में बनी।

उत्तर दिनाजपुर का जल प्रबंधन

एक चाय की दुकान पर प्रेमसागर को लोग मिले। बातचीत से लगा कि बिहार के हैं। उन्होने भोजपुरी में बोलना प्रारम्भ किया तो लिंक जुड़ा। वे लोग मोतीहारी के हैं। उत्तर बंगाल और असम के चाय बागानों में बहुत से बिहारी, झारखण्डी और छत्तीसगढ़ी मजदूर काम करते हैं। कई पीढ़ी पहले विस्थापन हुआ उनका। कई परिवार तो अंग्रेजों के जमाने में गिरमिटिया मजदूर की तरह आये और यहीं के हो कर रह गये।

छत्तीस गढ़ के संजीव तिवारी ने एक यात्रा की इस इलाके की और उसपर ब्लॉग तथा पुस्तक लिखी। उनकी पत्नी सुरभि मुझे जानकारी देती हैं।

संजीव तिवारी ने अशोक तिवारी के साथ पुस्तक लिखी है असम वासी छत्तीसगढ़िया

सुरभि जी ने उनके ब्लॉग का भी लिंक दिया।

प्रेमसागर को उन मोतीहारी के मजूरों ने बहुत आत्मीयता से लिया। मैंने प्रेमसागर से कहा है कि आगे भी वे विस्थापित मजदूरों, मारवाड़ियों के बारे में जानने का प्रयास करें। आगे चूंकि लोगों का भोजन मूलत: मत्स्य-मांस आर्धारित है, उनके लिये बेहतर होगा कि कोई मारवाड़ी भोजनालय तलाशें अपनी दैनिक पदयात्रा के दौरान और समाय-कुसमय का ज्यादा विचार न करें; वहां भोजन या थाली मिलती हो तो पेट भरें। अगले आठ दिन, जब उनके पास ज्ञात सपोर्ट सिस्टम नहीं है, अपनी दिनचर्या में बदलाव लाने होंगे।

फुलबारी में उन्हें अपने लिये लॉज तलाशनी पड़ी। “पांच सौ रुपये में रात गुजारने का कमरा मिला भईया। थाली का रेट पूछा तो माथा घूम गया। तीन सौ रुपये की थाली। मैने तो अलग अलग आईटम ले कर डेढ़ सौ में रात का भोजन किया। शाम को मंदिर गया – माँ भ्रामरी देवी मंदिर – तो वह बंद हो चुका था। महानंदा किनारे इस मंदिर की व्यवस्था कोई मारवाड़ी करते हैं। वे जा चुके थे। मैंने बाहर से ही माई को प्रणाम किया। अब दर्शन तो कल ही होंगे श्री त्रिस्त्रोता माई के।”

प्रेमसागर की शक्तिपीठ पदयात्रा
प्रकाशित पोस्टों की सूची और लिंक के लिये पेज – शक्तिपीठ पदयात्रा देखें।
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प्रेमसागर के लिये यात्रा सहयोग करने हेतु उनका यूपीआई एड्रेस – prem12shiv@sbi
दिन – 83
कुल किलोमीटर – 2760
मैहर। प्रयागराज। विंध्याचल। वाराणसी। देवघर। नंदिकेश्वरी शक्तिपीठ। दक्षिणेश्वर-कोलकाता। विभाषा (तामलुक)। सुल्तानगंज। नवगछिया। अमरदीप जी के घर। पूर्णिया। अलीगंज। भगबती। फुलबारी। जलपाईगुड़ी। कोकराझार। जोगीघोपा। गुवाहाटी। भगबती। दूसरा चरण – सहारनपुर से यमुना नगर। बापा। कुरुक्षेत्र। जालंधर। होशियारपुर। चिंतपूर्णी। ज्वाला जी। बज्रेश्वरी देवी, कांगड़ा। तीसरा चरण – वृन्दावन। डीग। बृजनगर। सरिस्का के किनारे।
शक्तिपीठ पदयात्रा

रात में भोजन कर प्रेमसागर जल्दी सो गये। उसके बाद फोन आये पर नींद नहीं खुली। वे खुद कहते हैं – भईया, एक बार नींद आ जाये तो कोई चार लाठी मारे, तब भी नींद नहीं खुलती।

फुलबारी महानंदा के पूर्वी किनारे पर है और श्री त्रिस्त्रोता माँ शक्तिपीठ तीस्ता नदी के पश्चिमी किनारे पर। नक्शे में दूरी पच्चीस किमी की है। कल वे वहां दर्शन करेंगे और कामाख्या-कामरूप के लिये निकल पड़ेंगे।

हर हर महादेव! ॐ मात्रे नम:!

अपने एप्प के अनुसार प्रेमसागर 41 किमी चले और 53669 कदम रहे!

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Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

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