फालाकाटा से बारोबीशा

25 अप्रेल 2023

“टीना की छत के मकान बहुत हैं भईया। इन मकानों में बारिश का पानी रुकता नहीं होगा। ऐसे मकान मैंने उत्तराखण्ड में पाये थे। वहां, जमुनोत्री में देखा था एक मकान जिसे लोग बता रहे थे कि योगी आदित्यनाथ की बहन का है। बहुत छोटा और साधारण सा मकान था भईया। और वो महिला दिखी भी थीं, जमुनोत्री में एक छोटी सी दुकान में फूल बेच रही थीं। कोई गांव का प्रधान भी होता है तो उसके सम्बंधी इतराते हैं। उन्हें देख कर नहीं लगता था कि मुख्य मंत्री की सम्बंधी हैं। यही हाल प्रधानमंत्री का भी बताते हैं। शायद यही कारण है कि ये बड़े नेता हैं देश के।” – प्रेमसागर की स्मृतियां उभर आयी थीं टीन की छतों के मकान देख कर।

फालाकाटा से निकलते समय प्रेमसागर जोश में थे। उन्होने शाकाहारी भोजन मिलने में हो रही दिक्कत की बात जरूर की थी। कल रात में उन्हें आम और अंगूर पर गुजारा करना पड़ा। इसलिये नक्शे में मैंने सड़क किनारे के लाइन होटल (या ढाबा) तलाशे। मैंने उन्हें बताया कि उत्तर पाराकोटा के आस पास दो लाइन होटल हैं – राजस्थानी होटल और बाबा रामदेव होटल। राजस्थानी होटल में चित्र में तंदूरी रोटी और गाढ़ी दाल दिख रही है। साथ में अचार और चटनी भी। उसमें सोने के लिये ट्रक वालों के लिये तख्ते भी बिछे हैं। बाबा रामदेव होटल में बाटी नजर आ रही है और चोखा भी। वहां भी सोने के लिये डॉर्मेट्री में तख्ते बिछे दिखते हैं और नहाने आदि की भी व्यवस्था है। ये दोनो स्थान फालाकाटा से पचास पचपन किमी दूर हैं। उनमें ही रुकने की वे सोचें।

प्रेमसागर को मैंने उनकी लोकेशन भी भेज दी।

लेकिन होना कुछ और था। उन्होने शाम को बताया कि फलाने जी के लड़के का फोन आया था। उन्होने अपने सम्बंधी को कहा है उनके रात्रि विश्राम के लिये। बारोबीशा में उनका घर है। रात में उनकी लोकेशन भी बारोबीशा की थी गूगल मैप पर। पर उन्होने बताया – “भईया, जिस तरह बारोबीशा से उन्होने बात किया, मुझे लगा कि वहां रुकना ठीक नहीं है। वे बोल रहे थे कि ‘फलाने जी ने कहा है तो हम इंतजाम कर दे रहे हैं, वर्ना साधू-बाबा लोगों पर हमारा यकीन नहीं है’। मैंने भी कह दिया कि मेरी हिम्मत जवाब दे रही है आज इतना चलते हुये। उनके घर तक नहीं आ सकूंगा।”

देर हो गयी थी, अंधेरा हो गया था। थकान भी बहुत थी। अंतत: बस पकड़ कर 8-10 किमी आगे चल कर बारोबीशा में ही एक होटल में रुके प्रेमसागर। किराया ज्यादा था, पर होटल वाले सात सौ में मान गये। रोटी दही खा कर काम चलाया। “भईया रोटी भी आटे कि नहीं मिल रही। मैदा की होती है जिसे पचाने में शरीर को दिक्कत होती है। अब मैं सोच रहा हूं कि आगे यात्रा में मैदे की रोटी की बजाय चावल ही खाया करूंगा।

“दिन में थकान बहुत ज्यादा लगी भईया। मौसम तो ठीक था पर रास्ता बहुत खराब था। चलने में दिक्कत हो रही थी। चप्पल न होती तो चलना और भी मुश्किल होता। वैसे चप्पल भी अपना जिंदगी पूरा कर चुकी ही है। वह भी सोचती होगी कि किस आदमी के पल्ले पड़ गयी उसकी जिंदगी!”

चित्र देख समझ आता है कि रास्ता वास्तव में खराब था।

प्रेमसागर ने तीस-चालीस चित्र भेजे दिन भर में। चित्र देख समझ आता है कि रास्ता वास्तव में खराब था। नदियों पर पुल भी जर्जर थे। पैदल चलने के लिये गूगल मैप जो रास्ता दिखाता है, वह कितना अच्छा या खराब है, नहीं बताता। अगर इसकी जानकारी होती तो पदयात्री भी कार के लिये सुझाया रास्ता चुनता, भले ही दस पंद्रह किमी ज्यादा चलना पड़े।

सुपारी की खेती और बोरे देखे प्रेमसागर ने। “भईया सोपारी भी किसिम किसिम की होती है। एक जगह मैंने रिक्वेस्ट किया कि सोपारी के बोरों का फोटो खींच लूं। बेपारी ने खुशी खुशी खींचने दिया। एक पकी सुपारी फोड़ कार खिलाई भी। मुलायम थी। पर मुझे तो स्वाद पसंद नहीं आया। सुपारी के अलावा मकई की खेती दिखी।”

सुपारी के बोरे
सुपारी के फल की ढेरी

“भईया यहां कुछ लोग मेरा मजाक उड़ाते भी दिखे। और जगह ऐसा नहीं था। मुझे कुछ ‘उण्डू’ जैसा बोले। शायद यह उपहास का कोई शब्द हो। मैंने भी उन्हे कह दिया कि हमारे जमशेदपुर में काम से नहीं, केवल खाने पीने से मतलब रखने वाले को ‘हुण्डू’ कहते हैं। कुछ लोग पास में ताश खेल रहे थे। उन्होने मजाक उड़ाने वालों को डांटा भी कि काहे राह चलते को परेशान करते हो।”

“भईया यह असली बंगाल है। यहां औरतें राह गुजरने वाले को गौर से देखती हैं। देख कर हंसती, ‘चमकाती’ हैं। इस लिये हम तो सिर झुका कर निकले। कहा भी गया है भईया कि यह मायापुर है।”

मुझे याद आया। मैंने पढ़ा था मछेंदर नाथ (गोरखनाथ जी के गुरु) भी यहीं माया में फंस गये थे। वह तो गोरखनाथ का प्रताप था जो “जाग मछंदर गोरख आया” की अलख लगा कर अपने गुरू को निकाल ले गये थे! प्रेमसागर भी अभी पुरानी मान्यताओं के कारण सतर्क हैं – यह इलाका कामरूप का है, मोहनियों का है, मायापुर है!

पहले यातायात के साधनों की दुरुहता और एक बार निकल कर वापस न पंहुचने की घटनाओं को ले कर मारवाड़ या अन्य जगहों के लोग जो यहां आये और यहीं के हो कर रह गये – उनको ले कर जादू-टोना करने वाली मायावी महिलाओं की छवि गढ़ी गयी होगी उत्तर भारत की लोक कथाओं में। उसका प्रभाव अब तक बाकी है। पर अब पूर्वोत्तर देश की संस्कृति और राजनीति के केंद्र में आ रहा है। यह मिथक अब जल्दी ही टूट कर खण्ड खण्ड होगा! जय भारत!

दिन भर बादल रहते हैं। यदाकदा बारिश भी होती है। रास्ता खराब है। प्रेमसागर में आशावाद है – “आगे भईया आसाम में भाजपा की सरकार है। वहां बेहतर होगा।”


दिलीप कुमार

एक सज्जन मुझे ट्विटर पर मिले – दिलीप कुमार। उनके प्रोफाइल से लगता है कि वे बिहार के हैं। भूमिहार ब्राह्मण। मेघालय के लम्शनांग में स्कूल के मुखिया हैं। मैंने उन्हें संदेश दिया –

आपकी प्रोफाइल के अनुसार आप लम्शनॉन्ग – मेघालय से हैं।
पदयात्री प्रेमसागर अगर (इस मौसम में) कामाख्या के बाद जयंती शक्तिपीठ (Jayanti Shaktipeeth Shri Nartiang Durga Temple, Meghalaya) मेघालय की पदयात्रा करें, तो क्या वह हो सकता है? मेघालय का मौसम और सड़क/रास्ता उपयुक्त होगा? वह सज्जन पूर्णत: शाकाहारी हैं। उनके लिये रास्ते में काम लायक भोजन मिलेगा?
ये प्रश्न मेरे मन में हैं। अगर वह सम्भव है तो मैं प्रेमसागर को मेघालय की ओर बढ़ने की सलाह दूंगा, अन्यथा कामाख्या से वापस लौटने को कहा है मैंने।
अगर पदयात्रा उचित न हो तो क्या बस से भी यात्रा सम्भव है?

दिलीप कुमार जी ने जल्दी ही उत्तर दिया – “मौसम और काम लायक भोजन नहीं मिलेगा। कामाख्या से वापस लौटने को कहेंं। अगर अपनी गाड़ी हो और भोजन की व्यवस्था हो तो (जयंती शक्तिपीठ तक आना) उपयुक्त है।”

दिलीप कुमार जी की उक्त टिप्पणी से स्पष्ट हो गया कि प्रेमसागर को शीघ्र अपनी कामाख्या यात्रा सम्पन्न कर लौटना चाहिये। जयन्ती पीठ (मेघालय) और आगे त्रिपुरसुंदरी (त्रिपुरा) की (पद)यात्रा का इरादा नहीं करना चाहिये।

हर हर महादेव! ॐ मात्रे नम:।

प्रेमसागर की शक्तिपीठ पदयात्रा
प्रकाशित पोस्टों की सूची और लिंक के लिये पेज – शक्तिपीठ पदयात्रा देखें।
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प्रेमसागर के लिये यात्रा सहयोग करने हेतु उनका यूपीआई एड्रेस – prem12shiv@sbi
दिन – 103
कुल किलोमीटर – 3121
मैहर। प्रयागराज। विंध्याचल। वाराणसी। देवघर। नंदिकेश्वरी शक्तिपीठ। दक्षिणेश्वर-कोलकाता। विभाषा (तामलुक)। सुल्तानगंज। नवगछिया। अमरदीप जी के घर। पूर्णिया। अलीगंज। भगबती। फुलबारी। जलपाईगुड़ी। कोकराझार। जोगीघोपा। गुवाहाटी। भगबती। दूसरा चरण – सहारनपुर से यमुना नगर। बापा। कुरुक्षेत्र। जालंधर। होशियारपुर। चिंतपूर्णी। ज्वाला जी। बज्रेश्वरी देवी, कांगड़ा। तीसरा चरण – वृन्दावन। डीग। बृजनगर। विराट नगर के आगे। श्री अम्बिका शक्तिपीठ। भामोद। यात्रा विराम। मामटोरीखुर्द। चोमू। फुलेरा। साम्भर किनारे। पुष्कर। प्रयाग। लोहगरा। छिवलहा। राम कोल।
शक्तिपीठ पदयात्रा

आज की इस पोस्ट को ले कर प्रेमसागर की शक्तिपीठ पदयात्रा पर पचास पोस्टें हो गयी हैं। जाने और कितनी होंगी! :lol:


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

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