बारोबीशा से कोकराझार – बोड़ोलैण्ड असम

26 अप्रेल 2023

बारोबीशा अलीपुरद्वार, पश्चिम बंगाल के उत्तरी इलाके के पूर्वी कोने का बड़ा गांव है। रैदक और गंगाधर नदियों के बीच। उसके आठ किलोमीटर बाद असम प्रारम्भ होता है। बारोबीशा के बाद गंगाधर नदी की तीन चार धारायें छितराई हुई बहती हैं। मुख्य धारा और एक पतली पूर्वी धारा के बीच जगह है शिमुलटापू। शिमुलटापू असम में है।

सवेरे सवेरे प्रेमसागर गंगाधर पार करते हैं। उन्हें नदी का नाम नहीं मालुम। नाम मुझे भी नहीं मालुम था। यह ब्लॉग न लिखना होता तो मुझे पता भी न चलता। लिखने के चक्कर में कितना कुछ खोजना पड़ता है। सवेरे सवेरे नदी पार करना सुखद अनुभव है। तीस्ता के सवेरे के दृश्य बहुत सुंदर आये थे। पर गंगाधर कुछ देरी से पार की प्रेमसागर ने। सवेरे नींद कुछ देर से टूटी। बदन अकड़ रहा है। पैरासेटामॉल शायद लिया है या लेना है। देर से पार करने के कारण ऊषा की अरुणिमा नहीं झलक रही जल में। फिर भी, नदी सुंदर तो लगती है!

गंगाधर नदी। देर से पार करने के कारण ऊषा की अरुणिमा नहीं झलक रही जल में। फिर भी, नदी सुंदर तो लगती है!

गंगाधर की सभी धाराओं को पार करने के बाद गोसाईगांव आता है। वह कोकराझार जिले का पश्चिमी सबडिवीजन है। बोड़ो आटोनॉमस रीजन का पश्चिमी किनारा। कोई जमाना रहा होगा जब यह बोड़ो विद्रोहग्रस्त इलाका था। अब तो सब शांत है। नदी की धारा की तरह शांत। …रैदक नदी गंगाधर में मिल कर गंगाधर बन जाती है। गंगाधर आगे जा कर ब्रह्मपुत्र में मिल कर ब्रह्मपुत्र बन जाती है। या ब्रह्मपुत्र बन जाता है? ब्रह्मपुत्र तो नदी नहीं नद है! इसी तरह तीस्ता भी ब्रह्मपुत्र में मिलती है। नदियों के नाम तलाशना और उनको नक्शे पर ट्रेस करना, उनके किनारे की जगहें और टापू नोट करना भी एक यात्रा है। डिजिटल यात्रा। वह मुझे करनी पड़ रही है।

नदी पार करने के बाद शायद शिमुलटापू है। असम शुरू हो गया है।

नदी पार करने के बाद शायद शिमुलटापू है। असम शुरू हो गया है। एक दुकान में बेंत का काम दीखता है। बिकाऊ सो-पीस और फर्नीचर। तीन चार चित्र प्रेमसागर ने रुक कर भेजे।

एक दुकान में बेंत का काम दीखता है। बिकाऊ सो-पीस और फर्नीचर।

मैं सोचता हूं कि किताब खोल बोड़ो विद्रोह के बारे मेंं पढ़ूं। फिर समझ आता है कि उसकी क्या जरूरत? इस समय तो मुझे यह देखना चाहिये कि प्रेमसागर के साथ क्या हो रहा है। प्रेमसागर अपनी समस्यायें ज्यादा नहीं बताते। पर उनकी खांसी रुक नहीं रही। कल ठण्ड लगी है या शरीर को पर्याप्त आराम नहीं मिला है। मैं उन्हें कहता हूं कि 50-60किमी चलने की बजाय आज 30 किमी तक अपने को सीमित करें। किसी लाइन होटल में रुक कर एक दिन और आराम कर लें। ढाबे में रुकने के पैसे तो कम लगते हैं। पर प्रेमसागर करेंगे अपने मन की।

रास्ते में ढाबे नहीं मिलते। उन्हें बताया जाता है कि कोकराझार तक चलना होगा कोई लॉज या होटल के लिये। और कोकराझार तक चलने का मतलब है आज की पदयात्रा भी 50 किमी से ज्यादा की होगी।

दिन भर की यात्रा के बारे में प्रेमसागर ने बताया – “आज भईया रास्ते पर काम खेताखेती ज्यादा चले हम। एक जगह तो चाय के बागान के बीच से गुजरे। फोटो लेना चाहते थे पर शाम हो गयी थी। फोटो ठीक नहीं आता, इसलिये नहीं लिया।”

“लोग कोऑपरेटिव मिले आज। असमिया थे। ज्यादातर ठाकुर बाभन। कुछ मारवाड़ी भी मिले।”

कोकराझार जिले की डेमोग्राफी के बारे में सर्च करने पर मैं पाता हूं कि ज्यादा बंगला भाषी हैं, उसके बाद असमिया और फिर बोड़ो और अन्य। प्रेमसागर का चुनाव स्पष्ट हो जाता है। कल बंगला लोगों ने उनका मजाक उड़ाया था। आज वे असमिया और मारवाड़ी को कोऑपरेटिव बता रहे थे। बोड़ो लोगों से आदान प्रदान की बात नहीं की। वैसे भी लगता है कि बोड़ोलैण्ड में बोड़ो बहुमत में नहीं हैं। उत्तरोत्तर जनजातीय जनसंख्या का प्रतिशत कम होता गया है। खैर, प्रेमसागर की यात्रा में जनजातीय समरसता या संघर्ष का मुद्दा तो उभरता ही नहीं। उन्हें तो अपनी शक्तिपीठ पदयात्रा करनी है। उसमें जनजातीय इण्टरेक्शन तो होना कोई पक्ष है नहींं।

“एक जगह भईया एक आदमी मिले। उन्हें लकवा था। वे बताये कि कोई बाबाजी लकवा ठीक करने के लिये उनसे पांच हजार ऐंठ कर चम्पत हो गये। भईया मैंने कहा कि जो बाबा पैसा मांगे, उससे सावधान रहें। बाबा को पैसा का क्या जरूरत? वे फिर भी मुझसे कुछ चाहते हैं तो एरण्डी का तेल बदन में मालिश किया करें। महुआ दूध में उबाल कर सेवन करें और वह भी न हो तो बासी मुंह बकरी का दूध लें। कुछ फायदा होगा इन सब से।”

[एरण्डी के तेल से बदन में मालिश; उबला महुआ खाना और बासी मुंह बकरी का दूध?! प्रेमसागर के इस क्वासी-धार्मिक-प्राकृतिक इलाज पर मेरी टिप्पणी है कि मुर्दा भी उठ कर भाग जाये; लकवाग्रस्त कौन चीज है! 😆 ]

श्रद्धा, बाबाई, धूर्तता और देसी इलाज – इन सब का गड्डमड्ड है आज के (वैज्ञानिक) देश काल में भी!

शाम को कोकराझार में बहुत से लॉज और होटल मिले। उनमें चुनाव करने की जहमत उठानी पड़ती, उसके पहले एक मारवाड़ी बासा उन्हें दिख गया। सत्तर रुपये में भरपेट भोजन मिला – गेंहू के आटे की रोटी, चावल, दाल, सब्जी, भुजिया; सब। बासा वाले एक आयुर्वेदिक डाक्टर थे। उन्होने प्रेमसागर को सलाह दी कि वे ज्यादा चल रहे हैं तो नियमित अश्वगंधा का सेवन करना चाहिये। प्रेमसागर बबूल का गोंद प्रयोग करते हैं। अब उन्होने कहा कि अश्वगंधा चूर्ण खरीदेंगे। मैंने सलाह दी कि किसी ठीक कम्पनी का खरीदें – धूतपापेश्वर, बैद्यनाथ या हिमालया का।

किसी “के आर लॉज” में 700रुपये में रुकने का कमरा मिला। बहुत दिनों बाद प्रेमसागर के मुंह से निकला – “भईया, आप तो बाबा विश्वनाथ के पड़ोसी हैं। जरा उन्हें कहिये न कि मेरा खर्चा कुछ कम करायें।”

बाबा विश्वनाथ से ज्यादा सम्पर्क मेरी बजाय उनका खुद का है। 😆

खैर, पाठकों से अपील है कि वे कुछ सहायता उनके यूपीआई पते पर करने का कष्ट करें। यह लगता है कि प्रेमसागर का पैसा चुक गया है।

प्रेमसागर के लिये यात्रा सहयोग करने हेतु उनका यूपीआई एड्रेस – prem12shiv@sbi

नक्शे के हिसाब से बोरीबीशा से कोकराझार तक 52 किमी चले प्रेमसागर। उनका कहना है कि खेताखेती चले तो कुछ कम चलना पड़ा, पर मुझे वैसा लगता नहीं। शॉर्टकट तलाशना उनका मनोविनोद है। वैसा (सामान्यत:) होता नहीं। वैसे भी, मेरी सलाह है कि बोड़ोलैण्ड में शॉर्टकट छाप काम करने की बजाय सड़क पर ही चलना चाहिये। पर प्रेमसागर करते अपने अनुसार ही हैं।

कामाख्या तक पंहुचने में अभी 175 किमी चलना है। चार दिन की असम यात्रा शेष होनी चाहिये। देखें, कैसे होती है यह यात्रा। आज का दिन तो सकुशल रहा, बावजूद इसके कि सवेरे उनकी तबियत नरम लग रही थी।

ॐ मात्रे नम:!

हर हर महादेव!

प्रेमसागर की शक्तिपीठ पदयात्रा
प्रकाशित पोस्टों की सूची और लिंक के लिये पेज – शक्तिपीठ पदयात्रा देखें।
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प्रेमसागर के लिये यात्रा सहयोग करने हेतु उनका यूपीआई एड्रेस – prem12shiv@sbi
दिन – 83
कुल किलोमीटर – 2760
मैहर। प्रयागराज। विंध्याचल। वाराणसी। देवघर। नंदिकेश्वरी शक्तिपीठ। दक्षिणेश्वर-कोलकाता। विभाषा (तामलुक)। सुल्तानगंज। नवगछिया। अमरदीप जी के घर। पूर्णिया। अलीगंज। भगबती। फुलबारी। जलपाईगुड़ी। कोकराझार। जोगीघोपा। गुवाहाटी। भगबती। दूसरा चरण – सहारनपुर से यमुना नगर। बापा। कुरुक्षेत्र। जालंधर। होशियारपुर। चिंतपूर्णी। ज्वाला जी। बज्रेश्वरी देवी, कांगड़ा। तीसरा चरण – वृन्दावन। डीग। बृजनगर। सरिस्का के किनारे।
शक्तिपीठ पदयात्रा

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Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

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