दिन भर चलने और 53 किमी नापने के बाद पता चला कि सहायता के नाम पर ठेंगा है। उन्हें एक मंदिर में रहने को कहा। मंदिर में पुजारी ने बताया कि जमीन पर सो जाईये। ओढ़ने बिछाने और भोजन का कोई इंतजाम नहीं।
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बारोबीशा से कोकराझार – बोड़ोलैण्ड असम
नदी पार करने के बाद शायद शिमुलटापू है। असम शुरू हो गया है। एक दुकान में बेंत का काम दीखता है। बिकाऊ सो-पीस और फर्नीचर।
“लोग कोऑपरेटिव मिले आज। असमिया थे। ज्यादातर ठाकुर बाभन। कुछ मारवाड़ी भी मिले।”
फालाकाटा से बारोबीशा
“भईया सोपारी भी किसिम किसिम की होती है। एक जगह मैंने रिक्वेस्ट किया कि सुपारी के बोरों का फोटो खींच लूं। बेपारी ने खुशी खुशी खींचने दिया। एक पकी सुपारी फोड़ कार खिलाई भी। मुलायम थी। पर मुझे तो स्वाद पसंद नहीं आया।”
