ब्लॉग जुगलबंदी

किरीट सोलंकी के साथ जुगलबंदी की सम्भावनायें

मैं साइकिल चलाते हुये राह चलते लोगों का चित्र लेता हूं। कभी कभी (या बहुधा) सिर पर घास का गट्ठर रखे चलती महिलायें होती हैं। गांवदेहात में यही चित्र आम होते हैं। नोकिया के दो मेगापिक्सल वाले फीचर फोन से खींचे और फिर किसी तरह उभारे चित्र।

सवेरे का समय होता है तो बहुधा सूरज की गोल्डन ऑवर की रोशनी का लाभ मिलता है। पर मैं रोशनी और एंगल आदि की बहुत फिक्र नहीं करता।

मैं लिख लेता हूं। किरीट चित्र/स्केच बना लेते हैं। लिखने में कम शब्दों का प्रयोग कर लिखना मेरी मजबूरी है जो अब शायद खासियत बन गयी है। किरीट जी के स्केचों में कुछ ही रेखाओं के प्रयोग से जीवंत दृश्य उभर आते हैं।

मैं शब्दों में किफायत करता हूं; वे स्केच की रेखाओं में। दोनो मिल कर काम करें तो शायद कुछ उत्कृष्ट ब्लॉग लेखन बन सके। किरीट जी ने साइकिल पर चलते हुये चित्र लेते व्यक्ति का एक स्केच बनाया है –

काले या किसी अन्य गहरे रंग के पट्ट पर उकेरी हुई केवल कुछ रंगीन लाइनों से क्या जानदार चित्र उभरते हैं उनके स्केचों में। और वे बताते हैं कि अधिकांश स्केच उन्होने मोबाइल पर उंगलियों के प्रयोग से बनाये हैं! वण्डरफुल! :-)


मेरी पत्नीजी मेरे ब्लॉग की को-ऑथर हैं। वैसा ही कुछ किरीट जी के साथ हो सकता है। अगर उनके स्केच पर लेखन हो तो पोस्ट उनकी, गायन उनका, लेखन तब तबले का रोल अदा करे जुगलबंदी में।

और जब लेखन और/या मेरे चित्रों के साथ किरीट जी के स्केच हों तो पोस्ट मेरी तबले की जुगलबंदी के रूप में स्केच उनके!

ब्लॉग-जुगलबंदी मुझे शुरुआती दिनों से आकर्षित करती रही है। सबसे उत्कृष्ट उदाहरण बेकर पोस्नर ब्लॉग था। वह दिसम्बर 2004 से मई 2014 तक नियमित चला। गैरी बेकर की मृत्यु पर वह बंद हो गया। गैरी बेकर अर्थशास्त्री थे और नोबल पुरस्कार विजेता थे। रिचर्ड पोस्नर अमेरिका के प्रसिद्ध न्यायविद हैं और फेडरल जज भी रह चुके हैं।

मैं उस ब्लॉग को सबस्क्राइब किया करता था। इसलिये नहीं कि मुझे उनका कहा समझ आता या अपील करता था; वरन दो अलग अलग सशक्त लोगों के एक ही विषय पर विचार पता चलते थे।

किरीट जी के साथ सप्ताह में एक दिन वैसी जुगलबंदी (उस प्रकार से नहीं, ज्वाइण्ट पोस्ट के रूप में) हो सकती है। मैं सामान्यत: रेलवे के विषय पर लिखना नहीं चाहता। पर अगर उनके रेल विषयक स्केच हों तो शायद की-बोर्ड पर कुछ गतिविधि हो! :-)

मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया…

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

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