12 मई 2023
प्रेमसागर ने द्वादशज्योतिर्लिंग कांवर यात्रा में सहारनपुर जा चुके हैं। अब शक्तिपीठ पदयात्रा में, पूर्वोत्तर का भ्रमण सम्पन्न कर, वे हरियाणा, पंजाब और हिमांचल के शक्तिपीठों के दर्शन को निकलना है। उसमें पहला पीठ है कुरुक्षेत्र का भद्रकाली शक्तिपीठ। यह सहारनपुर से निकटतम है। इसलिये प्रेमसागर ने पदयात्रा का यह चरण सहारनपुर से प्रारम्भ किया।
कल रात वे सहारनपुर के सत्कार होटल में थे। वहां के कर्मियों के साथ उनका एक चित्र है। आज सवेरे सत्कार होटल से प्रारम्भ किया आगे का सफर। इस खण्ड में वे लगभग 400-500किमी की यात्रा तय करेंगे और उसमें आधे से अधिक हिस्सा हिमांचल प्रदेश के पर्वतीय स्थलों का होगा।
आज प्रेमसागर ने यात्रा के दौरान पूर्वी यमुना नहर, यमुना नदी और पश्चिमी यमुना नहर पार की। सवेरे जो चित्र उन्होने छ किमी की यात्रा करने पर भेजे थे उसमें सहारनपुर से गुजरती पूर्वी यमुना नहर भी थी। नक्शे में सहारनपुर से गुजरती कोई पतली सी पांवधोई नदी भी दिखती है। पर शायद एक शहर से गुजरती बेचारी नदी कोई छोटा-मोटा नाला भर बन गयी होगी, जिसको कोई नोटिस ही न करे। पांवधोई सम्भवत: पांवधोने लायक भी न बची हो (जनसत्ता के एक लेख के अनुसार सहारनपुर की पांवधोई नदी गंदे नाले में बदल गयी थी, पर लोगों की जागरूकता से उसे बुरी हालत से मुक्त कराने में कुछ हद दक सफलता पाई है। लेखक हैं अतुल कनक)। जैसे बहुत से जीवजंतु और पौधे विलुप्त होने के कगार पर हैं, उसी तरह कई नदियां या तो इतिहास बन चुकी हैं या बनने जा रही हैं।

पर यमुना नहरों का अतीत भी है और वर्तमान भी। दिल्ली में नजफगढ़ और ओखला के बीच यमुना भले ही प्रदूषित, बजबजाती, फेन उगलती जहरीली नदी हो; यहां उसकी नहरें और वह स्वयम जीवंत लगीं।
यम की भगिनी यमुना, किसी बड़ी घटना-दुर्घटना के बाद घर्घर नाद कर बहती सरस्वती के जल का एक बड़ा हिस्सा अपने में समाहित करने वाली यमुना तक न जाया जाये। सन 1335 में फीरोजशाह तुगलक ने पश्चिमी यमुना नहर को बनाया था। हो सकता है कि उसके पहले भी यह नहर किसी रूप में रही हो। पर नहर का अस्तित्व 9 शताब्दियों तक तो है ही। सन 1750 तक यह नहर गाद भरने से मृतप्राय हो चुकी थी। उसके बाद अंग्रेजों ने इसे फिर बनाया। उपलब्ध सामग्री में कई तिथियां और कई बांध इस नहर के संवर्धन में जुड़ते हैं। अंतत: जुड़ता है बीसवीं सदी के अंत में बना हथिनीकुण्ड बांध – जो पश्चिमी और पूर्वी दोनो नहरों को जल उपलब्ध कराता है।

पूर्वी नहर शाहजहांंके काल में बननी शुरू हुई और 1830 में अंग्रेज कम्पनी के शासन में चालू हुई। इसको ले कर भी कई बांधों के नाम आते हैं। जहां पश्चिमी नहर हरियाणा के अम्बाला, जींद, हिसार, सोनीपत, भिवानी, रोहतक आदि जिलों को सींचती है, पूर्वी नहर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, मेरठ और गाजियाबाद को सींचती है। हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश की खेती किसानी की उन्नति का बड़ा हिस्सा इन नहरों और इनसे निकली छोटी नहरों के जाल को जाता है। पश्चिमी नहर 85किमी लम्बी है और उसके जाल की लम्बाई जोड दी जाये तो चार सौ किमी होगी। पूर्वी नहर की कुल लम्बाई 1400किमी है।
प्रेमसागर की यात्रा में इन नहरों का कोई विशेष स्थान नहीं है। उन्हें तो अपने इक्यावन पीठ देखने, सम्पन्न करने हैं। मेरा मन इन नहरों पर अटक जाता है। मैं ताजेवाला, हथिनीकुण्ड, डाकपत्थर, पथराला आदि नामों से परिचय पाने का प्रयास करता हूं। मन होता है कोई एक ऐसी पुस्तक तलाशूं जो भारत के जल प्रबंधन का भूत-वर्तमान आदि अच्छे से बताती हो।

प्रेमसागर तो यमुनानगर पंहुच कर तीस पैंतीस चित्र और अपने दिन भर के अनुभव बता कर छुट्टी पा गये हैं। मैं नहरों में अटका हूं! 😆
शाम को प्रेमसागर ने मुझे बताया – “सवेरे भईया जहां चाय पी, वह मोनू होटल था। किसी मुसलमान सज्जन का। बड़े भले लोग थे वे। मैने एक फोटो भी ले लिया है।”
“दोपहर में एक मंदिर में रहा। वहां नहा धो कर आया तो उन्होने भोजन के लिये भी आग्रह किया। सान-ध्यान, भोजन कर दोपहर में दो घण्टा वहीं सो भी गया।”

“गन्ना, धान और गेंहूं की खेती होती है भईया। पापूलार के पेड़ काफी लगाये हुये हैं। इण्डस्ट्री भी दिखीं। चीनी की फेक्टरी तो सड़क के साथ मीलों लम्बाई में है। नाम है सरस्वती शूगर लिमिटेड। सहारनपुर का इण्डस्ट्रियल एरिया तो डेढ़ किमी रास्ते से अलग है। वहां नहीं जा पाया। पर रास्ते में रिजॉर्ट बहुत दिखे। भईया, लगता है यहां लोग शाहखर्च हैं। बताया कि रिजॉर्ट की एक दिन की शादी आदि के लिये बुकिंग का किराया डेढ़ दो लाख होता है। और काफी लोग रिजॉर्ट का इस्तेमाल करते हैं।” – अपने तरीके से प्रेमसागर पूर्वी और पश्चिमी उत्तरप्रदेश का आर्थिक अंतर समझ रहे थे और मुझे बता भी पाये। हरियाणा भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसा है।

“तीन नदियां मिली भईया” – प्रेमसागर ने कहा। वे दो यमुना नहरों और बीच में यमुना नदी की बात कर रहे थे। उनके विवरण के अनुसार यमुना नदी का पानी साफ तो है, पर कम है। नहरों में पानी ज्यादा है। पूर्वी नहर का पानी साफ है पर पश्चिमी नहर का मटमैला।
आज प्रेमसागर कुल 38 किमी चले। आगे उन्हें कुरुक्षेत्र, जलंधर, चिंतपूर्णी, ज्वालाजी और बज्रेश्वरी मंदिर कांगड़ा तक की यात्रा करनी से। सीधे लाइन बनाने के हिसाब से शाम के यमुनानगर के पड़ाव से यह यात्रा 384किमी की होती है पर पैदल पथ दुरुह भी है और टेढ़ा भी। कम से कम 412किमी तो चलना ही होगा। ज्यादा भी।

यात्रा के पहले चरण में प्रेमसागर 2220 किलोमीटर पैदल चले। अब यह दूसरा चरण है! उसमें 38 किलोमीटर आज चल चुके। चरैवेति, चरैवेति!!!
हर हर महादेव।
ॐ मात्रे नम:
प्रेमसागर की शक्तिपीठ पदयात्रा प्रकाशित पोस्टों की सूची और लिंक के लिये पेज – शक्तिपीठ पदयात्रा देखें। ***** प्रेमसागर के लिये यात्रा सहयोग करने हेतु उनका यूपीआई एड्रेस – prem12shiv@sbi |
दिन – 83 कुल किलोमीटर – 2760 मैहर। प्रयागराज। विंध्याचल। वाराणसी। देवघर। नंदिकेश्वरी शक्तिपीठ। दक्षिणेश्वर-कोलकाता। विभाषा (तामलुक)। सुल्तानगंज। नवगछिया। अमरदीप जी के घर। पूर्णिया। अलीगंज। भगबती। फुलबारी। जलपाईगुड़ी। कोकराझार। जोगीघोपा। गुवाहाटी। भगबती। दूसरा चरण – सहारनपुर से यमुना नगर। बापा। कुरुक्षेत्र। जालंधर। होशियारपुर। चिंतपूर्णी। ज्वाला जी। बज्रेश्वरी देवी, कांगड़ा। तीसरा चरण – वृन्दावन। डीग। बृजनगर। सरिस्का के किनारे। |