श्री त्रिपुरमालिनी सिद्ध शक्तिपीठ, जालंधर में प्रेमसागर

20 मई 2023

एक सप्ताह से प्रेमसागर के डियाक (डिजिटल यात्रा कथा) लेखन में व्यवधान रहा है। मैं वायरल ज्वर से ग्रस्त रहा। लम्बी पोस्ट लिखने की एकाग्रता नहीं थी। अब भी उतनी नहीं है। इस बीच प्रेमसागर की यात्रा नियमित चलती रही। उसमें कई रोचक आख्यान जुड़े।

प्रेमसागर ने कुरुक्षेत्र के भद्रकाली शक्तिपीठ के दर्शन किये और फिर कुरुक्षेत्र-अम्बाला-लुधियाना-फिल्लौर-जालंधर की यात्रा की। कई लोगों से मिलना हुआ। सतलुज के झिलमिलाते जल को सूर्यास्त के समय निहारा भी उन्होने। पर वह सब लिखना तो धीरे धीरे बैकलॉग क्लियर करने के रूप में होगा।

कल शाम वे जालंधर पंहुचे। रात देर हो जाने से वे श्री त्रिपुरमालिनी शक्तिपीठ की धर्मशाला में ही रुक गये। शक्तिपीठ के दर्शन आज सवेरे किये। वह विवरण भी विस्तार से लिखूंगा एक दो दिन में।

त्रिपुरमालिनी माँ के दर्शन के बाद प्रेमसागर उद्दत थे आगे की यात्रा को निकलने के लिये। आज सवेरे फोन किया तो बोल रहे थे – “अभी घण्टे आध घंटे में यात्रा के लिये निकल लूंगा, भईया।”

आगे की यात्रा का मतलब जलंधर से चिंतपूर्णी जाने के लिये हिमांचल प्रदेश में प्रवेश करना है। उसके आगे है ज्वालाजी और बज्रेश्वरी शक्तिपीठ – कांगड़ा जिले में।

श्री सिद्ध शक्तिपीठ माँ त्रिपुरमालिनी धाम

यात्रा के लिये इतनी भागमभाग क्यों है? क्यों एक शक्तिपीठ दर्शन करते ही अगले की ओर कूच करना हो रहा है? उस स्थान पर रुक कर शक्तिपीठ की ऊर्जा को अपने में समाहित करने के लिये मनन करने का एक दिन का भी समय क्यों नहीं निकल रहा है?

वह भी तब जब प्रेमसागर यह कह रहे हैं कि उनकी कमर में दर्द है। वे पेनकिलर्स का प्रयोग किये हैं। कल सुधीर पाण्डेय को उन्होने एक डाक्टर से हुई बातचीत के बारे में भी कहा – ऐसा सुधीर जी मे मुझे बताया।

कुल मिला कर अपनी काया को ताने जा रहे हैं प्रेमसागर। शायद मन को भी ताने जा रहे हैं। मुझे लगता है कि इस भागमभाग में यात्रा के धेय पर चिंतन, अनुभव को आत्मसात करना, उपलब्धि को महसूस करना और उससे अपने व्यक्तित्व को सींचना – वह नहीं हो रहा है। लम्बी यात्रायें करने वाले लोग – भले वे समूह में चलते हों या अकेले; गुरुनानक हों या आदिशंकर या विवेकानंद या साधारण पदयात्री – वे यात्रा की उपलब्धि को आत्मसात करने के लिये छोटे-बड़े पॉज जरूर लेते रहे होंगे।

हिंदू धर्म में हर कक्षा के पदयात्री हैं। यह सम्भव है गुरुनानक, आदिशंकर या विवेकानंद जी किसी और कक्षा के पदयात्री हों; पर हर यात्रा का अपना ही महत्व है। प्रेमसागर की यात्रा का भी है। उस महत्व को मात्र “भागमभाग यात्रा” बना कर कम नहीं कर देना चाहिये। यात्रा और यात्रा पर मनन-चिंतत दोनो अनिवार्य हैं।

प्रेमसागर को मैंने इस आशय से कहा। मेरे कहने पर (?) एक दिन और वहां रुक गये हैं।

शक्तिपीठ मंदिर की धर्मशाला में उन्हें एक रात रुकने की अनुमति थी। अब वे एक अन्य स्थान पर किराया दे कर रुके हैं। शायद उन्हें रुकने से शारीरिक आराम मिल जाये – जिसकी उन्हें जरूरत भी है। क्या निकलता है उनके मनन से वह कल ही पता चलेगा। वे दिन में आराम करते हैं और विचार करते हैं या फोन पर बतियाते रहते हैं – यह तो कल का दिन बतायेगा।

श्री त्रिपुरमालिनी शक्तिपीठ के पुजारियों ने प्रेमसागर का चुनरी उढ़ा कर सम्मान किया।

त्रिपुरमालिनी – अर्थात तीनो लोकों को सुशोभित करने (हार पहनाने) वाली – माँ कल्याण करें। स्थानीय भाषा में उन्हें तुरतपूर्नी – कामना को तुरंत पूरा करने वाली – कहा जाता है। माँ प्रेमसागर को भी उनका अभीष्ट शीध्र प्रदान करें। … हां प्रेमसागर इसपर सोचने के लिये थमें तो सही!

हर हर महादेव! ॐ मात्रे नम:!

प्रेमसागर की शक्तिपीठ पदयात्रा
प्रकाशित पोस्टों की सूची और लिंक के लिये पेज – शक्तिपीठ पदयात्रा देखें।
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प्रेमसागर के लिये यात्रा सहयोग करने हेतु उनका यूपीआई एड्रेस – prem12shiv@sbi
दिन – 83
कुल किलोमीटर – 2760
मैहर। प्रयागराज। विंध्याचल। वाराणसी। देवघर। नंदिकेश्वरी शक्तिपीठ। दक्षिणेश्वर-कोलकाता। विभाषा (तामलुक)। सुल्तानगंज। नवगछिया। अमरदीप जी के घर। पूर्णिया। अलीगंज। भगबती। फुलबारी। जलपाईगुड़ी। कोकराझार। जोगीघोपा। गुवाहाटी। भगबती। दूसरा चरण – सहारनपुर से यमुना नगर। बापा। कुरुक्षेत्र। जालंधर। होशियारपुर। चिंतपूर्णी। ज्वाला जी। बज्रेश्वरी देवी, कांगड़ा। तीसरा चरण – वृन्दावन। डीग। बृजनगर। सरिस्का के किनारे।
शक्तिपीठ पदयात्रा

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Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

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