गगरेट – पंजाब से हिमांचल

22 मई 2023

होशियारपुर की पीर बाबा की दरगाह से आगे निकलने पर प्रेमसागर का गला खरखरा रहा था। जुकाम का असर है। शरीर को आराम चाहिये। पर प्रेमसागर उसे ठेल रहे हैं – आगे और आगे! उनके पास विकल्प भी नहीं है। अगर पैसे कम हों तो ठहरने की बजाय चलते रहना ज्यादा सस्ता उपाय है। मुझसे बेहतर प्रेमसागार इसे समझते हैं। सो उठते हैं और चल देते हैं।

मैं अपने लिये वैसी जिंदगी – अनवरत चलायमान – नहीं सोच सकता। पर प्रेमसागर के लिये वही जीवन हो गया है।

भोर में दरगाह में एक सज्जन के साथ सेल्फी भेजी है प्रेमसागर ने। निश्चय ही ये सज्जन उनकी कुछ सहायता किये होंगे। निकलने के पहने पौने पांच बजे का चित्र है। वे शायद गार्ड जी हों, जिन्होने प्रेमसागर को मच्छरदानी दी थी।

प्रेमसागर के साथ यही दिक्कत है। वे अपने ढेरों चित्र उंडेल देते हैं। कई बार आधे एक्स्पोजर वाले भी। मुझे उनकी डेटलाइन देख कर अंदाज लगाना होता है। और लोगों के नाम याद रखना, स्थानों के नाम याद रखना उन्हेंं अब तक नहीं आया। फिर भी हजारों – दस हजारों किमी की पदयात्रा वे कर सके हैं! चमत्कार ही है।

आज सवेरे दरगाह से निकलते ही सूर्योदय को क्लिक किया। पता नहीं, सूर्योदय से मोहित हो कर या बस यूं ही। जालंधर के बाद पंजाब से उनका मोहभंग सा हो गया है। “नौजवान हमें रोक कर नशा मांगते हैं भईया।”

राह चलते साधुओं-बाबाओं ने भी धर्म की छवि बिगाड़ दी है। किसी जमाने में हिप्पी यहां आये थे और लोग उन्हें हिकारत से देखते थे। अब यहां के जवान लोग ही हिप्पी संस्कृति अपना लिये हैं। काम धाम करने को पूर्वांचल-बिहार के लोग हैं ही।

आज सवेरे दरगाह से निकलते ही सूर्योदय को क्लिक किया। पता नहीं, सूर्योदय से मोहित हो कर या बस यूं ही।

डियाक लेखन में भी मेरे मन में उच्चाटन सा है। सामान्यत: यात्रा के दौरान मैं गूगल मैप पर, विकिपेडिया पर और लेखों, पुस्तकों में रास्ते के बारे में जानकारी तलाशने में समय लगाया करता था। अब वह नहीं हुआ। शायद मेरी तबियत भी पूरी तरह ठीक नहीं है। एकाग्रता नहीं है पढ़ने और लिखने में।

प्रेमसागर के भेजे चित्रों को निहारता हूं। एक बहुत ही बड़ा ट्रक है जो सम्भवत: भूसा ले कर जा रहा है। शायद रब्बी की फसल की पराली नहीं जलाई जाती। गेंहूं की थ्रेशिंग से भूसा निकलता है। उसका लॉजिस्टिक मैनेजमेण्ट वृहद पैमाने पर होता है। पूर्वांचल में तो ठेले पर झाल लाद कर भूसा ढोया जाता है। ज्यादा हुआ तो ट्रेक्टर से। पंजाब में कृषि समृद्ध है। भूसा कुम्भकर्ण जैसा पर्वताकार ट्रक में लदा है।

आगे कुछ दूर चलने के बाद जमीन की प्रकृति बदलने लगी है। मैदान खत्म, रास्ता घुमावदार, और ऊंचाई नीचाई प्रारम्भ हो गयी है। दोपहर डेढ़ बजे तक पंजाब की सीमा आ गयी है। बाई बाई पंजाब।

पंजाब की सीमा और हिमांचल का स्वागत बोर्ड दिखता है। उसके साथ ही घुमावदार रास्ते बढ़ने लगते हैं। चीड़ के वृक्ष हैं, जिन्हें मैं पहचानता हूं। शिवालिक में, तराई में भी चीड़ दिख जाता है। मैंने गोरखपुर में देखा है। मेरे बंगले में था। यहां भदोही में लगाने की कोशिश की पर चला नहीं। निर्मल वर्मा की “चीड़ों पर चांदनी” याद आती है। मुझे फिर एक मौका मिले तो उस घर में रहना चाहूंगा जिसमें चीड़ हो। अजीब नोश्टॉल्जिया है। कल एक हिंदी शब्द पढ़ा नोश्टॉल्जिया के लिये – गृहातुरता।

कल एक हिंदी शब्द पढ़ा नोश्टॉल्जिया के लिये – गृहातुरता।
प्रेमसागर ने चीड़ का चित्र भेजा

अजब गृहातुरताओं का जीव हूं मैं। चीड़ के प्रति गृहातुर! भला हो, प्रेमसागर ने चीड़ का चित्र भेजा। ढेरों टूरिस्ट स्पॉटों’ वृहदाकार हनुमान जी, देवी जी और शिव जी की प्रतिमाओं के आधुनिक (?) कलात्मक और चटक रंगों वाली प्रतिमाओं के चित्र की बजाय चीड़ का कहीं बेहतर लगा।

मेरी पत्नीजी ने कहा – प्रेमसागर को बोलो लौटानी में ढेरों चीड़ के सूखे झरे फूल ले आयें। अब एक बोरा भर लाने की बजाय एक दो फूल तो उन्हें लाने चाहियें। प्रतीकात्मक! कि पहाड़ से आ रहे हैं!

शाम पांच बजे यात्रा सम्पन्न की। गगरेट में। आज अठाईस किमी चलना हुआ। कल चिंतपूर्णी का माता छिन्नमस्ता देवी स्थल 21-22 किमी दूर है। तबियत नासाज होने पर इतनी दूरी तय करना शायद मैनेजेबल है।

हर हर महादेव। ॐ मात्रे नम:।

प्रेमसागर की शक्तिपीठ पदयात्रा
प्रकाशित पोस्टों की सूची और लिंक के लिये पेज – शक्तिपीठ पदयात्रा देखें।
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प्रेमसागर के लिये यात्रा सहयोग करने हेतु उनका यूपीआई एड्रेस – prem12shiv@sbi
दिन – 83
कुल किलोमीटर – 2760
मैहर। प्रयागराज। विंध्याचल। वाराणसी। देवघर। नंदिकेश्वरी शक्तिपीठ। दक्षिणेश्वर-कोलकाता। विभाषा (तामलुक)। सुल्तानगंज। नवगछिया। अमरदीप जी के घर। पूर्णिया। अलीगंज। भगबती। फुलबारी। जलपाईगुड़ी। कोकराझार। जोगीघोपा। गुवाहाटी। भगबती। दूसरा चरण – सहारनपुर से यमुना नगर। बापा। कुरुक्षेत्र। जालंधर। होशियारपुर। चिंतपूर्णी। ज्वाला जी। बज्रेश्वरी देवी, कांगड़ा। तीसरा चरण – वृन्दावन। डीग। बृजनगर। सरिस्का के किनारे।
शक्तिपीठ पदयात्रा

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Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

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